: झुका लेता हूँ सर दूसरे धर्मस्थलो
के सामने, क्योंकि मुझे मेरा धर्म दूसरे धर्म का अपमान
करने की इजाजत नहीं देता, उठा लेता हूँ तलवार जब
उठती है उँगली राम नाम पर, क्योंकि मेरा धर्म मुझे
अपने धर्म का अपमान सहने की इजाजत नहीं देता
🚩।। जय जय श्री राम ।।🚩
🔫: : रहे सलामत जिंदगी उनकी,
जो मेरी खुशी की फरियाद करते है.
ऐ खुदा उनकी जिंदगी खुशियों से भरदे, जो मुझे याद
करने में अपना एक पल बर्बाद करते है…..!!
////////
हर चीज़ तौलते हैं वो बाज़ार की तरह, उनकी दुआ सलाम है व्यापार की तरह, मुद्दे की बात पहले जहाँ थी वहीं रही, आए भी वो गये भी वो अखबार की तरह.
////////
किसी ने घड़े से पूछा,
कि तुम इतने ठंडे क्यों हो ?
अति अर्थ पूर्ण उत्तर था घड़े का: जिसका अतीत भी मिट्टी, और भविष्य भी मिट्टी,
उसे गर्मी किस बात पर होगी. .!!
ये बात हर इंसान भी याद रखे तो कितना अच्छा हो ।
///////////
: मेरा दिल मुझसे कहता है वोवापस आएगी,मैं दिल से कहता हूँ
उसनेतुझे भी झूठ बोलना सिखा दिया..
[
///////
: एक जनाजा और एक बारात टकरा गए;
उनको देखने वाले भी चकरा गए;
ऊपर से आवाज आई-ये कैसी विदाई है;
महबूब की डोली देखने साजन कि अर्थी भी आई है...
[
/////////
हमारे इश्क का अंदाज कुछ अजीब सा था दोस्तों,लोग इन्सान देखकर मोहब्बत करते है, हमनें मोहब्बत करके इन्सान देख लिया ..
///////////
: जिसको भी देखा रोते हुए ही देखा.
मुझे तो ये "मोहब्बत"रुमाल बनाने वालो की साजिश लगती है|
💘💘
////////
#सच्चाप्यार - जब कोई आपके वोटर कार्ड या आधार कार्ड की तस्वीर देखकर आपसे प्यार करने लगता है..
[
//////////
: रख दे मेरे होठो पे अपने होंठ कुछ इस तरह,...... या तेरी प्यास बुझ जाये या मेरी साँस रुक जाये...
!❤💏
//////
बड़े अनमोल हे ये खून के रिश्ते
इनको तू बेकार न कर ,
मेरा हिस्सा भी तू ले ले मेरे भाई
घर के आँगन में दीवार ना कर..
💘💘
: ए दिल तू तन्हाइयो में रहने का आदि हो जा;
जिन्हें तू याद करता है वो बड़े मसरूफ़ रहने लगे है..!
💘💘
: बुलंदियो तक पहुंचना चाहता हूँ मै भी,....
पर गलत राहो से होकर जॉऊ , ..
इतनी जल्दी भी नही,...
आदते खराब नही, शौक ऊँचे है,...
वरना ख्वाबों की इतनी औकात नही कि ..
हम देखे और पूरा न हो........
/////////
शब्दों से ही लोगों के दिलों पे राज़ किया जाता हैं.
चेहरे का क्या किसी भी हादसे मे बदल सकता हैं
💘💘
: "जीत" किसके लिए, 'हार' किसके लिए
ं 'जिंदगी भर' ये 'तकरार' किसके लिए
जो भी 'आया' है वो 'जायेगा' एक दिन
फिर ये इतना "अहंकार" किसके लिए........
//-/////
: किसी ने घड़े से पूछा,
कि तुम इतने ठंडे क्यों हो ?
अति अर्थ पूर्ण उत्तर था घड़े का: जिसका अतीत भी मिट्टी, और भविष्य भी मिट्टी,
उसे गर्मी किस बात पर होगी. .!!
ये बात हर इंसान भी याद रखे तो कितना अच्छा हो
[
///////
"सफर का मजा लेना हो तो साथ में सामान कम रखिए
और
जिंदगी का मजा लेना हैं तो दिल में अरमान कम रखिए !!
तज़ुर्बा है मेरा.... मिट्टी की पकड़ मजबुत होती है,
संगमरमर पर तो हमने .....पाँव फिसलते देखे हैं...!
जिंदगी को इतना सिरियस लेने की जरूरत नही यारों,
यहाँ से जिन्दा बचकर कोई नही जायेगा!
जिनके पास सिर्फ सिक्के थे वो मज़े से भीगते रहे बारिश में ....
जिनके जेब में नोट थे वो छत तलाशते रह गए...
///////
बहुत सुँदर पंक्तियाँ- "संयुक्त परिवार"
वो पंगत में बैठ के
निवालों का तोड़ना,
वो अपनों की संगत में
रिश्तों का जोडना,
वो दादा की लाठी पकड़
गलियों में घूमना,
वो दादी का बलैया लेना
और माथे को चूमना,
सोते वक्त दादी पुराने
किस्से कहानी कहती थीं,
आंख खुलते ही माँ की
आरती सुनाई देती थी,
इंसान खुद से दूर
अब होता जा रहा है,
वो संयुक्त परिवार का दौर
अब खोता जा रहा है।
माली अपने हाथ से
हर बीज बोता था,
घर ही अपने आप में
पाठशाला होता था,
संस्कार और संस्कृति
रग रग में बसते थे,
उस दौर में हम
मुस्कुराते नहीं
खुल कर हंसते थे।
मनोरंजन के कई साधन
आज हमारे पास है,
पर ये निर्जीव है
इनमें नहीं साँस है,
आज गरमी में एसी
और जाड़े में हीटर है,
और रिश्तों को
मापने के लिये
स्वार्थ का मीटर है।
वो समृद्ध नहीं थे फिर भी
दस दस को पालते थे,
खुद ठिठुरते रहते और
कम्बल बच्चों पर डालते थे।
मंदिर में हाथ जोड़ तो
रोज सर झुकाते हैं,
पर माता-पिता के धोक खाने
होली दीवाली जाते हैं।
मैं आज की युवा पीढी को
इक बात बताना चाहूँगा,
उनके अंत:मन में एक
दीप जलाना चाहूँगा
ईश्वर ने जिसे जोड़ा है
उसे तोड़ना ठीक नहीं,
ये रिश्ते हमारी जागीर हैं
ये कोई भीख नहीं।
अपनों के बीच की दूरी
अब सारी मिटा लो,
रिश्तों की दरार अब भर लो
उन्हें फिर से गले लगा लो।
अपने आप से
सारी उम्र नज़रें चुराओगे,
अपनों के ना हुए तो
किसी के ना हो पाओगे
सब कुछ भले ही मिल जाए
पर अपना अस्तित्व गँवाओगे
बुजुर्गों की छत्र छाया में ही
महफूज रह पाओगे।
होली बेमानी होगी
दीपावली झूठी होगी,
अगर पिता दुखी होगा
और माँ रूठी होगी।।
अन्तःकरण को छूने वाली है ये कविता, जिसने भी लिखी है उसको प्रणाम🙏
के सामने, क्योंकि मुझे मेरा धर्म दूसरे धर्म का अपमान
करने की इजाजत नहीं देता, उठा लेता हूँ तलवार जब
उठती है उँगली राम नाम पर, क्योंकि मेरा धर्म मुझे
अपने धर्म का अपमान सहने की इजाजत नहीं देता
🚩।। जय जय श्री राम ।।🚩
🔫: : रहे सलामत जिंदगी उनकी,
जो मेरी खुशी की फरियाद करते है.
ऐ खुदा उनकी जिंदगी खुशियों से भरदे, जो मुझे याद
करने में अपना एक पल बर्बाद करते है…..!!
////////
हर चीज़ तौलते हैं वो बाज़ार की तरह, उनकी दुआ सलाम है व्यापार की तरह, मुद्दे की बात पहले जहाँ थी वहीं रही, आए भी वो गये भी वो अखबार की तरह.
////////
किसी ने घड़े से पूछा,
कि तुम इतने ठंडे क्यों हो ?
अति अर्थ पूर्ण उत्तर था घड़े का: जिसका अतीत भी मिट्टी, और भविष्य भी मिट्टी,
उसे गर्मी किस बात पर होगी. .!!
ये बात हर इंसान भी याद रखे तो कितना अच्छा हो ।
///////////
: मेरा दिल मुझसे कहता है वोवापस आएगी,मैं दिल से कहता हूँ
उसनेतुझे भी झूठ बोलना सिखा दिया..
[
///////
: एक जनाजा और एक बारात टकरा गए;
उनको देखने वाले भी चकरा गए;
ऊपर से आवाज आई-ये कैसी विदाई है;
महबूब की डोली देखने साजन कि अर्थी भी आई है...
[
/////////
हमारे इश्क का अंदाज कुछ अजीब सा था दोस्तों,लोग इन्सान देखकर मोहब्बत करते है, हमनें मोहब्बत करके इन्सान देख लिया ..
///////////
: जिसको भी देखा रोते हुए ही देखा.
मुझे तो ये "मोहब्बत"रुमाल बनाने वालो की साजिश लगती है|
💘💘
////////
#सच्चाप्यार - जब कोई आपके वोटर कार्ड या आधार कार्ड की तस्वीर देखकर आपसे प्यार करने लगता है..
[
//////////
: रख दे मेरे होठो पे अपने होंठ कुछ इस तरह,...... या तेरी प्यास बुझ जाये या मेरी साँस रुक जाये...
!❤💏
//////
बड़े अनमोल हे ये खून के रिश्ते
इनको तू बेकार न कर ,
मेरा हिस्सा भी तू ले ले मेरे भाई
घर के आँगन में दीवार ना कर..
💘💘
: ए दिल तू तन्हाइयो में रहने का आदि हो जा;
जिन्हें तू याद करता है वो बड़े मसरूफ़ रहने लगे है..!
💘💘
: बुलंदियो तक पहुंचना चाहता हूँ मै भी,....
पर गलत राहो से होकर जॉऊ , ..
इतनी जल्दी भी नही,...
आदते खराब नही, शौक ऊँचे है,...
वरना ख्वाबों की इतनी औकात नही कि ..
हम देखे और पूरा न हो........
/////////
शब्दों से ही लोगों के दिलों पे राज़ किया जाता हैं.
चेहरे का क्या किसी भी हादसे मे बदल सकता हैं
💘💘
: "जीत" किसके लिए, 'हार' किसके लिए
ं 'जिंदगी भर' ये 'तकरार' किसके लिए
जो भी 'आया' है वो 'जायेगा' एक दिन
फिर ये इतना "अहंकार" किसके लिए........
//-/////
: किसी ने घड़े से पूछा,
कि तुम इतने ठंडे क्यों हो ?
अति अर्थ पूर्ण उत्तर था घड़े का: जिसका अतीत भी मिट्टी, और भविष्य भी मिट्टी,
उसे गर्मी किस बात पर होगी. .!!
ये बात हर इंसान भी याद रखे तो कितना अच्छा हो
[
///////
"सफर का मजा लेना हो तो साथ में सामान कम रखिए
और
जिंदगी का मजा लेना हैं तो दिल में अरमान कम रखिए !!
तज़ुर्बा है मेरा.... मिट्टी की पकड़ मजबुत होती है,
संगमरमर पर तो हमने .....पाँव फिसलते देखे हैं...!
जिंदगी को इतना सिरियस लेने की जरूरत नही यारों,
यहाँ से जिन्दा बचकर कोई नही जायेगा!
जिनके पास सिर्फ सिक्के थे वो मज़े से भीगते रहे बारिश में ....
जिनके जेब में नोट थे वो छत तलाशते रह गए...
///////
बहुत सुँदर पंक्तियाँ- "संयुक्त परिवार"
वो पंगत में बैठ के
निवालों का तोड़ना,
वो अपनों की संगत में
रिश्तों का जोडना,
वो दादा की लाठी पकड़
गलियों में घूमना,
वो दादी का बलैया लेना
और माथे को चूमना,
सोते वक्त दादी पुराने
किस्से कहानी कहती थीं,
आंख खुलते ही माँ की
आरती सुनाई देती थी,
इंसान खुद से दूर
अब होता जा रहा है,
वो संयुक्त परिवार का दौर
अब खोता जा रहा है।
माली अपने हाथ से
हर बीज बोता था,
घर ही अपने आप में
पाठशाला होता था,
संस्कार और संस्कृति
रग रग में बसते थे,
उस दौर में हम
मुस्कुराते नहीं
खुल कर हंसते थे।
मनोरंजन के कई साधन
आज हमारे पास है,
पर ये निर्जीव है
इनमें नहीं साँस है,
आज गरमी में एसी
और जाड़े में हीटर है,
और रिश्तों को
मापने के लिये
स्वार्थ का मीटर है।
वो समृद्ध नहीं थे फिर भी
दस दस को पालते थे,
खुद ठिठुरते रहते और
कम्बल बच्चों पर डालते थे।
मंदिर में हाथ जोड़ तो
रोज सर झुकाते हैं,
पर माता-पिता के धोक खाने
होली दीवाली जाते हैं।
मैं आज की युवा पीढी को
इक बात बताना चाहूँगा,
उनके अंत:मन में एक
दीप जलाना चाहूँगा
ईश्वर ने जिसे जोड़ा है
उसे तोड़ना ठीक नहीं,
ये रिश्ते हमारी जागीर हैं
ये कोई भीख नहीं।
अपनों के बीच की दूरी
अब सारी मिटा लो,
रिश्तों की दरार अब भर लो
उन्हें फिर से गले लगा लो।
अपने आप से
सारी उम्र नज़रें चुराओगे,
अपनों के ना हुए तो
किसी के ना हो पाओगे
सब कुछ भले ही मिल जाए
पर अपना अस्तित्व गँवाओगे
बुजुर्गों की छत्र छाया में ही
महफूज रह पाओगे।
होली बेमानी होगी
दीपावली झूठी होगी,
अगर पिता दुखी होगा
और माँ रूठी होगी।।
अन्तःकरण को छूने वाली है ये कविता, जिसने भी लिखी है उसको प्रणाम🙏
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