शुक्रवार, 18 सितंबर 2015

Jaha bhi ram katah hota hai HANUMAN ji ake sunte hai

एक समय की बात है अयोध्या के पहुंचे हुए संत श्री रामायण कथा सुना रहे थे। रोज एक घंटा प्रवचन करते कितने ही लोग आते और आनंद विभोर होकर जाते।

साधु महाराज का नियम था रोज कथा शुरू
करने से पहले "आइए हनुमंत जी बिराजिए"कहकर हनुमानजी का आहवान करते थे, फिर एक घण्टा प्रवचन करते थे। एक वकील साहब हर रोज कथा सुनने आते। वकील साहब के भक्तिभाव पर एकदिन
तर्कशीलता हावी हो गई उन्हें लगा कि महाराज
रोज "आइए हनुमंत बिराजिए" कहते है तो क्या
हनुमानजी सचमुच आते होंगे !

अत: वकील ने महात्माजी से एक दिन पूछ ही
डाला- महाराजजी आप रामायण की कथा
बहुत अच्छी कहते है हमें बड़ा रस आता है
परंतु आप जो गद्दी प्रतिदिन हनुमानजी को देते
है उसपर क्या हनुमानजी सचमुच बिराजते है ?
साधु महाराज ने कहा… हाँ यह मेरा व्यक्तिगत
विश्वास है कि रामकथा हो रही हो तो
हनुमानजी अवश्य पधारते है वकील ने कहा…
महाराज ऐसे बात नहीं बनगी। हनुमानजी यहां
आते है इसका कोई सबूत दीजिए

वकील ने कहा… आप लोगों को प्रवचन सूना
रहे है सो तो अच्छा है लेकिन अपने पास
हनुमानजी को उपस्थिति बताकर आप
अनुचित तरीके से लोगों को प्रभावित कर रहे
है आपको साबित करके दिखाना चाहिए कि
हनुमानजी आपकी कथा सुनने आते है
महाराजजी ने बहुत समझाया कि भैया आस्था
को किसी सबूत की कसौटी पर नहीं कसना
चाहिए यह तो भक्त और भगवान के बीच का
प्रेमरस है व्यक्तिगत श्रद्घा का विषय है आप
कहो तो मैं प्रवचन बंद कर दूँ या आप कथा में
आना छोड़ दो

लेकिन वकील नहीं माना, कहता ही रहा कि
आप कई दिनो से दावा करते आ रहे है यह
बात और स्थानों पर भी कहते होगे इसलिए
महाराज आपको तो साबित करना होगा कि
हनुमानजी कथा सुनने आते है !

इस तरह दोनों के बीच वाद-विवाद होता रहा
मौखिक संघर्ष बढ़ता चला गया हारकर साधु
ने कहा… हनुमानजी है या नहीं उसका सबूत
कल दिलाऊंगा। कल कथा शुरू हो तब प्रयोग
करूंगा।

जिस गद्दी पर मैं हनुमानजी को विराजित होने
को कहता हूं आप उस गद्दी को अपने घर ले
जाना कल अपने साथ उस गद्दी को लेकर
आना फिर मैं कल गद्दी यहाँ रखूंगा

मैं कथा से पहले हनुमानजी को बुलाऊंगा फिर
आप गद्दी ऊँची करना, यदि आपने गद्दी ऊँची
कर ली तो समझना कि हनुमान जी नहीं है
वकील इस कसौटी के लिए तैयार हो गया
महाराज ने कहा… हम दोनों में से जो पराजित
होगा वह क्या करेगा, इसका निर्णय भी कर लें ?
यह तो सत्य की परीक्षा है वकील ने कहा-मैं
गद्दी ऊँची न कर सका तो वकालत छोड़कर
आपसे दीक्षा लूंगा। आप पराजित हो गए तो
क्या करोगे?

साधु ने कहा… मैं कथावाचन छोड़कर आपके
ऑफिस का चपरासी बन जाऊंगा। अगले दिन
कथापंडाल में भारी भीड़ हुई जो लोग कथा
सुनने रोज नही आते थे वे भी भक्ति, प्रेम और
विश्वास की परीक्षा देखने आए।

काफी भीड़ हो गई। पंडाल भर गया, श्रद्घा और
विश्वास का प्रश्न जो था। साधु महाराज और
वकील साहब कथा पंडाल में प्यारे गद्दी रखी
गई। महात्माजी ने सजल नेत्रों से मंगलाचरण
किया और फिर बोले… आइए हनुमानजी
पधारिए

ऐसा बोलते ही साधुजी की आंखे सजल हो
उठी। मन ही मन साधु बोले… प्रभु! आज मेरा
प्रश्न नहीं बल्कि रघुकुल रीति की पंरपरा का
सवाल है मैं तो एक साधारण जन हूं। मेरी
भक्ति और आस्था की लाज रखना।

फिर वकील साहब को निमंत्रण दिया… आइए
गद्दी ऊँची कीजिए। लोगों की आँखे जम गई।
वकील साहब खड़ेे हुये। उन्होंने गद्दी लेने के
लिए हाथ बढ़ाया पर गद्दी को स्पर्श भी न कर
सके !

जो भी कारण हो उन्होंने तीन बार हाथ बढ़ाया
किन्तु तीनों बार असफल रहे। महात्माजी देख
रहे थे गद्दी को पकड़ना तो दूर वो गद्दी की छू
भी न सके तीनों बार वकील साहब पसीने से
तर-बतर हो गए।

वह वकील साधु के चरणों में गिर पड़े और
बोले… महाराजा उठाने का मुझे मालूम नहीं पर
मेरा हाथ गद्दी तक भी पहुंच नहीं सकता, अत: मैं
अपनी हार स्वीकार करता हूं।

कहते है कि श्रद्घा और भक्ति के साथ की गई
आराधना में बहुत शक्ति होती है मानों तो देव
नहीं तो पत्थर। प्रभु की मूर्ति तो पाषाण की ही
होती है लेकिन भक्त के भाव से उसमें प्राण
प्रतिष्ठा होती है और प्रभु बिराजते है
तुलसीदासजी कहते है- साधु चरित सुभ चरित
कषासू निरस बिसद गुनमय फल जासू

साधु का स्वभाव कपास जैसा होना चाहिए जो
दूसरों के अवगुण को ढककर ज्ञान को अलख
जगाए। जो ऐसा भाव प्राप्त कर ले वही साधु है।

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