शनिदेव की पूजा में तिल और तेल क्यों?
( संकलित )
काला तिल, तेल, काला वस्त्र, काली उड़द शनि देव को अत्यंत प्रिय है. मान्यता है कि काला तिल और तेल से शनिदेव जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं. यदि शनिदेव की पूजा इन वस्तुओं से की जाए तो ऐसी पूजा सफल मानी जाती है.
शनि देव महाराज पर तेल चढाया जाता हैं,
इस संबंध में आनंद रामायण में एक कथा का उल्लेख मिलता हैं।
जब भगवान राम की सेना ने सागर सेतु बांध लिया, तब राक्षस इसे हानि न पहुंचा सकें, उसके लिए पवन सुत हनुमान को उसकी देखभाल की जिम्मेदारी सौपी गई।
जब हनुमान जी शाम के समय अपने इष्टदेव भगवान राम के ध्यान में मग्न थे, तभी सूर्य पुत्र शनि ने अपना काला कुरूप चेहरा बनाकर क्रोधपूर्ण कहा- हे वानर मैं देवताओ में शक्तिशाली शनि हूँ। सुना हैं, तुम बहुत बलशाली हो। आँखें खोलो और मेरे साथ युद्ध करो, मैं तुमसे युद्ध करना चाहता हूँ।
इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा- इस समय मैं अपने प्रभु को याद कर रहा हूं। आप मेरी पूजा में विघन मत डालिए। आप मेरे आदरणीय है। कृपा करके आप यहा से चले जाइए।
लेकिन,जब शनि देव लड़ने पर उतर आए, तो हनुमान जी ने अपनी पूंछ में लपेटना शुरू कर दिया। फिर उन्हे कसना प्रारंभ कर दिया जोर लगाने पर भी शनि उस बंधन से मुक्त न होकर पीड़ा से व्याकुल होने लगे। हनुमान ने फिर सेतु की परिक्रमा कर शनि के घमंड को तोड़ने के लिए पत्थरो पर पूंछ को झटका दे-दे कर पटकना शुरू कर दिया। इससे शनि का शरीर लहुलुहान हो गया, जिससे उनकी पीड़ा बढ़ती गई।
तब शनि देव ने हनुमान जी से प्रार्थना की - मुझे बधंन मुक्त कर दीजिए। मैं अपने अपराध की सजा पा चुका हूँ, फिर मुझसे ऐसी गलती नही होगी।
इस पर हनुमान जी बोले - मैं तुम्हे तभी छोडूंगा, जब तुम मुझे वचन दोगे कि श्री राम के भक्त को कभी परेशान नही करोगे। यदि तुमने ऐसा किया, तो मैं तुम्हें कठोर दंड दूंगा।
शनि ने गिड़गिड़ाकर कहा - मैं वचन देता हूं कि कभी भूलकर भी आपके और श्री राम के भक्त की राशि पर नही आऊँगा। आप मुझे छोड़ दें।
तभी हनुमान जी ने शनिदेव को छोड़ दिया। फिर हनुमान जी से शनिदेव ने अपने घावों की पीड़ा मिटाने के लिए तेल मांगा। हनुमान जी ने जो तेल दिया, उसे घाव पर लगाते ही शनि देव की पीड़ा मिट गई।
उसी दिन से शनिदेव को तेल चढ़ाया जाता हैं, जिससे उनकी पीडा शांत हो जाती हैं और वे प्रसन्न हो जाते हैं।
लेकिन एक मंदिर ऐसा हैं जहां कलियुग में शनि को तेल चढ़ाने की मनाही की गई है।
मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में एक मंदिर है। इस मंदिर में कई देवी-देवताओं के साथ महाभारत और रामयाण काल के असुरों की भी मूर्तियां है।
इस मंदिर में एक बोर्ड पर शनि महाराज का संदेश लिखा हुआ है 'हे कलियुग वासियो तुम मुझ पर तेल चढ़ाना छोड़ दो तो मैं तुम्हारा पीछा छोड़ दूंगा'
यानी कलियुग में जब तक शनि महाराज को तेल अर्पित करते रहेंगे तब तक शनि महाराज आपको सताना छोड़ेंगे नहीं। यहां शनि के प्रभाव से बचने का एक बहुत ही आसान तरीका बताया गया है।
इस मंदिर के नियम के अनुसार श्रद्घालु को इस शर्त पर मंदिर में प्रवेश की इजाजत दी जाती है कि आप १०८ बार राम नाम लिखेंगे।
नेता हों या आम जनता। जो भी इस मंदिर में प्रवेश करता है उसे इस नियम का पालन करना होता है। बिना राम नाम लिखे कोई भी मंदिर से बाहर नहीं आ सकता।
मंदिर में शनि के संदेश में लिखा है कि १०८ बार राम नाम लिखना शुरू कर दो तो मैं तुमको सारी विपत्तियों से मुक्त कर दूंगा।'
तुलसीदास जी ने भी लिखा है 'कलियुग केवल नाम अधारा सुमिरि सुमिरि नर उतरहिं पारा'। यानी कलियुग में राम नाम ही केवल मुक्ति का आधार है।
( संकलित )
काला तिल, तेल, काला वस्त्र, काली उड़द शनि देव को अत्यंत प्रिय है. मान्यता है कि काला तिल और तेल से शनिदेव जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं. यदि शनिदेव की पूजा इन वस्तुओं से की जाए तो ऐसी पूजा सफल मानी जाती है.
शनि देव महाराज पर तेल चढाया जाता हैं,
इस संबंध में आनंद रामायण में एक कथा का उल्लेख मिलता हैं।
जब भगवान राम की सेना ने सागर सेतु बांध लिया, तब राक्षस इसे हानि न पहुंचा सकें, उसके लिए पवन सुत हनुमान को उसकी देखभाल की जिम्मेदारी सौपी गई।
जब हनुमान जी शाम के समय अपने इष्टदेव भगवान राम के ध्यान में मग्न थे, तभी सूर्य पुत्र शनि ने अपना काला कुरूप चेहरा बनाकर क्रोधपूर्ण कहा- हे वानर मैं देवताओ में शक्तिशाली शनि हूँ। सुना हैं, तुम बहुत बलशाली हो। आँखें खोलो और मेरे साथ युद्ध करो, मैं तुमसे युद्ध करना चाहता हूँ।
इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा- इस समय मैं अपने प्रभु को याद कर रहा हूं। आप मेरी पूजा में विघन मत डालिए। आप मेरे आदरणीय है। कृपा करके आप यहा से चले जाइए।
लेकिन,जब शनि देव लड़ने पर उतर आए, तो हनुमान जी ने अपनी पूंछ में लपेटना शुरू कर दिया। फिर उन्हे कसना प्रारंभ कर दिया जोर लगाने पर भी शनि उस बंधन से मुक्त न होकर पीड़ा से व्याकुल होने लगे। हनुमान ने फिर सेतु की परिक्रमा कर शनि के घमंड को तोड़ने के लिए पत्थरो पर पूंछ को झटका दे-दे कर पटकना शुरू कर दिया। इससे शनि का शरीर लहुलुहान हो गया, जिससे उनकी पीड़ा बढ़ती गई।
तब शनि देव ने हनुमान जी से प्रार्थना की - मुझे बधंन मुक्त कर दीजिए। मैं अपने अपराध की सजा पा चुका हूँ, फिर मुझसे ऐसी गलती नही होगी।
इस पर हनुमान जी बोले - मैं तुम्हे तभी छोडूंगा, जब तुम मुझे वचन दोगे कि श्री राम के भक्त को कभी परेशान नही करोगे। यदि तुमने ऐसा किया, तो मैं तुम्हें कठोर दंड दूंगा।
शनि ने गिड़गिड़ाकर कहा - मैं वचन देता हूं कि कभी भूलकर भी आपके और श्री राम के भक्त की राशि पर नही आऊँगा। आप मुझे छोड़ दें।
तभी हनुमान जी ने शनिदेव को छोड़ दिया। फिर हनुमान जी से शनिदेव ने अपने घावों की पीड़ा मिटाने के लिए तेल मांगा। हनुमान जी ने जो तेल दिया, उसे घाव पर लगाते ही शनि देव की पीड़ा मिट गई।
उसी दिन से शनिदेव को तेल चढ़ाया जाता हैं, जिससे उनकी पीडा शांत हो जाती हैं और वे प्रसन्न हो जाते हैं।
लेकिन एक मंदिर ऐसा हैं जहां कलियुग में शनि को तेल चढ़ाने की मनाही की गई है।
मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में एक मंदिर है। इस मंदिर में कई देवी-देवताओं के साथ महाभारत और रामयाण काल के असुरों की भी मूर्तियां है।
इस मंदिर में एक बोर्ड पर शनि महाराज का संदेश लिखा हुआ है 'हे कलियुग वासियो तुम मुझ पर तेल चढ़ाना छोड़ दो तो मैं तुम्हारा पीछा छोड़ दूंगा'
यानी कलियुग में जब तक शनि महाराज को तेल अर्पित करते रहेंगे तब तक शनि महाराज आपको सताना छोड़ेंगे नहीं। यहां शनि के प्रभाव से बचने का एक बहुत ही आसान तरीका बताया गया है।
इस मंदिर के नियम के अनुसार श्रद्घालु को इस शर्त पर मंदिर में प्रवेश की इजाजत दी जाती है कि आप १०८ बार राम नाम लिखेंगे।
नेता हों या आम जनता। जो भी इस मंदिर में प्रवेश करता है उसे इस नियम का पालन करना होता है। बिना राम नाम लिखे कोई भी मंदिर से बाहर नहीं आ सकता।
मंदिर में शनि के संदेश में लिखा है कि १०८ बार राम नाम लिखना शुरू कर दो तो मैं तुमको सारी विपत्तियों से मुक्त कर दूंगा।'
तुलसीदास जी ने भी लिखा है 'कलियुग केवल नाम अधारा सुमिरि सुमिरि नर उतरहिं पारा'। यानी कलियुग में राम नाम ही केवल मुक्ति का आधार है।
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