बुधवार, 27 मई 2015

bharat ki bahadur beti)कराची एयरपोर्ट की घटना एक विमान में 23 साल की अकेली पतली-दुबली भारतीय लड़की 17 घंटे तक आतंकवादियों को मात देती रही

कराची एयरपोर्ट की घटना
एक विमान में 23 साल की अकेली
पतली-दुबली भारतीय
लड़की 17 घंटे तक आतंकवादियों को मात
देती रही। उसने करीब
380 लोगों को बचा लिया, लेकिन अंत में कुछ बच्चों को विमान से
बाहर निकालते वक्त एक दहशतगर्द ने उसके
सीने में गोली उतार दी।
अमेरिकी एयरवेज का विमान पैन एम73,
करीब� 380 यात्री लेकर पाकिस्तान
के करांची हवाई अड्डे पर पायलट का इंतजार कर
रहा था। अचानक उसमें चार हथियारबंद आतंकवादी
घुस गए और सभी यात्रियों को गन प्वांइट पर ले
लिया।
आतंकियों ने पाक सरकार से पायलट भेजने की मांग
की, ताकि वो विमान को अपने मन मुताबिक जगह पर
ले जा सकें, पाक सरकार ने मना कर दिया।
इससे भन्नाए आतंकियों ने विमान में बैठे अमेरिकी
यात्रियों को मारने का फैसला कर लिया। वो अमेरिका के जरिए पाक
सरकार पर दबाव बनाने की ताक में थे। लेकिन उन्हें
पता था इसी विमान की एक अटेंडेंट एक
भारतीय विरांगना है। जिससे वो टकरा
नहीं पाएंगे।
एक अमेरिकी को नहीं मरने दिया
आतंकियों ने गलती से उसी
वीर भारतीय लड़की को
बुला लिया और विमान में बैठे सभी यात्रियों के पासपोर्ट
इकट्ठा करने को कहा। ताकि वो अमेरिकी नागरिकों को
चुन-चुन कर मार सकें।
लेकिन भारतीय वीरांगना ने दिन में
आतंकियों की आंखों में धूल झोंक दिया। विमान में
अमेरिकी यात्री बैठे हुए थे, पर एक
भी आतंकियों के हवाले नहीं हुए।
लड़की ने सबके पासपोर्ट छुपा लिए। यह देख
आतंकी तिलमिला उठे। उन्होंने गोराचिट्टा दिखने वाले
एक अंग्रेज को खींचकर वीमाने के गेट
पर ले आए और गोली मारने की
तैयारी करने लगे।
लेकिन यहां भी लड़की ने अपने
कार्यकुशलता का परिचय दिया और आतंकियों का ऐसा ‌दिमाग घूमाया
कि उन्होंने उस ब्रिटिश को छोड़ दिया। आतंकी और
पाक सरकार में लगातार खींचातानी
चलती रही। इधर 380 डरे हुए लोगों
में एक अकेली भारतीय
लड़की डंटी रही।

खत्म हो गया विमान का ईंधन, दगने लगीं गोलियां
लड़की ने 16 घंटे हिम्मत बांधे रखी।
किसी भी यात्री को आंच
नहीं आने दी। लेकिन उसे अचानक
खयाल आया कि अब विमान का ईंधन खत्म होने वाला है। ऐसा
हुआ तो विमान में अंधेरा छा जाएगा और ‌भागदौड़ मच
जाएगी। जिसमें बेतहाशा खून बहेगा।
लड़की ने फिर अपने भारतीय होने
की पहचान दी। उसने तत्काल
आतंकियों को खाने का पैकेट दिया और यात्रियों को
आपातकालीन खिड़कियों के बारे में तेजी
समझाया। तभी विमान का ईंधन खत्म हो गया। चारों
तरफ अंधेरा छा गया। प्लान के मुताबिक लड़की ने
यात्रियों को प्लेन से नीचे कूदाना शुरू कर दिया। लेकिन
इसी बीच दहशतगर्दों ने गोलियां दागना
शुरू कर दी।
लेकिन उस बहादुर लड़की ने एक शख्स को
नहीं मरने दिया। जल्दबाजी और
बेसुधगी के चलते कुछ घायल जरूर हो गए।
दूसरी तरफ मौका देखकर पाक कमांडो
भी विमान पहुंच गए।

और उस बहादुर लड़की के सीने में
उतर गई गोली
धुआंधार गोलीबारी के बीच
एक तरफ सारे लोग भागने में लगे थे, दूसरी तरफ वो
भारत की बेटी दुर्दांत आतंकियों को
तरह तरह से छकाने में लगी थी।
उसने आतंकियों को उलझाए रखा ताकि वो किसी को
नुकसान न पहुंचा सकें। और वो कामयाब भी
रही। सबके निकल जाने के बाद अंत में जब वो
विमान से निकलने लगी, तो अचानक उसे कुछ बच्चों
के रोने की आवाज सुनाई दी।
वो भारत की बेटी मां तो
नहीं बनी थी, लेकिन वो
रोते हुए बच्चों को छोड़कर भागना ठीक
नहीं समझी। वो वापस विमान में आ
गई और बच्चों को ढूंढ निकाला। जैसे ही उन्हें
लेकर एक आपातकालीन खिड़की ओर
बढ़ी एक आतंकी उसके सामने आ
खड़ा हुआ।
उसने बच्चों को खिड़की से नीचे धकेल
दिया और आतंकी सारी गोलियां अपने
सीने में खा गई। 17 घंटे तक चले इस खून खराबे
में अंततः 20 लोगों की जान चली गई। वो
भारतीय वीरांगना भी
शहीद हो गई।

नीरजा भनोट है उस भारत की
बेटी का नाम
पाक की धरती पर विश्वभर के लोगों
की जान की रक्षा करने
वाली उस भारत की बेटी का
नाम है नीरजा भनोट। घटना के दो दिन बाद वो अपना
23वां जन्मदिन मनाने वाली थी। लेकिन
सपने अधूरे रह गए।
2004 में इस बात का पता चला कि 5 सितंबर, 1986 में हुई
उस भयावह घटना के पीछे लीबिया के
चरमपंथियों का हाथ था। इस पूरे मामले को और भारत
की बेटी नीरजा के बलिदान
को याद कराने के लिए रूपहले पर्दे पर 'नीरजा
भनोट' आ रही है।
नीरजा भनोट के किरदार में सोनम कपूर हैं। लास्ट
नाइट इसकी शूटिंग शुरुआत की गई।
मुंबई एयरपोर्ट पर पहली शूटिंग हुई। डायरेक्टर
राम माधवानी का कहना है कि इंडस्ट्री
के कई बड़े नामों समेत 200 कलाकार फिल्म बनाने में सहयोग
कर रहे हैं। इसकी बानगी मुहुर्त
शॉट पर आमिर खान की मौजूदगी ने
दी।
नीरजा को भारत ने सर्वोच्च नागरिक सम्मान अशोक
चक्र दिया था, पाक ने तमगा-ए-इन्सानियत। भारत ने उनके नाम
पर डाक टिकट भी जारी किया ॥।।।॥।।॥
इस भारतीय बेटी ने साबित कर दिया हिन्दुस्तानी कितने बहादुर होते है।


शुक्रवार, 22 मई 2015

झूठे सीरियल कहते हैं की जोधा बाई अकबर की पत्नि थी जब की हकीकत यह है की जोधा बाई का पूरे इतिहास में कहीं कोइ नाम नहीं है,

2- तुजुक-ए-जहांगिरी /Tuzuk-E-Jahangiri
(जहांगीर की आत्मकथा /BIOGRAPHY of Jahangir)
में भी जोधा का कहीं कोई उल्लेख नही है
(There is no any name of JODHA Bai Found in
Tujuk -E- Jahangiri ) जब की एतिहासिक दावे और
झूठे सीरियल यह कहते हैं की जोधा बाई अकबर
की पत्नि व जहांगीर की माँ थी जब की हकीकत
यह है की जोधा बाई का पूरे इतिहास में कहीं
कोइ नाम नहीं है, जोधा का असली नाम {मरियम-
उल-जमानी} ( Mariamuz-Zamani ) था जो कि
आमेर के राजा भारमल के विवाह के दहेज में
आई परसीयन दासी की पुत्री थी उसका लालन
पालन राजपुताना में हुआथा इसलिए वह
राजपूती रीती रिवाजों को भली भाँती
जान्ती थी और राजपूतों में उसे हीरा
कुँवरनी (हरका) कहते थे, यह राजा भारमल की
कूटनीतिक चाल थी, राजा भारमल जान्तेथे की
अकबर की सेनाजंसंख्या में उनकीसेना से
बड़ी है तोराजा भारमल ने हवसी अकबर बेवकूफ
बनाकर उस्से संधी करना ठीक समझा , इससे
पूर्व में अकबर ने एक बार राजा भारमल की
पुत्री से विवाह करने का प्रस्ताव रखा था
जिस पर भारमल ने कड़े शब्दों में क्रोधित
होकर प्रस्ताव ठुकरा दिया था , परंतु बाद में
राजा के दिमाग में युक्ती सूझी , उन्होने
अकबर के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और
परसियन दासी को हरका बाइ बनाकर उसका
विवाह रचा दिया , क्योकी राजा भारमल ने
उसका कन्यादान किया था इसलिये वह राजा
भारमल की धर्म पुत्री थी लेकिन वह
कचछ्वाहाराजकुमारी नही थी ।। उन्होंने यह
प्रस्ताव को एक AGREEMENT की तरहया
राजपूती भाषा में कहें तो हल्दी-चन्दन
किया था
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Hardik Singh Negi
अरब में बहुत सी किताबों में लिखा है written
in parsi ( “ ﻭﻧﺤﻦ ﻓﻲ ﺷﻚ ﺣﻮﻝ ﺃﻛﺒﺮ ﺃﻭ ﺟﻌﻞ ﺍﻟﺰﻭﺍﺝ
ﺭﺍﺟﺒﻮﺕ ﺍﻷﻣﻴﺮﺓ ﻓﻲ ﻫﻨﺪﻭﺳﺘﺎﻥ ﺁﺭﻳﺎﺱ ﻛﺬﺑﺔ ﻟﻤﺠﻠﺲ ”)
हम यकीन नहीं करते इस निकाह पर हमें संदेह है
।। 4- ईरान के मल्लिक नेशनल संग्रहालय एन्ड
लाइब्रेरी में रखी किताबों में इन्डियन
मुघलों का विवाह एक परसियन दासी से करवाए
जाने की बात लिखी है ।। 5- अकबर-ए-महुरियत
में यह साफ-साफ लिखा है कि (written in
persian “ ﮨﻢ ﺭﺍﺟﭙﻮﺕﺷﮩﺰﺍﺩﯼ ﯾﺎ ﺍﮐﺒﺮ ﮐﮯ ﺑﺎﺭﮮ ﻣﯿﮟ ﺷﮏ
ﻣﯿﮟ ﮨﯿﮟ ” (we dont have trust in this Rajput
marriagebecause at the time of mariage there was
not even a single tear in any ones eye even then
the Hindus God Bharai Rasam was also not
Happened ) हमें इस हिन्दू निकाह पर संदेह है
क्यौकी निकाह के वक्त राजभवन में किसी की
आखों में आँसू नही थे और ना ही हिन्दू गोद
भरई की रस्म हुई थी ।। 6- सिक्ख धर्म के गुरू
अर्जुन और गुरू गोविन्द सिंहने इस विवाह के
समययह बात स्वीकारी थी कि (written in Punjabi
font - “ਰਾਜਪੁਤਾਨਾ ਆਬ ਤਲਵਾਰੋ ਓਰ ਦਿਮਾਗ ਦੋਨੋ ਸੇ ਕਾਮ ਲੇਨੇ ਲਾਗਹ ਗਯਾ ਹੈ “ ) कि
क्षत्रीय , ने अब तलवारों और बुद्धीदोनो का
इस्तेमाल करना सीख लिया है , मत्लब
राजपुताना अब तलवारों के साथ-साथ बुद्धी
का भी काम लेने लगा है ।।( At the time of this
fake mariage the Guru of Sikh Religion Arjun Dev
and Guru Govind Singh also admited that now
Kshatriya Rajputs have learned to use the swords
with brain also !! ) ै7- 17वी सदी में जब परसि
भारत भ्रमन के लिये आये तब उन्होंने अपनी
रचना (Book) परसी तित्ता/PersiTitta में यह
लिखा है की यह भारतीय राजा एक परसियन
वैश्या को सही हरम में भेज रहा है , अत: हमारे
देव (अहुरा मझदा) इस राजा को स्वर्ग दें ( In
17 th centuary when the Persian came to India So
they wrote in there book (Persi Titta) that This
Indian King is sending a Persian prostitude to her
right And deservable place and May our God
(Ahura Mazda) give Heaven to this Indian King . 8-
हमारे इतिहास में राव और भट्ट होते हैं , जो
हमारा ईतिहास लिखते हैं!! उन्होंने साफ साफ
लिखा है की गढ़आमेर आयी तुरकान फौज , ले
ग्याली पसवान कुमारी ,राण राज्या राजपूता
लेली इतिहासा पहलीबार ले बिन लड़िया जीत
(1563 AD )। मत्लब आमेर किले में मुघल फौज
आती है और एक दासी की पुत्री को ब्याह कर
ले जाती है, हे रण के लिये पैदा हुए राजपूतों
तुमने इतिहास में ले ली बिना लड़े पहली जीत
1563 AD (In our Rajputana History our History
writers were Raos and Bhatts They clearly wrote
Garh Amer ayi Turkaan Fauj Le gyali Paswaan
Kumari , Ran Rajya Rajputa leli itihasa Pehlibar le
bin ladiya jeet !! This means that when Mughal
army came at Amer fort their Emperor got married
with persian female servant of Rajputs The Rajputs
who born for war And in history this was the first
time that the Rajput has got a victory without any
violence 9-यह वो अकबर महान था जिसके समय मे
लाखों राजपुतानी अपनी इज्जत बचाने के
लिये जोहर की आगमें कूद गई ( अगनी कुन्ड
में ) कूद गई ताकी मुघल सेना उन्हे छू भी ना
सके, क्या उनका बलिदानव्यर्थ हे जो हम
उसजलाल उद्दीन मोहोम्मद अकबर को अकबर महान
कहते ह

गुरुवार, 21 मई 2015

यदि भक्ति में भक्त कोई सेवा भूल भी जाता है तो भगवान अपनी तरफ से पूरा कर लेते हैं।

🌸💐🌸💐🌸💐🌸💐🌸💐🌸
"जय" बोलने से मन को शांति मिलती हैं...
"श्री" बोलने से शक्ति मिलती हैं...
"राधे" बोलने से पापो से मुक्ति मिलती हैं...
और निरंतर ""जय श्री राधे"" बोलने से
भक्ति मिलती हैं...
और भक्ति से क्या मिलता हैं जानते
हो आप.???
भक्ति से मेरे कन्हैंया मिलते हैं.......
तो प्यार से बोलो """जय श्री  राधे""""🙌🙌
जय जय श्री राधे श्याम 🙌🙌
🌸💐🌸💐🌸💐🌸💐🌸💐🌸
ऐ कन्हैया
!!..सिर्फ दो ही वक़्त पर आपका साथ चाहिए,
एक तो अभी और एक हमेशा के लिए..!!
!!..!!..........प्रेम से कहिये श्री राधे.........!!..!!
👌जब आप मंदिर नहीं जा पाए तो
यह मत कहो कि वक्त नहीं मिला..!

बल्कि यह सोचो कि...
ऐसा कौन सा काम किया, जिसकी वजह से..
भगवान ने तुम्हें आज
अपने सामने खड़ा करना भी पसंद नहीं किया.
🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹
🍃💘ए "साॅवरिया" हीचकीया दीलाकर ये कैसी उलझन बढा रहे हो...😊आंखे बंद है फिर भी नजर आरहेहो. 😊.बस इतना बता दो ए कन्हैया.....हमें याद कर रहे हो या अपनी याद दिला रहे हो...💞🙏🙏🙏
🎲 मिश्री से मीठे है
           कृष्ण के बोल
      💰 कोई कैसे लगाये
           उनका मोल
      💎 हीरे से ज्यादा है
         कृष्ण अनमोल
       📯 अब तो
          जय श्री कृष्ण
                 बोल
      📼📼📼📼📼
    ♨


🔫: 🌞🙏(:-बहुत समय पहले की बात है वृन्दावन में श्रीबांके
बिहारी जी के मंदिर में रोज पुजारी जी बड़े भाव से सेवा
करते थे। वे रोज बिहारी जी की आरती करते , भोग
लगाते और उन्हें शयन कराते और रोज चार लड्डू
भगवान के बिस्तर के पास रख देते थे। उनका यह भाव
था कि बिहारी जी को यदि रात में भूख लगेगी तो वे उठ
कर खा लेंगे। और जब वे सुबह मंदिर के पट खोलते थे
तो भगवान के बिस्तर पर प्रसाद बिखरा मिलता था।
इसी भाव से वे रोज ऐसा करते थे।
एक दिन बिहारी जी को शयन कराने के बाद वे चार
लड्डू रखना भूल गए। उन्होंने पट बंद किए और चले
गए। रात में करीब एक-दो बजे , जिस दुकान से वे बूंदी
के लड्डू आते थे , उन बाबा की दुकान खुली थी। वे घर
जाने ही वाले थे तभी एक छोटा सा बालक आया और
बोला बाबा मुझे बूंदी के लड्डू चाहिए।
बाबा ने कहा - लाला लड्डू तो सारे ख़त्म हो गए। अब
तो मैं दुकान बंद करने जा रहा हूँ। वह बोला आप अंदर
जाकर देखो आपके पास चार लड्डू रखे हैं। उसके हठ
करने पर बाबा ने अंदर जाकर देखा तो उन्हें चार लड्डू
मिल गए क्यों कि वे आज मंदिर नहीं गए थे। बाबा ने
कहा - पैसे दो।
बालक ने कहा - मेरे पास पैसे तो नहीं हैं और तुरंत
अपने हाथ से सोने का कंगन उतारा और बाबा को देने
लगे। तो बाबा ने कहा - लाला पैसे नहीं हैं तो रहने दो ,
कल अपने बाबा से कह देना , मैं उनसे ले लूँगा। पर वह
बालक नहीं माना और कंगन दुकान में फैंक कर भाग
गया। सुबह जब पुजारी जी ने पट खोला तो उन्होंने देखा
कि बिहारी जी के हाथ में कंगन नहीं है। यदि चोर भी
चुराता तो केवल कंगन ही क्यों चुराता। थोड़ी देर बाद
ये बात सारे मंदिर में फ़ैल गई।
जब उस दुकान वाले को पता चला तो उसे रात की बात
याद आई। उसने अपनी दुकान में कंगन ढूंढा और पुजारी
जी को दिखाया और सारी बात सुनाई। तब पुजारी जी
को याद आया कि रात में , मैं लड्डू रखना ही भूल गया
था। इसलिए बिहारी जी स्वयं लड्डू लेने गए थे।
🌿यदि भक्ति में भक्त कोई सेवा भूल भी जाता है तो
भगवान अपनी तरफ से पूरा कर लेते हैं।
🌞🙏(नमो नारायण) 🌞🙏
🌞🙏(अपने अाराध्य का दास यति)🌞🙏

रविवार, 17 मई 2015

भारत में sunday की छुट्टी का कारण

भारत में sunday की छुट्टी का कारण
हमारे ज्यादातर लोग sunday
की छुट्टी का दिन enjoy करने
में लगाते है।
उन्हें लगता है, की हम इस sunday
की छुट्टी के हक़दार है।
क्या हमें ये बात का पता है,
की sunday के दिन हमें
छुट्टी क्यों मिली? और ये
छुट्टी किस
व्यक्ति ने हमें
दिलाई? और इसके पीछे उस महान
व्यक्ति का क्या मकसद
था? क्या है इसका इतिहास?
साथियों, जिस व्यक्ति की वजह से हमें
ये छुट्टी हासिल
हुयी है, उस महापुरुष का नाम है
"नारायण मेघाजी लोखंडे".
नारायण मेघाजी लोखंडे ये जोतीराव
फुलेजी के सत्यशोधक
आन्दोलन के कार्यकर्ता थे। और
कामगार नेता भी थे।
अंग्रेजो के समय में हफ्ते के सातो दिन
मजदूरो को काम
करना पड़ता था। लेकिन नारायण
मेघाजी लोखंडे जी का ये
मानना था की,
हफ्ते में सात दिन
हम अपने परिवार के लिए काम करते है।
लेकिन जिस समाज
की बदौलत हमें नौकरिया मिली है, उस
समाज
की समस्या छुड़ाने के लिए हमें एक दिन
छुट्टी मिलनी चाहिए।
उसके लिए उन्होंने अंग्रेजो के सामने
1881 में प्रस्ताव रखा।
लेकिन अंग्रेज ये प्रस्ताव मानने के लिए
तयार नहीं थे। इसलिए
आख़िरकार नारायण
मेघाजी लोखंडे जी को इस sunday
की छुट्टी के लिए 1881 में आन्दोलन
करना पड़ा। ये आन्दोलन
दिन-ब-दिन बढ़ते गया। लगभग 8 साल
ये आन्दोलन चला।
आखिरकार 1889 में
अंग्रेजो को sunday
की छुट्टी का ऐलान
करना पड़ा।
ये है इतिहास।
क्या हम इसके बारे में जानते है? अनपढ़
लोग छोड़ो लेकिन
क्या पढ़े लिखे लोग भी इस बात
को जानते है? जहा तक
हमारी जानकारी है, पढ़े लिखे लोग
भी इस बात
को नहीं जानते। अगर
जानकारी होती तो sunday के दिन
enjoy नहीं करते....समाज का काम
करते....और अगर समाज
का काम ईमानदारी से करते तो समाज में
भुखमरी,
बेरोजगारी, बलात्कार, गरीबी,
लाचारी ये
समस्या नहीं होती।
साथियों, इस sunday की छुट्टीपर
हमारा हक़ नहीं है, इसपर
"समाज" का हक़ है।
कोई बात नहीं, आज तक हमें ये मालूम
नहीं था लेकिन अगर आज
हमें मालूम हुआ है तो आजसेही sunday
का ये दिन हम  "mission day" के रूप में मनायेंगे।

गुरुवार, 14 मई 2015

Ganga jal kabhi kharab nahi hoti

आइए समझते हैं गंगा जल की कुछ खासियत को गंगाजल कभी खराब क्यों नहीं होता ?
हिमालय की कोख गंगोत्री से निकली गंगा (भागीरथी), हरिद्वार (देवप्रयाग) में अलकनंदा से मिलती है। यहाँ तक आते-आते इसमें कुछ चट्टानें घुलती जाती हैं जिससे इसके जल में ऐसी क्षमता पैदा हो जाती है जो पानी को सड़ने नहीं देती। हर नदी के जल की अपनी जैविक संरचना होती है, जिसमें वह ख़ास तरह के घुले हुए पदार्थ रहते हैं जो कुछ क़िस्म के जीवाणु को पनपने देते हैं और कुछ को नहीं। वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि गंगा के पानी में ऐसे जीवाणु हैं जो सड़ाने वाले कीटाणुओं को पनपने नहीं देते, इसलिए पानी लंबे समय तक ख़राब नहीं होता।
वैज्ञानिक कारण-
वैज्ञानिक बताते हैं कि हरिद्वार में गोमुख- गंगोत्री से आ रही गंगा के जल की गुणवत्ता पर इसलिए कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि यह हिमालय पर्वत पर उगी हुई अनेकों जीवनदायनी उपयोगी जड़ी-बूटियों, खनिज पदार्थों और लवणों को स्पर्श करता हुआ आता है। वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि हिमालय की कोख गंगोत्री से निकली गंगा के जल का ख़राब नहीं होने के कई वैज्ञानिक कारण भी हैं। गंगाजल में बैट्रिया फोस नामक एक बैक्टीरिया पाया गया है जो पानी के अंदर रासायनिक क्रियाओं से उत्पन्न होने वाले अवांछनीय पदार्थों को खाता रहता है। इससे जल की शुद्धता बनी रहती है। गंगा के पानी में गंधक (सल्फर) की प्रचुर मात्रा मौजूद रहती है; इसलिए भी यह ख़राब नहीं होता। इसके अतिरिक्त कुछ भू-रासायनिक क्रियाएं भी गंगाजल में होती रहती हैं, जिससे इसमें कभी कीड़े पैदा नहीं होते। यही कारण है कि यह पानी सदा पीने योग्य माना गया है। जैसे-जैसे गंगा हरिद्वार से आगे अन्य शहरों की ओर बढ़ती जाती है शहरों, नगर निगमों और खेती- बाड़ी का कूड़ा-करकट तथा औद्योगिक रसायनों का मिश्रण गंगा में डाल दिया जाता है।
वैज्ञानिको के मत एवं शोध-
वैज्ञानिक परीक्षणों से पता चला है कि गंगाजल से स्नान करने तथा गंगाजल को पीने से हैजा, प्लेग, मलेरिया तथा क्षय आदि रोगों के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। इस बात की पुष्टि के लिए एक बार डॉ. हैकिन्स, ब्रिटिश सरकार की ओर से गंगाजल से दूर होने वाले रोगों के परीक्षण के लिए आए थे। उन्होंने गंगाजल के परिक्षण के लिए गंगाजल में हैजे (कालरा) के कीटाणु डाले गए। हैजे के कीटाणु मात्र 6 घंटें में ही मर गए और जब उन कीटाणुओं को साधारण पानी में रखा गया तो वह जीवित होकर अपने असंख्य में बढ़ गया। इस तरह देखा गया कि गंगाजल विभिन्न रोगों को दूर करने वाला जल है। फ्रांस के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. हैरेन ने गंगाजल पर वर्षों अनुसंधन करके अपने प्रयोगों का विवरण शोधपत्रों के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने आंत्र शोध व हैजे से मरे अज्ञात लोगों के शवों को गंगाजल में ऐसे स्थान पर डाल दिया, जहाँ कीटाणु तेजी से पनप सकते थे। डॉ. हैरेन को आश्चर्य हुआ कि कुछ दिनों के बाद इन शवों से आंत्र शोध व हैजे के ही नहीं बल्कि अन्य कीटाणु भी गायब हो गए। उन्होंने गंगाजल से 'बैक्टीरियासेपफेज' नामक एक घटक निकाला, जिसमें औषधीय गुण हैं। इंग्लैंड के जाने-माने चिकित्सक सी. ई. नेल्सन ने गंगाजल पर अन्वेषण करते हुए लिखा कि इस जल में सड़ने वाले जीवाणु ही नहीं होते। उन्होंने महर्षि चरक को उद्धृत करते हुए लिखा कि गंगाजल सही मायने में पथ्य है। रूसी वैज्ञानिकों ने हरिद्वार एवं काशी में स्नान के उपरांत 1950 में कहा था कि उन्हें स्नान के उपरांत ही ज्ञात हो पाया कि भारतीय गंगा को इतना पवित्र क्यों मानते हैं। गंगाजल की पाचकता के बारे में ओरियंटल इंस्टीटयूट में हस्तलिखित आलेख रखे हैं। कनाडा के मैकिलन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. एम. सी. हैमिल्टन ने गंगा की शक्ति को स्वीकारते हुए कहा कि वे नहीं जानते कि इस जल में अपूर्व गुण कहाँ से और कैसे आए। सही तो यह है कि चमत्कृत हैमिल्टन वस्तुत: समझ ही नहीं पाए कि गंगाजल की औषधीय गुणवत्ता को किस तरह प्रकट किया जाए। आयुर्वेदाचार्य गणनाथ सेन, विदेशी यात्री इब्नबतूता वरनियर, अंग्रेज़ सेना के कैप्टन मूर, विज्ञानवेत्ता डॉ. रिचर्डसन आदि सभी ने गंगा पर शोध करके यही निष्कर्ष दिया कि यह नदी अपूर्व है।
गंगाजल में स्नान-
गंगा नदी में तैरकर स्नान करने वालों को स्नान का विशेष लाभ होता है। गंगाजल अपने खनिज गुणों के कारण इतना अधिक गुणकारी होता है कि इससे अनेक प्रकार के रोग दूर होते हैं। गंगा नदी में स्नान करने वाले लोग स्वस्थ और रोग मुक्त बने रहते हैं। इससे शरीर शुद्ध और स्फूर्तिवान बनता है। भारतीय सभ्यता में गंगा को सबसे पवित्र नदी माना जाता है। गंगा नदी के पानी में विशेष गुण के कारण ही गंगा नदी में स्नान करने भारत के विभिन्न क्षेत्र से ही नहीं बल्कि संसार के अन्य देशों से भी लोग आते है।
गंगा नदी में स्नान के लिए आने वाले सभी लोग विभिन्न प्रकार के रोगों से मुक्ति पाने के लिए हरिद्वार और ऋषिकेश आकर मात्र कुछ ही दिनों में केवल गंगा स्नान से पूर्ण स्वस्थ हो जाते हैं। कई विद्वानों ने गंगाजल की पवित्रता का वर्णन अपने निबन्धों में पूर्ण आत्मा से किया है। भौतिक विज्ञान के कई आचार्यो ने भी गंगाजल की अद्भुत शक्ति और प्रभाव को स्वीकार किया है

Mera sapna) जीवन में कुछ अच्छे कर्म किये होंगे इसलिये यमराज मुझे स्वर्ग में ले गये.!!

~~~"मेरा सपना"~~~

कल रात मैंने एक "सपना" देखा.!!
सपने में मैं और मेरी Family
शिमला घूमने गए.!!
हम सब शिमला की रंगीन
वादियों में कुदरती नजारा
देख रहे थे.!!
जैसे ही हमारी Car
Sunset Point की ओर
निकली..... अचानक गाडी के Breakफेल हो गए और हम सब
करीबन 1500 फिट गहरी
खाई में जा गिरे.!!

मेरी तो on the spot Death हो गई.!!

जीवन में कुछ अच्छे कर्म किये होंगे इसलिये यमराज मुझे स्वर्ग में ले गये.!!

देवराज इंद्र ने मुस्कुराकर
मेरा स्वागत किया.!! मेरे हाथ में Bag देखकर पूछने लगे

इसमें क्या है.?

मैंने कहा इसमें मेरे जीवन भर
की कमाई है, पांच करोड़ रूपये हैं ।  इन्द्र ने SVG 6767934 नम्बर के Locker की ओर इशारा करते हुए कहा-
आपकी अमानत इसमें रख
दीजिये.!!

मैंने Bag रख दी.!!

मुझे एक Room भी दिया.!!
मैं Fresh होकर Market में
निकला.!! देवलोक के Shopping मॉल
मे अदभूत वस्तुएं देखकर मेरा मन ललचा गया.!!

मैंने कुछ चीजें पसन्द करके
Basket में डाली, और काउंटर
पर जाकर उन्हें हजार हजार के
करारे नोटें देने लगा.!!

Manager ने नोटों को देखकर
कहा यह करेंसी यहाँ नहीं चलती.!!

यह सुनकर मैं हैरान रह गया.!!
मैंने इंद्र के पास Complaint की इंद्र ने मुस्कुराते हुए कहा कि
आप व्यापारी होकर इतना भी
नहीं जानते? कि आपकी करेंसी
बाजु के मुल्क पाकिस्तान, श्रीलंका और बांगलादेश में भी नही चलती.?
और आप मृत्यूलोक की करेंसी
स्वर्गलोक में चलाने की मूर्खता
कर रहे हो.!! यह सब सुनकर मुझे मानो साँप सूंघ गया.!!

मैं जोर जोर से दहाड़े मारकर
रोने लगा.!! और परमात्मा से
दरखास्त करने लगा, हे भगवान् ये क्या हो गया.? मैंने कितनी मेहनत से ये पैसा कमाया.?
दिन नही देखा, रात नही देखा, पैसा कमाया.!! माँ बाप की सेवा नही की, पैसा कमाया
बच्चों की परवरीश नही की,
पैसा कमाया.!! पत्नी की सेहत की ओर ध्यान नही दिया, पैसा कमाया.!!

रिश्तेदार, भाईबन्द, परिवार और
यार दोस्तों से भी किसी तरह की
हमदर्दी न रखते हुए पैसा
कमाया.!!
जीवन भर हाय पैसा
हाय पैसा किया.!!
ना चैन से सोया, ना चैन से खाया.... बस, जिंदगी भर पैसा कमाया.!
और यह सब व्यर्थ गया....

हाय राम, अब क्या होगा....

इंद्र ने कहा,-
रोने से कुछ हासिल होने वाला
नहीं है.!! जिन जिन लोगो ने यहाँ जितना भी पैसा लाया, सब रद्दी हो गया।

जमशेद जी टाटा के 55 हजार करोड़ रूपये, बिरला जी के 47 हजार करोड़ रूपये, धीरू भाई
अम्बानी के 29 हजार करोड़
अमेरिकन डॉलर....  सबका पैसा यहां पड़ा है.!!

मैंने इंद्र से पूछा-
फिर यहां पर कौनसी करेंसी
चलती है.??
इंद्र ने कहा-
धरती पर अगर कुछ अच्छे कर्म
किये है. जैसे किसी दुखियारे को
मदद की, किसी रोते हुए को
हसाया, किसी गरीब बच्ची की
शादी कर दी, किसी अनाथ बच्चे को पढ़ा लिखा कर काबिल बनाया.!! किसी को व्यसनमुक्त किया.!! किसी अपंग स्कुल, वृद्धाश्रम या मंदिरों में दान धर्म किया....

ऐसे पूण्य कर्म करने वालों को
यहाँ पर एक Credit Card
मिलता है....
और उसे वापर कर आप यहाँ
स्वर्गीय सुख का उपभोग ले
सकते है.!!

मैंने कहा भगवन, मुझे यह पता
नहीं था. इसलिए मैंने अपना जीवन व्यर्थ गँवा दिया.!!

हे प्रभु, मुझे थोडा आयुष्य दीजिये... और मैं गिड़गिड़ाने लगा.!! इंद्र को मुझ पर दया आ गई.!!

इंद्र ने तथास्तु कहा और मेरी नींद खुल गयी...

मैं जाग गया....

अब मैं वो दौलत कमाऊँगा
जो वहाँ चलेगी.....

आपको यह कहानी अच्छी लगे तो अपने दोस्तों को भी शेयर करे ।

बुधवार, 13 मई 2015

kasmiri Pandit itihash) कश्मीरी पंडित... एक ऐसी कहानी जो देश के अधिकतर लोगो को पता नहीं है।

कश्मीरी पंडित... एक ऐसी कहानी जो देश के अधिकतर लोगो को पता नहीं है।
आप सभी ने सुना होगा कश्मीरी पंडितो के बारे में। हम सभी ने सुना है की हाँ कुछ तो हुआ था कश्मीरी पंडितो के साथ। लेकिन क्या हुआ था क्यों हुआ था ......यह ठीक से पता नहीं है।
यहाँ यह बताया जा रहा है कि क्या हुआ था कश्मीर में और क्या हुआ था कश्मीरी पंडितो के साथ।

पार्ट 1: कश्मीर का खुनी इतिहास
कश्मीर का नाम कश्यप ऋषि के नाम पर पड़ा था। कश्मीर के मूल निवासी सारे हिन्दू थे।
कश्मीरी पंडितो की संस्कृति 5000 साल पुरानी है और वो कश्मीर के मूल निवासी हैं। इसलिए अगर कोई कहता है की भारत ने कश्मीर पर कब्ज़ा कर लिया है यह बिलकुल गलत है।
14वीं शताब्दी में तुर्किस्तान से आये एक क्रूर आतंकी मुस्लिम दुलुचा ने 60,000 लोगो की सेना के साथ कश्मीर में आक्रमण किया और कश्मीर में मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना की। दुलुचा ने नगरों और गाँव को नष्ट कर दिया और हजारों हिन्दुओ का नरसंघार किया। बहुत सारे हिन्दुओ को जबरदस्ती मुस्लिम बनाया गया। बहुत सारे हिन्दुओ ने जो इस्लाम नहीं कबूल करना चाहते थे, उन्होंने जहर खाकर
आत्महत्या कर ली और बाकि भाग गए या क़त्ल कर दिए गए
या इस्लाम कबूल करवा लिए गए। आज जो भी कश्मीरी मुस्लिम है उन सभी के पूर्वजो को इन अत्याचारों के कारण
जबरदस्ती मुस्लिम बनाया गया था।
भारत पर मुस्लिम आक्रमण अतिक्रमण - विश्व इतिहास का सबसे ज्यादा खुनी कहानी:
http://www.youtube.com/watch?v=TMY2YV9WucY
भारत के खुनी विभाजन के बारे में जानने के लिए यह विडियो देखे:
http://www.youtube.com/watch?v=jGiTaQ60Je0
अधिक जानकारी के लिए इस लिंक को देखे:
http://kasmiripandits.blogspot.com/2012/04/tragic-history-of-kasmir.html
http://en.wikipedia.org/wiki/Kashmir#Muslim_rule

पार्ट 2: 1947 के समय कश्मीर
1947 में ब्रिटिश संसद के "इंडियन इंडीपेनडेंस इ एक्ट" के अनुसार ब्रिटेन ने तय किया की मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को पाकिस्तान बनाया जायेगा। 150 राजाओं ने पाकिस्तान चुना और बाकी 450 राजाओ ने भारत। केवल एक जम्मू और कश्मीर के राजा बच गए थे जो फैसला नहीं कर पा रहे थे। लेकिन जब पाकिस्तान ने फौज भेजकर कश्मीर पर आक्रमण किया तो कश्मीर के
राजा ने भी हिंदुस्तान में कश्मीर के विलय के लिए दस्तख़त कर दिए। ब्रिटिशो ने यह कहा था की राजा अगर एक बार दस्तखत कर दिया तो वो बदल नहीं सकता और जनता की आम राय पूछने की जरुरत नहीं है। तो जिन कानूनों के आधार पर भारत और पाकिस्तान बने थे
उन नियमो के अनुसार कश्मीर पूरी तरह से भारत का अंग बन गया था। इसलिए कोई भी कहता है की कश्मीर पर भारत ने जबरदस्ती कब्ज़ा कर रहे है वो बिलकुल झूठ है।
अधिक जानकारी के लिए यह विडियो आप देख सकते है:
http://www.youtube.com/watch?v=gxhVDKRFh28

पार्ट 3: सितम्बर 14, 1989
बीजेपी के राष्ट्रीय कार्यकारणी के सदस्य और जाने माने वकील कश्मीरी पंडित तिलक लाल तप्लू का JKLF ने क़त्ल कर दिया। उसके बाद जस्टिस नील कान्त गंजू को गोली मार दिया गया। सारे कश्मीरी नेताओ की हत्या एक एक करके कर दी गयी। उसके बाद 300 से ज्यादा हिन्दू महिलाओ और पुरुषो की निर्संश हत्या की गयी।
कश्मीरी पंडित नर्स जो श्रीनगर के सौर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में काम करती थी, का सामूहिक बलात्कार किया गया और मार मार कर उसकी हत्या कर दी गयी। यह खुनी खेल चलता रहा और अपने सेकुलर राज्य और केंद्र सरकार, मीडिया ने
कुछ भी नहीं किया।

पार्ट ४: जनवरी 4, 1990
आफताब, एक स्थानीय उर्दू अखबार ने हिज्ब -उल -मुजाहिदीन की तरफ से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की, सभी हिन्दू अपना सामन पैक करें और कश्मीर छोड़ कर चले जाएँ। एक अन्य स्थानीय समाचार पत्र, अल सफा ने इस निष्कासन आदेश को दोहराया। मस्जिदों में भारत और हिन्दू विरोधी भाषण दिए जाने लगे।
सभी कश्मीरी हिन्दू/मुस्लिमो को कहा गया की इस्लामिक ड्रेस कोड अपनाये। सिनेमा और विडियो पार्लर वगैरह बंद कर दिए गए। लोगो को मजबूर किया गया की वो अपनी घड़ी पाकिस्तान के समय के अनुसार करे लें।
अधिक जानकारी के लिए यह लिंक और ब्लॉग आप देख सकते है:
http://kasmiripandits.blogspot.com/2012/04/when-kashmiri-
pandits-fled-islamic.html

http://www.rediff.com/news/2005/jan/19kanch.htm -
[19/01/90: When Kashmiri Pandits fled Islamic terror]

पार्ट 5: जनवरी 19, 1990
सारे कश्मीरी पंडितो के घर के दरवाजो पर नोट लगा दिया जिसमे लिखा था "या तो मुस्लिम बन जाओ या कश्मीर छोड़ कर भाग जाओ या फिर मरने के लिए तैयार हो जाओ"। पाकिस्तान की तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने टीवी पर कश्मीरी मुस्लिमो को भारत से आजादी के लिए भड़काना शुरू कर दिया। सारे कश्मीर के मस्जिदों में एक टेप चलाया गया। जिसमे मुस्लिमो को कहा गया की वो हिन्दुओ को कश्मीर से निकाल बाहर करें। उसके बाद सारे कश्मीरी मुस्लिम सडको पर उतर आये। उन्होंने कश्मीरी पंडितो के घरो को जला दिया, कश्मीर पंडित महिलाओ का बलात्कार करके, फिर उनकी हत्या करके उनके नग्न शरीर को पेड़ पर
लटका दिया गया। कुछ महिलाओ को जिन्दा जला दिया गया और बाकियों को लोहे के गरम सलाखों से मार दिया गया। बच्चो को स्टील के तार से गला घोटकर मार
दिया गया। कश्मीरी महिलाये ऊंचे मकानों की छतो से कूद कूद कर जान देने लगी।
कश्मीरी मुस्लिम, कश्मीरी हिन्दुओ के हत्या करते चले गए और नारा लगते चले गए की उन पर अत्याचार हुआ है और उनको भारत से आजादी चाहिए।

पार्ट 6: कश्मीरी पंडितो का पलायन
3,50,000 कश्मीरी पंडित अपनी जान बचा कर कश्मीर से भाग गए। कश्मीरी पंडित जो कश्मीर के मूल निवासी है उन्हें कश्मीर छोड़ना पड़ा और तब कश्मीरी मुस्लिम कहते है की उन्हें आजादी चाहिए। यह सब कुछ चलता रहा लेकिन सेकुलर मीडिया चुप रही उन्होंने देश के लोगो तक यह बात कभी नहीं पहुचाई इसलिए देश के लोगो को आज तक नहीं पता चल पाया की क्या हुआ था कश्मीर में। देश- विदेश के लेखक चुप रहे, भारत का संसद चुप रहा, सारे हिन्दू, मुस्लिम, सेकुलर चुप रहे। किसी ने भी 3,50,000 कश्मीरी पंडितो के बारे में कुछ नहीं कहा। आज भी अपने देश के मीडिया 2002 के दंगो के रिपोर्टिंग में व्यस्त है। वो कहते है
की गुजरात में मुस्लिम विरोधी दंगे हुए थे लेकिन यह
कभी नहीं बताते की 750 मुस्लिमों के साथ साथ 310 हिन्दू भी मरे थे और यह भी कभी नहीं बताते की दंगो की शुरुआत मुस्लिमो ने की थी, जब उन्होंने 59 हिन्दुओं को ट्रेन में गोधरा में जिन्दा जला दिया था। हिन्दुओं पर अत्याचार के बात की रिपोर्टिंग से कहते है की अशांति फैलेगी, लेकिन मुस्लिमो पर हुए अत्याचार की रिपोर्टिंग से अशांति नहीं फैलती। इसे कहते है सेकुलर (धर्मनिरपेक्ष) पत्रकारिता।
http://kashmiris-in-exile.blogspot.com/2009/01/19-years-
to-19th-day-of-1990-exodus-of.html

पार्ट 7: कश्मीरी पंडितो के आज की स्थिति
आज 4.5 लाख कश्मीरी पंडित अपने देश में ही रेफूजी की तरह रह रहे है। पूरे देश या विदेश में कोई भी नहीं है उनको देखने वाला।
कोई भी मीडिया नहीं है जो उनके बारे में हुए अत्याचार को बताये। कोई भी सरकार या पार्टी या संस्था नहीं है जो की विस्थापित कश्मीरियों को उनके पूर्वजों के भूमि में वापस ले जाने को तैयार है। कोई भी नहीं इस इस दुनिया में जो कश्मीरी पंडितो के लिए "न्याय" की मांग करे। कश्मीरी पंडित काफी पढ़े लिखे लोगो के तरह जाने जाते थे, आज वो भिखारियों के तरह पिछले 24 सालो से टेंट में रह रहे है। उन्हें मुलभुत सुविधाए भी नहीं मिल पा रही है, पीने के लिए पानी तक की समस्या है।
भारतीय और विश्व की मीडिया, मानवाधिकार संस्थाए गुजरात दंगो में मरे 750 मुस्लिमो (310 मारे गए हिन्दुओ को भूलकर) की बात करते है। लेकिन यहाँ तो कश्मीरी पंडितो की बात करने
वाला कोई नहीं है क्योकि वो हिन्दू है। 20,000 कश्मीरी हिन्दू बस धुप की गर्मी के कारण मर गए क्योकि वो कश्मीर के ठन्डे मौसम में रहने के आदि थे।
अधिक जानकारी के लिए यह विडियो आप देख सकते है:
http://www.youtube.com/watch?v=kqSqn0id-IE [Shocking, Tragic and Horrible story of Kashmiri Pandits]

पार्ट 8: कश्मीरी पंडितो और भारतीय सेना के खिलाफ भारतीय मीडिया का षड्यंत्र
आज देश के लोगो को कश्मीरी पंडितो के मानवाधिकारों के बारे में भारतीय मीडिया नहीं बताती है लेकिन आंतकवादियों के मानवाधिकारों के बारे में जरुर बताती है। आज सभी को यह बताया जा रहा था है की ASFA नाम का किसी कानून का भारतीय सेना काफी ज्यादा दुरूपयोग किया है। कश्मीर में अलगावादी संगठन मासूम लोगो की हत्या करवाते है और भारतीय सेना के जवान जब उन आतंकियों के खिलाफ कोई करवाई करते है तो यह अलगावादी नेता अपने बिकी हुए मीडिया के सहायता से चीखना चिल्लाना शुरू कर देते है की देखो हमारे ऊपर कितना अत्याचार हो रहा है।
मित्रों, बात यहाँ तक नहीं रुकी है। अश्विन कुमार जैसे कुछ डाइरेक्टर इंशाल्लाह कश्मीर और दूसरी हैदर जैसी मूवी के जरिये पूरे विश्व की लोगो को यह दिखा रहे है की कश्मीर के भोले भाले मुस्लिम युवाओ पर
भारतीय सेना के जवानों ने अत्याचार किया है।
अश्विन कुमार अपने वृत्तचित्र पूरे विश्व के पटल पर रख रहे है। हर तरह से देश और विदेश में लोगो को दिखा रहे है की गलती भारतीय सेना की है..लेकिन जो सच्चाई है वो बिलकुल यह छिपा दे रहे है।
इस विडियो में देखे की किस प्रकार भारतीय सेना के
खिलाफ षड़यंत्र किया जा रहा है:
http://www.youtube.com/watch?v=LofOulSw07k - [Anti Hindu and Anti Indian Military - Indian Secular Media Exposed!]

पार्ट 9: निष्कर्ष
सारे मुस्लिम कहते है मोदी को फांसी दो जबकि मोदी ने गुजरात की दंगो को समय रहते रोक दिया। लेकिन आज तक एक भी मुस्लिम को यह कहते नहीं सुना गया की कांग्रेस के नेताओं, गाँधी परिवार और अब्दुल्लाह परिवार को फांसी दो।
जो लाखो कश्मीरी पंडितो के कत्लेआम देखते रहे।

मित्रों, इस कहानी को अगर आप पढ़ चुके है तो अपने बाकी मित्रो के साथ शेयर करे ताकि उन्हें भी सत्य का ज्ञान हो। जो कश्मीर में हुआ था, हम नहीं चाहते की हमारे बच्चे 10 सालों के बाद केरलाइ हिन्दू, बंगाली हिन्दुओ के बारे में कहानिया सुने जैसा हम आज कश्मीरी हिन्दुओ के बारे में सुनते हैं।
http://kasmiripandits.blogspot.com/2012/03/kasmiri-pandit-
untold-story.html
॥ वन्दे मातरम् ॥

मंगलवार, 12 मई 2015

जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा, और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा.।।

एक औरत अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोज़ाना भोजन पकाती थी और एक रोटी वह वहाँ से गुजरने वाले किसी भी भूखे के लिए पकाती थी..।

वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती थी, जिसे कोई भी ले सकता था..।

एक कुबड़ा व्यक्ति रोज़ उस रोटी को ले जाता और बजाय धन्यवाद देने के अपने रस्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह बड़बड़ाता- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा..।"

दिन गुजरते गए और ये सिलसिला चलता रहा..

वो कुबड़ा रोज रोटी लेके जाता रहा और इन्ही शब्दों को बड़बड़ाता- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा.।"

वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन खुद से कहने लगी की- "कितना अजीब व्यक्ति है, एक शब्द धन्यवाद का तो देता नहीं है, और न जाने क्या-क्या बड़बड़ाता रहता है, मतलब क्या है इसका.।"

एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और बोली- "मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी.।"

और उसने क्या किया कि उसने उस रोटी में ज़हर मिला दिया जो वो रोज़ उसके लिए बनाती थी, और जैसे ही उसने रोटी को को खिड़की पर रखने कि कोशिश की, कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और रुक गये और वह बोली- "हे भगवन, मैं ये क्या करने जा रही थी.?" और उसने तुरंत उस रोटी को चूल्हे कि आँच में जला दिया..। एक ताज़ा रोटी बनायीं और खिड़की के सहारे रख दी..।

हर रोज़ कि तरह वह कुबड़ा आया और रोटी ले के: "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा, और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा" बड़बड़ाता हुआ चला गया..।

इस बात से बिलकुल बेख़बर कि उस महिला के दिमाग में क्या चल रहा है..।

हर रोज़ जब वह महिला खिड़की पर रोटी रखती थी तो वह भगवान से अपने पुत्र कि सलामती और अच्छी सेहत और घर वापसी के लिए प्रार्थना करती थी, जो कि अपने सुन्दर भविष्य के निर्माण के लिए कहीं बाहर गया हुआ था..। महीनों से उसकी कोई ख़बर नहीं थी..।

ठीक उसी शाम को उसके दरवाज़े पर एक दस्तक होती है.. वह दरवाजा खोलती है और भोंचक्की रह जाती है.. अपने बेटे को अपने सामने खड़ा देखती है..।

वह पतला और दुबला हो गया था.. उसके कपडे फटे हुए थे और वह भूखा भी था, भूख से वह कमज़ोर हो गया था..।

जैसे ही उसने अपनी माँ को देखा, उसने कहा- "माँ, यह एक चमत्कार है कि मैं यहाँ हूँ.. आज जब मैं घर से एक मील दूर था, मैं इतना भूखा था कि मैं गिर गया.. मैं मर गया होता..।

लेकिन तभी एक कुबड़ा वहां से गुज़र रहा था.. उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और उसने मुझे अपनी गोद में उठा लिया.. भूख के मरे मेरे प्राण निकल रहे थे.. मैंने उससे खाने को कुछ माँगा.. उसने नि:संकोच अपनी रोटी मुझे यह कह कर दे दी कि- "मैं हर रोज़ यही खाता हूँ, लेकिन आज मुझसे ज़्यादा जरुरत इसकी तुम्हें है.. सो ये लो और अपनी भूख को तृप्त करो.।"

जैसे ही माँ ने उसकी बात सुनी, माँ का चेहरा पीला पड़ गया और अपने आप को सँभालने के लिए उसने दरवाज़े का सहारा लीया..।

उसके मस्तिष्क में वह बात घुमने लगी कि कैसे उसने सुबह रोटी में जहर मिलाया था, अगर उसने वह रोटी आग में जला के नष्ट नहीं की होती तो उसका बेटा उस रोटी को खा लेता और अंजाम होता उसकी मौत..?

और इसके बाद उसे उन शब्दों का मतलब बिलकुल स्पष्ट हो चूका था- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा, और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा.।।


             🍁" निष्कर्ष "🍁
              ==========
हमेशा अच्छा करो और अच्छा करने से अपने आप को कभी मत रोको, फिर चाहे उसके लिए उस समय आपकी सराहना या प्रशंसा हो या ना हो..।
               =========

Hindustan me dharm privrtan ka itihash

धर्म-परिवर्तनकी समस्या अर्थात् हिंदुस्थान
एवं हिंदु धर्मपर अनेक सदियोंसे परधर्मियोंद्वारा होनेवाला
धार्मिक आक्रमण ! इतिहासमें अरबीयोंसे लेकर
अंग्रेजोंतक अनेक विदेशियोंने हिंदुस्थानपर आक्रमण किए ।
साम्राज्य विस्तारके साथ ही स्वधर्मका प्रसार,
यही इन सभी आक्रमणोंका सारांश
था । आज भी इन विदेशियोंके वंशज
यही ध्येय सामने रखकर हिंदुस्तानमें
नियोजनबद्धरूपसे कार्यरत हैं । यह पढकर धर्म-
परिवर्तनकी समस्याके विषयमें हिंदु समाज
जाग्रत हो तथा धर्म-परिवर्तनके विदेशी
आक्रमणका विरोध कर सके, यही ईश्वरचरणोंमें
प्रार्थना !
१. इस्लामी आक्रमणसे पूर्वका काल
ईसाई धर्मकी स्थापनाके पश्चात् प्रथम
शताब्दीमें (वर्ष ५२ में) सेंट थॉमस नामक ईसाई
धर्मोपदेशक हिंदुस्थानके केरल प्रांतमेंij आया और उसने वहां
ईसाई धर्मका प्रचार आरंभ किया ।
२. इस्लामी सत्ताका काल
इस कालमें हिंदुओंका सर्वाधिक धर्म-परिवर्तन हुआ । उस
कालमें कश्मीर, पंजाब, उत्तरप्रदेश और
दिल्ली राज्यों सहित हिंदुस्थानमें सम्मिलित और
आगे स्वतंत्र देश बने पाकिस्तान, अफगानिस्तान, कंबोडिया
और ब्रह्मदेशके हिंदु धर्म-परिवर्तनसे सर्वाधिक प्रभावित
हुए । इस कालमें धर्म- परिवर्तनके कार्यको आगे
बढानेवालोंके नाम और उनके दुष्कृत्य आगे दिए हैं ।
२ अ. मुहम्मद कासिम
‘इतिहासकार यू.टी. ठाकुरने वर्ष ७१२ में
हिंदुस्थानपर आक्रमण करनेवाले इस प्रथम
इस्लामी आक्रमणकारीका कार्यकाल
‘सिंधके इतिहासका अंधकारपूर्ण कालखंड’, ऐसा वर्णन किया
है । इस कालखंडमें सिंधमें बलपूर्वक धर्म-परिवर्तन,
देवालयोंका विध्वंस, गोहत्या एवं हिंदुओंका वंशविच्छेद
अपनी चरम सीमापर था । सर्व
प्राचीन और आधुनिक इतिहासकारोंने स्पष्टरूपसे
कहा है, ‘सिंधके हिंदुओंका धर्म-परिवर्तन बलपूर्वक
ही किया गया था ।’
२ आ. औरंगजेब
इसने दिल्ली हस्तगत करते ही
हिंदुओंको मुसलमान बनाकर उन्हें इस्लामकी
दीक्षा देनेकी शासकीय
नीति बनाई और तदनुसार उसने लाखों हिंदुओंका
धर्मांतरण किया । उसने छत्रपति शिवाजी
महाराजके सेनापति नेताजी पालकर,
जानोजीराजे पालकर आदि सरदारोंको भी
धर्मांतरित किया । छत्रपति संभाजी महाराजका
इस्लामीकरण करनेका भी उसने
अंततक प्रयत्न किया; किंतु संभाजी महाराजके
प्रखर धर्माभिमानके कारण वह निष्फल हुआ ।
स्वातंत्र्यवीर सावरकर लिखते हैं, ‘औरंगजेबने
हिंदुओंको हर संभव उपाय अपनाकर धर्मांतरित करनेका
प्रयत्न किया ।’
२ इ. टीपू सुलतान
‘दक्षिणके इस सुलतानने सत्ता हाथमें लेते ही
भरी सभामें प्रतिज्ञा की, ‘सब
काफिरोंको (हिंदुओंको) मुसलमान बनाऊंगा’ । उसने प्रत्येक
गांवके मुसलमानोंको लिखितरूपसे सूचित किया, ‘सभी
हिंदु स्त्री-पुरुषोंको इस्लामकी
दीक्षा दो । स्वेच्छासे धर्मांतरण न करनेवाले
हिंदुओंको बलात्कारसे मुसलमान बनाओ अथवा हिंदु पुरुषोंका
वध करो और उनकी स्त्रियोंको मुसलमानोंमें बांट दो
।’ आगे टीपूने मलबार क्षेत्रमें एक लाख
हिंदुओंको धर्मांतरित किया । उसने हिंदुओंका धर्म-परिवर्तन
करनेके लिए कुछ कट्टर मुसलमानोंकी विशेष
टोली बनाई । इस्लामका आक्रामक प्रचार करनेके
कारण उसे ‘सुलतान’, ‘गाजी’, ‘इस्लामका
कर्मवीर’ इत्यादि उपाधियां देश-विदेशके मुसलमान
और तुर्किस्थानके खलीफाद्वारा दी
गई ।’ – जयेश मेस्त्री, मालाड, मुंबई.
२ ई. सूफी फकीर
‘इन हिंदु साधुओंके समान आचरण करनेवाले कुछ कथित
मुसलमान संतोंने हिंदुओंका बडी संख्यामें धर्म-
परिवर्तन कराया । ‘हिस्टरी ऑफ
सूफीज्म इन इंडिया’ (अर्थात् भारतमें
सूफीवादका इतिहास) नामक पुस्तकके दो खंडोंमें
इसकी जानकारी दी है
।’ – गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी
२ उ. हैदराबादका निजाम
‘इसके अत्याचारी शासनकालमें सैनिकी
अधिकारियोंने सहदााों हिंदुओंका लिंगाग्रचर्मपरिच्छेदन (सुन्नत)
किया । धर्मांतरण को नकारनेवाले असंख्य
हिंदुओंकी हत्या की गई ।
‘अत्याचार कर मुसलमान बनाना’, यह वाक्प्रचार यहांके
हिंदुओंने प्रत्यक्ष अनुभव किया ।’ – पत्रिका ‘हिंदूंनो, वाचा
आणि थंड बसा’ (अर्थात् ‘हिंदुओ, पढो और शांत बैठो’)
(९.८.२००४)
३. पुर्तगालियोंका शासनकाल
३ अ. हिंदुस्थानमें वास्को-डी-गामाके तुरंत
पश्चात् ईसाई
मिशनरियोंका आना और यातना, बल एवं कपटद्वारा
हिंदुओंको ईसाई बनाना
‘१४९८ में वास्को-डी-गामाके नेतृत्वमें
पुर्तगालियोंने हिंदुस्थानकी धरती पर
पैर रखा एवं ईसाइयोंके साम्राज्यवादी
धर्ममतकी राजकीय यात्रा आरंभ
हुई । वास्को-डी-गामाके तुरंत पश्चात् ईसाई
धर्मका प्रचार करनेवाले मिशनरी आए ।
तत्पश्चात् ‘व्यापारिक दृष्टिकोणसे राज्यविस्तार’ इस
सिद्धांतकी अपेक्षा ‘ईसाई धर्मका प्रचार’,
यही पुर्तगालियोंका प्रमुख ध्येय बन गया ।
इससे धर्म-परिवर्तनकी प्रक्रिया आरंभ हुई ।
ईसाई मिशनरी रात्रिके समय घरके पिछवाडे स्थित
कुंएमें पाव (डबलरोटी) डाल देते और प्रातःकाल
लोगोंके पानी पीते ही
कहते, ‘तुम ईसाई बन गए ।’ घबराए हुए हिंदु समझ
बैठते कि वे फंस गए और ईसाई धर्मके अनुसार आचरण
करने लगते । १५४२ में पुर्तगालके किंग जॉन
द्वितीयने हिंदुओंके ईसाईकरण हेतु सेंट जेवियर
नामक मिशनरीको भेजा । उसके आगमनके पश्चात्
गोवामें हिंदु धर्मांतरण करें, इसके लिए उनपर ईसाई मिशनरियोंने
अनन्वित अत्याचार किए
३ आ. सेंट जेवियरकी धर्म-
परिवर्तनकी पद्धति !
सेंट जेवियर स्वयं अपनी धर्म-
परिवर्तनकी पद्धतिके संदर्भमें कहता है,
‘एक माहमें मैंने त्रावणकोर राज्यमें १० सहदाासे अधिक
पुरुषों, स्त्रियों एवं बच्चोंको धर्मांतरित कर उनके
पुर्तगाली नाम रखे । बप्तिस्मा देनेके (ईसाई
होनेके समय प्रथम जल व दीक्षा-स्नान,
नामकरणसंस्कारके) पश्चात् मैंने इन नव-ईसाइयोंको अपने
पूजाघर नष्ट करनेका आदेश दिया । इस प्रकार मैंने एक
गांवसे दूसरे गांवमें जाते हुए लोगोंको ईसाई बनाया ।’ –
श्री. विराग श्रीकृष्ण पाचपोर
३ इ. पुर्तगालियोंद्वारा हिंदुओंके धर्मांतरण हेतु किए
अत्याचारोंके प्रतिनिधिक उदाहरण
‘१५६० में पोपके आदेशपर ईसाई साम्राज्य बढानेके उद्देश्यसे
पुर्तगालियोंकी सेना गोवा पहुंची ।
उसने धर्मांतरण न करनेवाले हिंदुओंपर भयंकर अत्याचार
करते हुए सहदााों हिंदुओंको मार डाला । धर्मांतरण न
करनेवाले इन हिंदुओंको एक पंक्तिमें खडा कर उनके दांत
हथौडीसे तोडना, हिंदुओंपर हुए अत्याचारोंका
एक प्रातिनिधिक उदाहरण है ।’ – साप्ताहिक ‘संस्कृति
जागृति’ (४ से ११ जुलाई २००४)
३ ई. छत्रपति शिवाजी महाराजद्वारा बार्देश
(गोवा) क्षेत्रमें ईसाईकरण का षड्यंत्र नष्ट करना
आदिलशाहसे गोवाका बार्देश प्रांत छीन लेनेके
पश्चात् पुर्तगालियोंने वहांके हिंदुओंका बलपूर्वक धर्मांतरण
किया । धर्मांतरणको अस्वीकार करनेवाले ३
सहदाा हिंदुओंको ‘आजसे दो माहके भीतर
धर्म-परिवर्तन करो, अन्यथा कहीं और चले
जाओ’, ऐसा आदेश पुर्तगालियोंके गोवा स्थित वाइसरायने दिया ।
यह समाचार प्राप्त होते ही छत्रपति
शिवाजी महाराजने वाइसरायके आदेशानुसार
कार्यवाही होनेमें दो दिन शेष रहनेपर २०
नवंबर १६६७ को बार्देश प्रांतपर आक्रमण किया और इस
आदेशका उत्तर अपनी तलवारसे दिया ।
३ उ. हिंदुओंको छल-कपटसे ईसाई बनानेवाले
पुर्तगाली पादरियोंको छत्रपति
संभाजी महाराजकी फटकार !
‘छत्रपति संभाजी महाराजने गोवामें पुर्तगालियोंसे
किया युद्ध राजनीतिकके साथ ही
धार्मिक भी था । हिंदुओंका धर्मांतरण करना तथा
धर्मांतरित न होनेवालोंको जीवित
जलानेकी शृंखला चलानेवाले पुर्तगाली
पादरियोंके ऊपरी वस्त्र उतारकर तथा दोनों हाथ
पीछे बांधकर संभाजी महाराजने
गांवमें उनका जुलूस निकाला ।’ – प्रा. श.श्री.
पुराणिक (ग्रंथ : ‘मराठ्यांचे स्वातंत्र्यसमर (अर्थात् मराठोंका
स्वतंत्रतासंग्राम’ डपूर्वार्ध़)
४. अंग्रेजोंका शासनकाल
४ अ. हिंदुस्थानमें हिंदुओंका ईसाईकरण
करनेकी अंग्रेजोंकी योजनाका
जनक चार्ल्स ग्रांट !
‘१७५७ में ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’का बंगालमें राज्य
स्थापित हुआ । तत्पश्चात् १८ वीं
शताब्दीके अंतमें चार्ल्स ग्रांट नामक अंग्रेजने
‘हिंदुस्थानमें ईसाई धर्मका प्रचार किस प्रकार किया जा सकता
है’, इस विषयमें आलेख ब्रिटिश संसदमें विलियम
विल्बरफोर्स, कुछ अन्य सांसद और
कैन्टरबरीके आर्चबिशपके पास भेजा । चार्ल्स
ग्रांटके इस प्रस्तावपर ब्रिटिश संसदमें निरंतर आठ दिन चर्चा
होनेके उपरांत ईसाई मिशनरियोंको धर्मप्रसारकी
अनुमति दी गई ।’ – श्री. विराग
श्रीकृष्ण पाचपोर
४ आ. ‘१८५७ के पूर्व हिंदुस्थानमें ‘ईस्ट इंडिया
कंपनी’के शासनकालमें मिशनरियोंद्वारा बलपूर्वक
हिंदुओंका धर्मांतरण किया गया ।’ – शंकर द. गोखले,
अध्यक्ष, स्वातंत्र्यवीर सावरकर साहित्य
अभ्यास मंडल, मुंबई.
४ इ. १८५७ के स्वतंत्रता संग्रामके पश्चात् ईसाई
मिशनरी
और ब्रिटिश साम्राज्यमें हिंदुओंके धर्मांतरणके विषयमें
हुआ एकमत !
‘१८५७ के स्वतंत्रता संग्रामके पश्चात् ईसाई
मिशनरी और ब्रिटिश साम्राज्यका संबंध अधिक
दृढ हुआ । वर्ष १८५९ में ‘भारतमें ईसाई धर्मका प्रचार
हम जितना शीघ कर पाएंगे, हमारे साम्राज्यके
लिए हितकर होगा’, ऐसा लॉर्ड पामरस्टनने
वैâन्टरबरीके आर्चबिशपसे कहा था ।’ –
श्री. विराग श्रीकृष्ण पाचपोर
४ ई. धूर्त अंग्रेजोंने अपने शासनकालमें सत्ता, शिक्षा और
सेवाके माध्यमोंसे धर्मप्रचार कर लोगोंको ईसाई बनानेका प्रयास
किया ।’ – प.पू. स्वामी गोविंददेवगिरी
महाराज (पूर्वके पू. किशोरजी व्यास)
४ उ. धर्म-परिवर्तन ही ब्रिटिश शिक्षाविद्
लॉर्ड मैकालेका हिंदुस्थानके विद्यालयोंके
अंग्रेजीकरणका उद्देश्य !
‘अंग्रेजोंने हिंदुस्थानमें पैर जमानेके पश्चात्
‘हिंदुस्थानी लोगोंको किस भाषामें शिक्षा
दी जाए’, इस संबंधमें विचार आरंभ किया । उस
समय ब्रिटिश शिक्षाविद् लॉर्ड मैकालेने अपने कट्टर ईसाई
धर्मवादी और धर्मप्रचारक पिताको पत्र लिखकर
बताया, ‘अंग्रेजी भाषामें शिक्षा पानेवाला हिंदु
कभी भी अपने धर्मसे एकनिष्ठ
नहीं रहता । ऐसे अहिंदु आगे चलकर ‘हिंदु
धर्म किस प्रकार निकृष्ट है तथा ईसाई धर्म किस प्रकार
श्रेष्ठ है’, इसका दृढतापूर्वक प्रचार करते हैं एवं उनमेंसे
कुछ लोग ईसाई धर्म अपनाते हैं ।’
४ ऊ. धर्म-परिवर्तन रोकनेके लिए छत्रपति
संभाजी महाराजद्वारा अंग्रेजोंसे
की गई संधि (समझौता) !
‘वर्ष १६८४ में मराठा और अंग्रेजोंके मध्य संधि हुई । इस
संधिमें छत्रपति संभाजी महाराजने अंग्रेजोंके
सामने प्रतिबंध (शर्त) रखा, ‘मेरे राज्यमें दास (गुलाम) बनानेके
लिए अथवा ईसाई धर्ममें धर्मांतरित करनेके लिए लोगोंको क्रय
करनेकी अनुमति नहीं ।’ – डॉ.
(श्रीमती) कमल गोखले (ग्रंथ :
‘शिवपुत्र संभाजी’)
५. स्वतंत्रता और स्वतंत्रताके पश्चात्का काल
५ अ. ‘मुस्लिम लीग’के ‘प्रत्यक्ष
कार्यवाही दिन योजना’के परिपत्रकमें हिंदुओंको
बलपूर्वक धर्मांतरित करनेकी आज्ञा होन
‘मुस्लिम लीग’ने १६.८.१९४६ को मुसलमानोंको,
‘प्रत्यक्ष कार्यवाही योजना’के विषयमें
जानकारी देनेवाला परिपत्रक प्रकाशित किया ।
उसमें मुसलमानोंको दी गई अनेक आज्ञाओंमेंसे
एक आज्ञा थी, ‘हिंदु स्त्रियों और लडकियोंपर
बलात्कार करो तथा भगाकर उनका धर्म-परिवर्तन करो ।’
५ आ. नेहरूके कार्यकालमें ईसाईकृत धर्म-परिवर्तनको
प्राप्त राज्याश्रय
५ आ १. स्वतंत्रता प्राप्तिके पश्चात् ईसाइयोंको
धर्मप्रचारकी स्वतंत्रता देनेवाले नेहरू !
‘देश स्वतंत्र होनेके पश्चात् प्रधानमंत्री
जवाहरलाल नेहरूने ईसाई मिशनरी संगठनोंको
भारतीय संविधानके अनुच्छेद ‘२५ अ’ के
अंतर्गत धर्मप्रचारकी स्वतंत्रता प्रदान
की । फलस्वरूप स्वतंत्रतापूर्व भारतमें
ईसाइयोंकी जो संख्या ०.७ प्रतिशत
थी, वह आज लगभग ६ प्रतिशत हो गई है
।’ – श्री. विराग श्रीकृष्ण पाचपोर
५ आ २. गेहूं बेचनेपर ईसाइयोेंके लिए धर्मप्रचार
करनेकी अनुमति मांगनेवाली ईसाई
अमरीका और उसे अनुमति देनेवाले नेहरू !
‘स्वतंत्रताके पश्चात् देशमें खाद्यान्नका भीषण
अभाव हो गया । देशकी आर्थिक स्थिति
ठीक न होनेके कारण रूसने, जहां वस्तुओंका
आदान-प्रदान करना (Barter System), इस
नीतिके अनुसार देशको गेहूंकी
आपूर्ति की । वहीं
अमरीकाने गेहूं बेचनेके लिए कुछ
बंधनकारी नियम बनाए । उनमें पहला प्रतिबंध
(शर्त) था, ‘ईसाई मिशनरियोंको हिंदुस्थानमें
धर्मप्रचारकी छूट दी जाए’ । इस
नियमका अनेक लोगोंने विरोध किया । इसपर नेहरूने न्या.
भवानीशंकर नियोगीकी
अध्यक्षतामें एक समिति नियुक्त की । ‘समस्या
केवल धर्मप्रचारकी नहीं, अपितु
उसके द्वारा होनेवाले धर्म-परिवर्तनका भी सूत्र
विचार करने योग्य है’, यह न्या. नियोगीके
कहनेके पश्चात् भी गेहूं प्राप्त करनेके लिए
अमरीकाका नियम स्वीकारकर
संविधानकी ‘धारा ४८०’ में तदनुसार व्यवस्था
की गई । तबसे ईसाई धर्मका प्रचार, अर्थात्
ईसााईकृत धर्म-परिवर्तन मुक्तरूपसे चल रहा है ।’ –
श्री. वसंत गद्रे
५ आ ३. ‘धर्मप्रचारके पीछे ईसाई चर्च और
मिशनरी संगठनोंका राजनीतिक
उद्देश्य है’, ऐसा सप्रमाण कहनेवाली
शासनद्वारा नियुक्त समितिके प्रतिवेदनकी
अनदेखी करनेवाले नेहरू !
‘ईसाई मिशनरी संगठनोंके कार्यकी
जांच करनेके लिए १९५५ में तत्कालीन
मध्यप्रदेश शासनने न्या. भवानीशंकर
नियोगीकी अध्यक्षतामें समिति बनाई
थी । उस समितिने अपने प्रतिवेदनमें अनेक
उदाहरण और प्रमाणके साथ स्पष्टरूपसे उल्लेख किया था,
‘धर्मप्रचारके पीछे ईसाई चर्च एवं
मिशनरी संगठनोंका राजनीतिक
उद्देश्य है’ और अनुशंसा की थी,
‘उन्हें मिलनेवाली विदेशी
धनकी सहायता बंद की जाए’ ।
नेहरू शासनने उस प्रतिवेदनको कूडेदानमें फेंक दिया ।’
५ इ. इंदिरा गांधीके शासनकालमें
अमरीकी ईसाज
संस्थाओंद्वारा धर्म- परिवर्तनके कार्यको गति प्रदान करना
स्वतंत्रताके पश्चात् इंदिरा गांधीने ४२ वें संविधान
संशोधनके द्वारा संविधानमें ‘धर्मनिरपेक्ष’ यह शब्द लाया ।
तथाकथित धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतको शासकीय
स्तरपर बढावा मिलनेके पश्चात् अनेक
अमरीकी संस्थाओंने हिंदुस्थानमें
ईसाई धर्मप्रचार एवं धर्म-परिवर्तन की गति
बढाई ।

५ ई. वर्तमानमें सोनिया गांधीका
राजनीतिके सर्वोेच्च
पदपर होनेके कारण धर्म-परिवर्तनको अत्यधिक गति
प्राप्त होना
‘ईसाई सोनिया गांधी राजनीतिमें सर्वोच्च
पदपर होनेके कारण ही हिंदुस्थानमें ईसाइयोंने
हिंदुओंके धर्म-परिवर्तनको व्यापक आंदोलनके रूपमें आरंभ
किया । इस कार्यमें देशके विविध राज्योंमें ४ सहदाासे अधिक
ईसाई मिशनरी सक्रिय हैं ।’ – फ्रान्सुआ
गोतीए, फ्रेंच पत्रकार

संदर्भ : हिंदू जनजागृति समिति’द्वारा समर्थित ग्रंथ ‘धर्म-
परिवर्तन एवं धर्मांतरितोंका शुद्धिकरण’

सोमवार, 11 मई 2015

naga sadhu history) आखिर कौन होते हैं नागा साधू???? जाने उनका रहस्य

आखिर कौन होते
हैं नागा साधू????
जाने उनका रहस्य........
अक्सर मुस्लिम और अंबेडकर वादी नागा साधूओं की
तस्वीर दिखा कर हिन्दु धर्म के साधूओं का अपमान करने
की और हिन्दुओं को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं
उन लोगों को नागा साधूओं का गौरवशाली इतिहास
पता नहीं होता जानें नागा साधूओं का गौरवशाली
इतिहास और उसकी महानता।
नागा साधूओं का इतिहास
नागा साधु हिन्दू धर्मावलम्बी साधु हैं जो कि नग्न रहने
तथा युद्ध कला में माहिर होने के लिये प्रसिद्ध हैं। ये
विभिन्न अखाड़ों में रहते हैं जिनकी परम्परा आदिगुरु
शंकराचार्य द्वारा की गयी थी।
नागा साधूओं का इतिहास
भारतीय सनातन धर्म के वर्तमान स्वरूप की नींव आदिगुरू
शंकराचार्य ने रखी थी। शंकर का जन्म ८वीं शताब्दी के
मध्य में हुआ था जब भारतीय जनमानस की दशा और दिशा
बहुत बेहतर नहीं थी। भारत की धन संपदा से खिंचे तमाम
आक्रमणकारी यहाँ आ रहे थे। कुछ उस खजाने को अपने साथ
वापस ले गए तो कुछ भारत की दिव्य आभा से ऐसे मोहित
हुए कि यहीं बस गए, लेकिन कुल मिलाकर सामान्य शांति-
व्यवस्था बाधित थी। ईश्वर, धर्म, धर्मशास्त्रों को तर्क,
शस्त्र और शास्त्र सभी तरह की चुनौतियों का सामना
करना पड़ रहा था। ऐसे में शंकराचार्य ने सनातन धर्म की
स्थापना के लिए कई कदम उठाए जिनमें से एक था देश के चार
कोनों पर चार पीठों का निर्माण करना। यह थीं
गोवर्धन पीठ, शारदा पीठ, द्वारिका पीठ और
ज्योतिर्मठ पीठ। इसके अलावा आदिगुरू ने मठों-मन्दिरों
की सम्पत्ति को लूटने वालों और श्रद्धालुओं को सताने
वालों का मुकाबला करने के लिए सनातन धर्म के विभिन्न
संप्रदायों की सशस्त्र शाखाओं के रूप में अखाड़ों की
स्थापना की शुरूआत की।
नागा साधूओं का इतिहास
आदिगुरू शंकराचार्य को लगने लगा था सामाजिक उथल-
पुथल के उस युग में केवल आध्यात्मिक शक्ति से ही इन
चुनौतियों का मुकाबला करना काफी नहीं है। उन्होंने
जोर दिया कि युवा साधु व्यायाम करके अपने शरीर को
सुदृढ़ बनायें और हथियार चलाने में भी कुशलता हासिल
करें। इसलिए ऐसे मठ बने जहाँ इस तरह के व्यायाम या शस्त्र
संचालन का अभ्यास कराया जाता था, ऐसे मठों को
अखाड़ा कहा जाने लगा। आम बोलचाल की भाषा में भी
अखाड़े उन जगहों को कहा जाता है जहां पहलवान कसरत के
दांवपेंच सीखते हैं। कालांतर में कई और अखाड़े अस्तित्व में
आए। शंकराचार्य ने अखाड़ों को सुझाव दिया कि मठ,
मंदिरों और श्रद्धालुओं की रक्षा के लिए जरूरत पडऩे पर
शक्ति का प्रयोग करें। इस तरह बाह्य आक्रमणों के उस दौर
में इन अखाड़ों ने एक सुरक्षा कवच का काम किया। कई
बार स्थानीय राजा-महाराज विदेशी आक्रमण की
स्थिति में नागा योद्धा साधुओं का सहयोग लिया
करते थे। इतिहास में ऐसे कई गौरवपूर्ण युद्धों का वर्णन
मिलता है जिनमें ४० हजार से ज्यादा नागा योद्धाओं ने
हिस्सा लिया। अहमद शाह अब्दाली द्वारा मथुरा-
वृन्दावन के बाद गोकुल पर आक्रमण के समय नागा साधुओं ने
उसकी सेना का मुकाबला करके गोकुल की रक्षा की।
नागा साधू
नागा साधुओं की लोकप्रियता है। गृहस्थ जीवन जितना
कठिन होता है उससे सौ गुना ज्यादा कठिन नागाओं का
जीवन है। यहां प्रस्तुत है नागा से जुड़ी महत्वपूर्ण
जानकारी।
1.
नागा अभिवादन मंत्र : ॐ नमो नारायण
2.
नागा का ईश्वर : शिव के भक्त नागा साधु शिव के
अलावा किसी को भी नहीं मानते।
*नागा वस्तुएं : त्रिशूल, डमरू, रुद्राक्ष, तलवार, शंख, कुंडल,
कमंडल, कड़ा, चिमटा, कमरबंध या कोपीन, चिलम, धुनी के
अलावा भभूत आदि।
3.
नागा का कार्य : गुरु की सेवा, आश्रम का कार्य,
प्रार्थना, तपस्या और योग क्रियाएं करना।
4.
नागा दिनचर्या : नागा साधु सुबह चार बजे बिस्तर
छोडऩे के बाद नित्य क्रिया व स्नान के बाद श्रृंगार पहला
काम करते हैं। इसके बाद हवन, ध्यान, बज्रोली, प्राणायाम,
कपाल क्रिया व नौली क्रिया करते हैं। पूरे दिन में एक
बार शाम को भोजन करने के बाद ये फिर से बिस्तर पर चले
जाते हैं।
5.
सात अखाड़े ही बनाते हैं नागा : संतों के तेरह अखाड़ों में
सात संन्यासी अखाड़े ही नागा साधु बनाते हैं:- ये हैं
जूना, महानिर्वणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और
आवाहन अखाड़ा।
6.
नागा इतिहास : सबसे पहले वेद व्यास ने संगठित रूप से
वनवासी संन्यासी परंपरा शुरू की। उनके बाद शुकदेव ने,
फिर अनेक ऋषि और संतों ने इस परंपरा को अपने-अपने तरीके
से नया आकार दिया। बाद में शंकराचार्य ने चार मठ
स्थापित कर दसनामी संप्रदाय का गठन किया। बाद में
अखाड़ों की परंपरा शुरू हुई। पहला अखाड़ा अखंड आह्वान
अखाड़ा’ सन् 547 ई. में बना।
7.
नाथ परंपरा : माना जाता है कि नाग, नाथ और नागा
परंपरा गुरु दत्तात्रेय की परंपरा की शाखाएं है। नवनाथ
की परंपरा को सिद्धों की बहुत ही महत्वपूर्ण परंपरा
माना जाता है। गुरु मत्स्येंद्र नाथ, गुरु गोरखनाथ साईनाथ
बाबा, गजानन महाराज, कनीफनाथ, बाबा रामदेव,
तेजाजी महाराज, चौरंगीनाथ, गोपीनाथ, चुणकरनाथ,
भर्तृहरि, जालन्ध्रीपाव आदि। घुमक्कड़ी नाथों में
ज्यादा रही।
8.
नागा उपाधियां : चार जगहों पर होने वाले कुंभ में नागा
साधु बनने पर उन्हें अलग अलग नाम दिए जाते हैं। इलाहाबाद
के कुंभ में उपाधि पाने वाले को 1.नागा, उज्जैन में 2.खूनी
नागा, हरिद्वार में 3.बर्फानी नागा तथा नासिक में
उपाधि पाने वाले को 4.खिचडिया नागा कहा जाता
है। इससे यह पता चल पाता है कि उसे किस कुंभ में नागा
बनाया गया है।
उनकी वरीयता के आधार पर पद भी दिए जाते हैं।
कोतवाल, पुजारी, बड़ा कोतवाल, भंडारी, कोठारी,
बड़ा कोठारी, महंत और सचिव उनके पद होते हैं। सबसे बड़ा
और महत्वपूर्ण पद सचिव का होता है।
10.
कठिन परीक्षा : नागा साधु बनने के लिए लग जाते हैं 12
वर्ष। नागा पंथ में शामिल होने के लिए जरूरी जानकारी
हासिल करने में छह साल लगते हैं। इस दौरान नए सदस्य एक
लंगोट के अलावा कुछ नहीं पहनते। कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के
बाद वे लंगोट भी त्याग देते हैं और जीवन भर यूं ही रहते हैं।
11.
नागाओं की शिक्षा और ‍दीक्षा : नागा साधुओं को
सबसे पहले ब्रह्मचारी बनने की शिक्षा दी जाती है। इस
परीक्षा को पास करने के बाद महापुरुष दीक्षा होती है।
बाद की परीक्षा खुद के यज्ञोपवीत और पिंडदान की
होती है जिसे बिजवान कहा जाता है।
अंतिम परीक्षा दिगम्बर और फिर श्रीदिगम्बर की होती
है। दिगम्बर नागा एक लंगोटी धारण कर सकता है, लेकिन
श्रीदिगम्बर को बिना कपड़े के रहना होता है।
श्रीदिगम्बर नागा की इन्द्री तोड़ दी जाती है।
12.
कहां रहते हैं नागा साधु : नाना साधु अखाड़े के आश्रम और
मंदिरों में रहते हैं। कुछ तप के लिए हिमालय या ऊंचे पहाड़ों
की गुफाओं में जीवन बिताते हैं। अखाड़े के आदेशानुसार यह
पैदल भ्रमण भी करते हैं। इसी दौरान किसी गांव की मेर पर
झोपड़ी बनाकर धुनी रमाते हैं।
नागा साधू बनने की प्रक्रिया.
नागा साधु बनने की प्रक्रिया कठिन तथा लम्बी होती
है। नागा साधुओं के पंथ में शामिल होने की प्रक्रिया में
लगभग छह साल लगते हैं। इस दौरान नए सदस्य एक लंगोट के
अलावा कुछ नहीं पहनते। कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद वे
लंगोट भी त्याग देते हैं और जीवन भर यूँ ही रहते हैं। कोई भी
अखाड़ा अच्छी तरह जाँच-पड़ताल कर योग्य व्यक्ति को
ही प्रवेश देता है। पहले उसे लम्बे समय तक ब्रह्मचारी के रूप में
रहना होता है, फिर उसे महापुरुष तथा फिर अवधूत बनाया
जाता है। अन्तिम प्रक्रिया महाकुम्भ के दौरान होती है
जिसमें उसका स्वयं का पिण्डदान तथा दण्डी संस्कार
आदि शामिल होता है।[2]
ऐसे होते हैं 17 श्रृंगार(नागा साधू)
बातचीत के दौरान नागा संत ने कहा कि शाही स्नान से
पहले नागा साधु पूरी तरह सज-धज कर तैयार होते हैं और
फिर अपने ईष्ट की प्रार्थना करते हैं। नागाओं के सत्रह
श्रृंगार के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि लंगोट,
भभूत, चंदन, पैरों में लोहे या फिर चांदी का कड़ा, अंगूठी,
पंचकेश, कमर में फूलों की माला, माथे पर रोली का लेप,
कुंडल, हाथों में चिमटा, डमरू या कमंडल, गुथी हुई जटाएं और
तिलक, काजल, हाथों में कड़ा, बदन में विभूति का लेप और
बाहों पर रूद्राक्ष की माला 17 श्रृंगार में शामिल होते
हैं।
नागा साधू
सन्यासियों की इस परंपरा मे शामील होना बड़ा कठिन
होता है और अखाड़े किसी को आसानी से नागा रूप मे
स्वीकार नहीं करते। वर्षो बकायदे परीक्षा ली जाती है
जिसमे तप , ब्रहमचर्य , वैराग्य , ध्यान ,सन्यास और धर्म का
अनुसासन तथा निस्ठा आदि प्रमुखता से परखे-देखे जाते हैं।
फिर ये अपना श्रध्या , मुंडन और पिंडदान करते हैं तथा गुरु
मंत्र लेकर सन्यास धर्म मे दीक्षित होते है इसके बाद इनका
जीवन अखाड़ों , संत परम्पराओं और समाज के लिए समर्पित
हो जाता है,
अपना श्रध्या कर देने का मतलब होता है सांसरिक जीवन से
पूरी तरह विरक्त हो जाना , इंद्रियों मे नियंत्रण करना
और हर प्रकार की कामना का अंत कर देना होता है कहते हैं
की नागा जीवन एक इतर जीवन का साक्षात ब्यौरा है
और निस्सारता , नश्वरता को समझ लेने की एक प्रकट
झांकी है । नागा साधुओं के बारे मे ये भी कहा जाता है
की वे पूरी तरह निर्वस्त्र रह कर गुफाओं , कन्दराओं मे कठोर
ताप करते हैं । प्राच्य विद्या सोसाइटी के अनुसार
“नागा साधुओं के अनेक विशिष्ट संस्कारों मे ये भी
शामिल है की इनकी कामेन्द्रियन भंग कर दी जाती हैं”।
इस प्रकार से शारीरिक रूप से तो सभी नागा साधू
विरक्त हो जाते हैं लेकिन उनकी मानसिक अवस्था उनके
अपने तप बल निर्भर करती है ।
विदेशी नागा साधू
सनातन धर्म योग, ध्यान और समाधि के कारण हमेशा
विदेशियों को आकर्षित करता रहा है लेकिन अब बडी
तेजी से विदेशी खासकर यूरोप की महिलाओं के बीच
नागा साधु बनने का आकर्षण बढ़ता जा रहा है।
उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद में गंगा, यमुना और अदृश्य
सरस्वती के संगम पर चल रहे महाकुंभ मेले में विदेशी महिला
नागा साधू आकर्षण के केन्द्र में हैं। यह जानते हुए भी कि
नागा बनने के लिए कई कठिन प्रक्रिया और तपस्या से
गुजरना होता है विदेशी महिलाओं ने इसे अपनाया है।
आमतौर पर अब तक नेपाल से साधू बनने वाली महिलाए ही
नागा बनती थी। इसका कारण यह कि नेपाल में
विधवाओं के फिर से विवाह को अच्छा नहीं माना
जाता। ऐसा करने वाली महिलाओं को वहां का समाज
भी अच्छी नजरों से भी नहीं देखता लिहाजा विधवा
होने वाली नेपाली महिलाएं पहले तो साधू बनती थीं
और बाद में नागा साधु बनने की कठिन प्रक्रिया से जुड़
जाती थी।
नागा साधू
कालांतर मे सन्यासियों के सबसे बड़े जूना आखाठे मे
सन्यासियों के एक वर्ग को विशेष रूप से शस्त्र और शास्त्र
दोनों मे पारंगत करके संस्थागत रूप प्रदान किया । उद्देश्य
यह था की जो शास्त्र से न माने उन्हे शस्त्र से मनाया
जाय । ये नग्ना अवस्था मे रहते थे , इन्हे त्रिशूल , भाला
,तलवार,मल्ल और छापा मार युद्ध मे प्रशिक्षिण दिया
जाता था । इस तरह के भी उल्लेख मिलते हैं की औरंगजेब के
खिलाफ युद्ध मे नागा लोगो ने शिवाजी का साथ
दिया था
नागा साधू
जूना के अखाड़े के संतों द्वारा तीनों योगों- ध्यान योग
, क्रिया योग , और मंत्र योग का पालन किया जाता है
यही कारण है की नागा साधू हिमालय के ऊंचे शिखरों पर
शून्य से काफी नीचे के तापमान पर भी जीवित रह लेते हैं,
इनके जीवन का मूल मंत्र है आत्मनियंत्रण, चाहे वह भोजन मे
हो या फिर विचारों मे
नागा साधू
बात 1857 की है। पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल बज
चुका था। यहां पर तो क्रांति की ज्वाला की पहली
लपट 57 के 13 साल पहले 6 जून को मऊ कस्बे में छह अंग्रेज
अफसरों के खून से आहुति ले चुकी थी।
एक अप्रैल 1858 को मप्र के रीवा जिले की मनकेहरी
रियासत के जागीरदार ठाकुर रणमत सिंह बाघेल ने लगभग
तीन सौ साथियों को लेकर नागौद में अंग्रेजों की
छावनी में आक्रमण कर दिया। मेजर केलिस को मारने के
साथ वहां पर कब्जा जमा लिया। इसके बाद 23 मई को
सीधे अंग्रेजों की तत्कालीन बड़ी छावनी नौगांव का
रुख किया। पर मेजर कर्क की तगड़ी व्यूह रचना के कारण
यहां पर वे सफल न हो सके। रानी लक्ष्मीबाई की
सहायता को झांसी जाना चाहते थे पर उन्हें चित्रकूट का
रुख करना पड़ा। यहां पर पिंडरा के जागीरदार ठाकुर
दलगंजन सिंह ने भी अपनी 1500 सिपाहियों की सेना को
लेकर 11 जून को 1958 को दो अंग्रेज अधिकारियों की
हत्या कर उनका सामान लूटकर चित्रकूट का रुख किया।
यहां के हनुमान धारा के पहाड़ पर उन्होंने डेरा डाल रखा
था, जहां उनकी सहायता नागा साधु-संत कर रहे थे। लगभग
तीन सौ से ज्यादा नागा साधु क्रांतिकारियों के
साथ अगली रणनीति पर काम कर रहे थे। तभी नौगांव से
वापसी करती ठाकुर रणमत सिंह बाघेल भी अपनी सेना
लेकर आ गये। इसी समय पन्ना और अजयगढ़ के नरेशों ने अंग्रेजों
की फौज के साथ हनुमान धारा पर आक्रमण कर दिया।
तत्कालीन रियासतदारों ने भी अंग्रेजों की मदद की।
सैकड़ों साधुओं ने क्रांतिकारियों के साथ अंग्रेजों से
लोहा लिया। तीन दिनों तक चले इस युद्ध में
क्रांतिकारियों को मुंह की खानी पड़ी। ठाकुर दलगंजन
सिंह यहां पर वीरगति को प्राप्त हुये जबकि ठाकुर रणमत
सिंह गंभीर रूप से घायल हो गये।
करीब तीन सौ साधुओं के साथ क्रांतिकारियों के खून से
हनुमानधारा का पहाड़ लाल हो गया।
महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय में
इतिहास विभाग के अधिष्ठाता डा. कमलेश थापक कहते हैं
कि वास्तव में चित्रकूट में हुई क्रांति असफल क्रांति थी।
यहां पर तीन सौ से ज्यादा साधु शहीद हो गये थे।
साक्ष्यों में जहां ठाकुर रणमतिसह बाघेल के साथ ही
ठाकुर दलगंजन सिंह के अलावा वीर सिंह, राम प्रताप
सिंह, श्याम शाह, भवानी सिंह बाघेल (भगवान् सिंह
बाघेल ), सहामत खां, लाला लोचन सिंह, भोला बारी,
कामता लोहार, तालिब बेग आदि के नामों को उल्लेख
मिलता है वहीं साधुओं की मूल पहचान उनके निवास स्थान
के नाम से अलग हो जाने के कारण मिलती नहीं है। उन्होंने
कहा कि वैसे इस घटना का पूरा जिक्र आनंद पुस्तक भवन
कोठी से विक्रमी संवत 1914 में राम प्यारे अग्निहोत्री
द्वारा लिखी गई पुस्तक 'ठाकुर रणमत सिंह' में मिलता है।
इस प्रकार मैं दावे के साथ कह सकता हु की नागा साधू
सनातन के साथ साथ देश रक्षा के लिए भी अपने प्राणों
की आहुति देते आये है और समय आने पर फिर से देश और धर्म के
लिए अपने प्राणों की आहुति दे सकते है ...पर कुछ
पुराव्ग्राही बन्धुओ को नागाओ का यह त्याग और
बलिदान क्यों नहीं दिखाई देता है?

रविवार, 10 मई 2015

अगर आप शराब पीकर गाडी चालाते है तो यह खबर अाप जरूर पढे



माँ मैं एक पार्टी में गया था.
तूने मुझे शराब नहीं पीने
को कहा था,

इसीलिए बाकी लोग शराब पीकर मस्ती कर रहे थे

और मैं सोडा पीता रहा.
लेकिन मुझे सचमुच अपने पर
गर्व हो रहा था
माँ,

जैसा तूने कहा था कि 'शराब पीकर
गाड़ी नहीं चलाना'.

मैंने वैसा ही किया.
घर लौटते वक्त मैंने शराब को छुआ तक नहीं,

भले ही बाकी दोस्तों ने
मौजमस्ती के नाम पर
जमकर पी.
उन्होंने मुझे भी पीने के
लिए बहुत उकसाया था.

पर मैं अच्छे से जानता था कि मुझे
शराब नहीं पीनी है और मैंने
सही किया था.

माँ, तुम हमेशा सही सीख देती हो.
पार्टी अब लगभग खत्म होने
को आयी है और सब लोग अपने-अपने घर लौटने की तैयारी कर रहे हैं.

माँ ,अब जब मैं अपनी कार में बैठ
रहा हूँ तो जानता हूँ कि केवल कुछ
समय बाद मैं

अपने घर अपनी प्यारी स्वीट
माँ और पापा के पास रहूंगा.

तुम्हारे और पापा के इसी प्यार और
संस्कारों ने

मुझे जिम्मेदारी सिखायी और लोग
कहते हैं कि मैं

समझदार हो गया हूँ माँ, मैं घर आ
रहा हूँ और

अभी रास्ते में हूँ. आज हमने बहुत
मजा की और मैं बहुत खुश हूँ.

लेकिन ये क्या माँ...
शायद दूसरी कारवाले ने मुझे
देखा नहीं और ये भयानक टक्कर....
माँ, मैं यहाँ रास्ते पर खून से लथपथ हूँ.

मुझे पुलिसवाले की आवाज सुनाई पड़
रही है

और वो कह रहा है कि इसने नहीं पी.
दूसरा गाड़ीवाला पीकर चला रहा था.

पर माँ, उसकी गलती की कीमत मैं
क्यों चुकाऊं ?

माँ, मुझे नहीं लगता कि मैं और
जी पाऊंगा.

माँ-पापा, इस आखिरी घड़ी में तुम
लोग मेरे पास क्यों नहीं हो.
माँ, बताओ ना ऐसा क्यों हो गया.

कुछ ही पलों में मैं सबसे दूर हो जाऊँगा.

मेरे आसपास ये गीला-गीला और
लाल-लाल क्या लग रहा है.
ओह! ये तो खून है और
वो भी सिर्फ मेरा.

मुझे डाक्टर की आवाज आ रही है
जो कह रहे हैं कि मैं बच नहीं पाऊंगा.
तो क्या माँ,
मैं सचमुच मर जाऊँगा.

मेरा यकीन मानो माँ. मैं तेरी कसम
खाकर कहता हूँ कि मैंने शराब
नहीं पी थी.
मैं उस दूसरी गाड़ी चलाने वाले
को जानता हूँ.

वो भी उसी पार्टी में था और खूब
पी रहा था.

माँ, ये लोग क्यों पीते हैं और
लोगों की जिंदगी से
खेलते हैं उफ! कितना दर्द हो रहा है.

मानो किसी ने चाकू चला दिया हो या सुइयाँ चुभो रहा हो.

जिसने मुझे टक्कर मारी वो तो अपने
घर चला गया और मैं
यहाँ अपनी आखिरी साँसें गिन
रहा हूँ. तुम ही कहो माँ, क्या ये
ठीक हुआ.

घर पर भैया से कहना, वो रोये नहीं.
पापा से धीरज रखने को कहना.
मुझे पता है,वो मुझे कितना चाहते हैं

और मेरे जाने के बाद तो टूट
ही जाएंगे.
पापा हमेशा गाड़ी धीरे चलाने को कहते
थे.

पापा, मेरा विश्वास करो,
मेरी कोई गलती नहीं थी. अब मुझसे
बोला भी नहीं जा रहा.
कितनी पीड़ा!

साँस लेने में तकलीफ हो रही है.
माँ-पापा, आप मेरे पास
क्यों नहीं हो. शायद

मेरी आखिरी घड़ी आ गयी है. ये
अंधेरा सा क्यों लग रहा है. बहुत डर
लग रहा है.

माँ-पापा प्लीज़ रोना नहीं. मै
हमेशा आपकी यादों में, आपके दिल में
आपके पास ही रहूंगा.
माँ, मैं जा रहा हूँ. पर जाते-जाते ये
सवाल ज़रूर पूछुंगा कि ये लोग पीकर
गाड़ी क्यों चलाते हैं.
अगर उसने पी नहीं होतीं तो मैं आज
जिंदा, अपने घर,
अपने परिवार के साथ होता.

मित्रो, इसको ज्यादा से
ज्यादा लोगों तक
पहुँचाए ताकि किसी के शराब
पीकर गाड़ी चलाने
से किसी और के घर का चिराग
ना बुझने पाय...!!!

परन्तु कुछ लोग इसे Send नहीं करेगें क्योकि उनके पास समय नहीं होता है किसी के लिए।


Pls padhe jarur
 ➰➰➰➰➰➰➰ शायद लिखने वाले ने अपना कलेजा निकाल कर रख दिया है   💠💠💠💠💠💠💠💠मैं एक दुकान में
खरीददारी कर रहा था,
तभी मैंने उस दुकान के कैशियर को एक 5-6
साल की लड़की से
बात करते हुए देखा |

कैशियर बोला :~
"माफ़ करना बेटी,
लेकिन इस गुड़िया को
खरीदने के लिए
तुम्हारे पास पर्याप्त पैसे नहीं हैं|"

फिर उस छोटी सी
लड़की ने मेरी ओर
मुड़ कर मुझसे पूछा:~

"अंकल,
क्या आपको भी यही लगता है
कि मेरे पास पूरे पैसे नहीं हैं?''

मैंने उसके पैसे गिने
और उससे कहा:~
"हाँ बेटे,
यह सच है कि तुम्हारे पास
इस गुड़िया को खरीदने के लिए पूरे पैसे
नहीं हैं"|

वह नन्ही सी लड़की
अभी भी अपने
हाथों में गुड़िया थामे हुए खड़ी थी |
मुझसे रहा नहीं गया |
इसके बाद मैंने उसके पास जाकर उससे
पूछा कि यह गुड़िया वह किसे
देना चाहती है?

इस पर उसने
उत्तर दिया कि यह
वो गुड़िया है,
जो उसकी बहन को
बहुत प्यारी है |
और वह इसे,
उसके जन्मदिन के लिए उपहार
में देना चाहती है |

बच्ची ने कहा यह गुड़िया पहले मुझे
मेरी मम्मी को देना है,
जो कि बाद में मम्मी
जाकर मेरी बहन को दे देंगी"|

यह कहते-कहते
उसकी आँखें नम हो आईं थी
मेरी बहन भगवान के घर गयी है...

और मेरे पापा कहते हैं
कि मेरी मम्मी भी जल्दी-ही भगवान से
मिलने जाने वाली हैं|
तो, मैंने सोचा कि
क्यों ना वो इस
गुड़िया को अपने साथ ले जाकर, मेरी बहन
को दे दें...|"

मेरा दिल धक्क-सा रह गया था |

उसने ये सारी बातें
एक साँस में ही कह डालीं
और फिर मेरी ओर देखकर बोली -
"मैंने पापा से कह दिया है कि मम्मी से
कहना कि वो अभी ना जाएँ|

वो मेरा,
दुकान से लौटने तक का
इंतजार
करें|

फिर उसने मुझे एक बहुत प्यारा-
सा फोटो दिखाया जिसमें वह
खिलखिला कर हँस
रही थी |

इसके बाद उसने मुझसे कहा:~
"मैं चाहती हूँ कि मेरी मम्मी,
मेरी यह
फोटो भी अपने साथ ले जायें,
ताकि मेरी बहन मुझे भूल नहीं पाए|
मैं अपनी मम्मी से बहुत प्यार करती हूँ और
मुझे नहीं लगता कि वो मुझे ऐसे छोड़ने के
लिए राजी होंगी,
पर पापा कहते हैं कि
 मम्मी को मेरी छोटी
बहन के साथ रहने के
लिए जाना ही पड़ेगा क्योंकि वो बहुत छोटी है, मुझसे भी छोटी है | उसने धीमी आवाज मैं बोला।

इसके बाद फिर से उसने उस
गुड़िया को ग़मगीन आँखों-से खामोशी-से
देखा|

मेरे हाथ जल्दी से
अपने बटुए ( पर्स ) तक
पहुँचे और मैंने उससे कहा:~

"चलो एक बार
और गिनती करके देखते हैं
कि तुम्हारे पास गुड़िया के
लिए पर्याप्त पैसे हैं या नहीं?''

उसने कहा-:"ठीक है|
पर मुझे लगता है
शायद मेरे पास पूरे पैसे हैं"|

इसके बाद मैंने
उससे नजरें बचाकर
कुछ पैसे
उसमें जोड़ दिए और
फिर हमने उन्हें
गिनना शुरू किया |

ये पैसे उसकी
गुड़िया के लिए काफी थे
यही नहीं,
कुछ पैसे अतिरिक्त
बच भी गए
थेl |

नन्ही-सी लड़की ने कहा:~
"भगवान्
का लाख-लाख शुक्र है
मुझे इतने सारे पैसे
देने के लिए!

फिर उसने
मेरी ओर देख कर
कहा कि मैंने कल
रात सोने से पहले भगवान् से
प्रार्थना की थी कि मुझे इस
गुड़िया को खरीदने के
लिए पैसे दे देना,
ताकि मम्मी इसे
मेरी बहन को दे सकें |
और भगवान् ने मेरी बात सुन ली|

 इसके अलावा
मुझे मम्मी के लिए
एक सफ़ेद गुलाब
खरीदने के लिए भी पैसे चाहिए थे, पर मैं भगवान से
इतने ज्यादा पैसे मांगने
की हिम्मत नहीं कर पायी थी
पर भगवान् ने तो
मुझे इतने पैसे दे दिए हैं
कि अब मैं गुड़िया के साथ-साथ एक सफ़ेद
गुलाब भी खरीद सकती हूँ !
मेरी मम्मी को सफेद गुलाब बहुत पसंद हैं|

"फिर हम वहा से निकल गए |
मैं अपने दिमाग से उस छोटी-
सी लड़की को
निकाल नहीं पा रहा था |

फिर,मुझे दो दिन पहले
स्थानीय समाचार
पत्र में छपी एक
घटना याद आ गयी
जिसमें
एक शराबी
ट्रक ड्राईवर के बारे में
लिखा था|

जिसने नशे की हालत में
मोबाईल फोन पर
बात करते हुए एक कार-चालक
महिला की कार को
टक्कर मार दी थी,
जिसमें उसकी 3 साल
की बेटी की
घटनास्थल पर ही
मृत्यु
हो गयी थी
और वह महिला कोमा में
चली गयी थी|
अब एक महत्वपूर्ण निर्णय उस परिवार
को ये लेना था कि,
उस महिला को जीवन
रक्षक मशीन पर बनाए रखना है
अथवा नहीं?
क्योंकि वह कोमा से बाहर
आकर,
स्वस्थ हो सकने की
अवस्था में
नहीं थी | दोनों पैर , एक हाथ,आधा चेहरा कट चुका था । आॅखें जा चुकी थी ।

"क्या वह परिवार इसी छोटी-
लड़की का ही था?"

मेरा मन रोम-रोम काँप उठा |
मेरी उस नन्ही लड़की
के साथ हुई मुलाक़ात के 2 दिनों बाद मैंने अखबार में
पढ़ा कि उस
महिला को बचाया नहीं जा सका,

मैं अपने आप को
रोक नहीं सका और अखबार
में दिए पते पर जा पहुँचा,
जहाँ उस महिला को
अंतिम दर्शन के लिए
रखा गया था
वह महिला श्वेत धवल
कपड़ों में थी-
अपने हाथ में
एक सफ़ेद गुलाब
और उस छोटी-सी लड़की का वही हॅसता हुआ
फोटो लिए हुए और उसके सीने पर रखी हुई
थी -
वही गुड़िया |
मेरी आँखे नम हो गयी । दुकान में मिली बच्ची और सामने मृत ये महिला से मेरा तो कोई वास्ता नही था लेकिन हूं तो इंसान ही ।ये सब देखने के बाद अपने आप को सभांलना एक बडी चुनौती थी
मैं नम आँखें लेकर वहाँ से लौटा|

उस नन्ही-सी लड़की का
अपनी माँ और
उसकी बहन के लिए
जो बेपनाह अगाध प्यार था,
वह शब्दों में
बयान करना मुश्किल है |

और ऐसे में,
एक शराबी चालक ने
अपनी घोर
लापरवाही से क्षण-भर में
उस लड़की से
उसका सब कुछ
छीन लिया था....!!!

ये दुख रोज कितने परिवारों की सच्चाइ बनता है मुझे पता नहीं!!!!  शायद ये मार्मिक घटना
सिर्फ
एक पैग़ाम
देना चाहती है कि:::::::::::::

कृपया~~~

कभी भी शराब
पीकर और
मोबाइल पर बात
करते समय
वाहन ना चलायें
क्यूँकि आपका आनन्द
किसी के लिए
श्राप साबित हो सकता हैँ।

इस पोस्ट को
पढ़कर यदि आप
'भावुक' हुऐ
हों तो किसी भी एक व्यक्ति को शेयर'
जरूर करें 😊........

श्री हनुमान चालीसा अर्थ सहित

श्री हनुमान चालीसा अर्थ सहित !!
श्री गुरु चरण सरोज रज,निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुवर बिमल जसु,जो दायकु फल चारि।
《अर्थ》→ शरीर गुरु महाराज के चरण
कमलों की धूलि से अपने मन रुपी दर्पण को पवित्र
करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन
करता हूँ,जो चारों फल धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष
को देने वाला हे।★
•••••••••••••••••••••••••••••
बुद्धिहीन तनु जानिके,सुमिरो पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं,हरहु कलेश विकार।★
《अर्थ》→ हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन
करता हूँ। आप तो जानते ही हैं,कि मेरा शरीर और
बुद्धि निर्बल है।मुझे शारीरिक बल,सदबुद्धि एवं
ज्ञान दीजिए और मेरे दुःखों व दोषों का नाश कार
दीजिए।★
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर,जय कपीस तिहुँ लोक
उजागर॥1॥★
《अर्थ 》→ श्री हनुमान जी!आपकी जय हो।
आपका ज्ञान और गुण अथाह है। हे कपीश्वर!
आपकी जय हो!तीनों लोकों,स्वर्ग लोक,भूलोक और
पाताल लोक में आपकी कीर्ति है।★
••••••••••••••••••••••••••••••
राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥
2॥★
《अर्थ》→ हे पवनसुत अंजनी नंदन!आपके समान
दूसरा बलवान नही है।★
••••••••••••••••••••••••••••••
महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी॥3॥

《अर्थ》→ हे महावीर बजरंग बली!आप विशेष पराक्रम
वाले है। आप खराब बुद्धि को दूर करते है,और
अच्छी बुद्धि वालो के साथी,सहायक है।★
••••••••••••••••••••••••••••••
कंचन बरन बिराज सुबेसा ,कानन कुण्डल कुंचित केसा॥
4॥★
《अर्थ》→ आप सुनहले रंग,सुन्दर
वस्त्रों,कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से
सुशोभित हैं।★
••••••••••••••••••••••••••••••
हाथ ब्रज और ध्वजा विराजे,काँधे मूँज जनेऊ साजै॥
5॥★
《अर्थ》→ आपके हाथ मे बज्र और ध्वजा है और
कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।★
••••••••••••••••••••••••••••••
शंकर सुवन केसरी नंदन,तेज प्रताप महा जग वंदन॥6॥★
《अर्थ 》→ हे शंकर के अवतार!हे केसरी नंदन आपके
पराक्रम और महान यश की संसार भर मे
वन्दना होती है।★
••••••••••••••••••••••••••••••
विद्यावान गुणी अति चातुर,रान काज करिबे को आतुर॥
7॥★
《अर्थ 》→ आप प्रकान्ड विद्या निधान है,गुणवान
और अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम काज करने
के लिए आतुर रहते है।★
••••••••••••••••••••••••••••••
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन
बसिया॥8॥★
《अर्थ 》→ आप श्री राम चरित सुनने मे आनन्द रस
लेते है।श्री राम,सीताऔर लखन आपके हृदय मे बसे
रहते है।★
••••••••••••••••••••••••••••••
सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा,बिकट रुप धरि लंक
जरावा॥9॥★
《अर्थ》→ आपने अपना बहुत छोटा रुप धारण करके
सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप करके
लंका को जलाया।★
••••••••••••••••••••••••••••••
भीम रुप धरि असुर संहारे,रामचन्द्र के काज संवारे॥
10॥★
《अर्थ 》→ आपने विकराल रुप धारण करके
राक्षसों को मारा और श्री रामचन्द्र जी के
उदेश्यों को सफल कराया।★
••••••••••••••••••••••••••••••
लाय सजीवन लखन जियाये,श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥11॥

《अर्थ 》→ आपने संजीवनी बुटी लाकर लक्ष्मण
जी को जिलाया जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित होकर
आपको हृदय से लगा लिया।★
••••••••••••••••••••••••••••••
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई,तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥
12॥★
《अर्थ 》→ श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत
प्रशंसा कीऔर कहा की तुम मेरे भरत जैसे प्यारे
भाई हो।★
•••••••••••••••••••••••••••••••
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं,अस कहि श्री पति कंठ
लगावैं॥13॥★
《अर्थ 》→ श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से
लगा लिया की तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है।★
••••••••••••••••••••••••••••••
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद,सारद सहित अहीसा॥
14॥★
《अर्थ》→
श्री सनक,श्री सनातन,श्री सनन्दन,श्री सनत्कुमार
आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद
जी,सरस्वती जी,शेषनाग जी सब आपका गुण गान करते
है।★
••••••••••••••••••••••••••••••
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते,कबि कोबिद कहि सके
कहाँ ते॥15॥★
《अर्थ 》→ यमराज,कुबेर आदि सब दिशाओं के
रक्षक,कवि विद्वान,पंडित या कोई भी आपके यश
का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।★
•••••••••••••••••••••••••••••••
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा,राम मिलाय राजपद
दीन्हा॥16॥★
《अर्थ 》→ आपनें सुग्रीव जी को श्रीराम से
मिलाकर उपकार किया ,जिसके कारण वे राजा बने।★
•••••••••••••••••••••••••••••••
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना,लंकेस्वर भए सब जग
जाना॥17॥★
《अर्थ 》→ आपके उपदेश का विभिषण जी ने पालन
किया जिससे वे लंका के राजा बने,इसको सब संसार
जानता है।★
••••••••••••••••••••••••••••••
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू,लील्यो ताहि मधुर फल
जानू॥18॥★
《अर्थ 》→ जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है की उस पर
पहुँचने के लिए हजार युग लगे।दो हजार योजन
की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझकर
निगल लिया।★
•••••••••••••••••••••••••••••••
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि,जलधि लांघि गये अचरज
नाहीं॥19॥★
《अर्थ 》→ आपने श्री रामचन्द्र
जी की अंगूठी मुँह
मे रखकर समुद्र को लांघ
लिया,इसमें कोई आश्चर्य नही है।★
••••••••••••••••••••••••••••••
दुर्गम काज जगत के जेते,सुगम अनुग्रह तुम्हरे
तेते॥20॥★
《अर्थ 》→ संसार मे जितने भी कठिन से कठिन काम
हो,वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है।★
••••••••••••••••••••••••••••••
राम दुआरे तुम रखवारे,होत न आज्ञा बिनु पैसा रे ॥
21॥★
《अर्थ 》→ श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप
रखवाले है,जिसमे आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश
नही मिलता अर्थात आपकी प्रसन्नता के बिना राम
कृपा दुर्लभ है।★
••••••••••••••••••••••••••••••
सब सुख लहै तुम्हारी सरना,तुम रक्षक काहू
को डरना ॥22॥★
《अर्थ 》→ जो भी आपकी शरण मे आते है,उस
सभी को आन्नद प्राप्त होता है,और जब आप रक्षक
है,तो फिर किसी का डर नही रहता।★
••••••••••••••••••••••••••••••
आपन तेज सम्हारो आपै,तीनों लोक हाँक ते काँपै॥
23॥★
《अर्थ 》→ आपके सिवाय आपके वेग को कोई नही रोक
सकता,आपकी गर्जना से तीनों लोक काँप जाते है।★
••••••••••••••••••••••••••••••
भूत पिशाच निकट नहिं आवै,महावीर जब नाम सुनावै॥24॥

《अर्थ 》→ जहाँ महावीर हनुमान जी का नाम
सुनाया जाता है,वहाँ भूत,पिशाच पास भी नही फटक
सकते।★
••••••••••••••••••••••••••••••
नासै रोग हरै सब पीरा,जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥25॥★
《अर्थ 》→ वीर हनुमान जी!आपका निरंतर जप करने से
सब रोग चले जाते है,और सब पीड़ा मिट जाती है।
•••••••••••••••••••••••••••••••
संकट तें हनुमान छुड़ावै,मन क्रम बचन ध्यान
जो लावै॥26॥★
《अर्थ 》→ हे हनुमान जी! विचार करने मे,कर्म करने
मे और बोलने मे,जिनका ध्यान आपमे रहता है,उनको सब
संकटो से आप छुड़ाते है।★
••••••••••••••••••••••••••••••
सब पर राम तपस्वी राजा,तिनके काज सकल तुम साजा॥
27॥★
《अर्थ 》→ तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे
श्रेष्ठ है,उनके सब कार्यो को आपने सहज मे कर
दिया।★
•••••••••••••••••••••••••••••••
और मनोरथ जो कोइ लावै,सोई अमित जीवन फल पावै॥28॥

《अर्थ 》→ जिसपर आपकी कृपा हो,वह कोई
भी अभिलाषा करे तो उसे ऐसा फल मिलता है
जिसकी जीवन मे कोई सीमा नही होती।★
••••••••••••••••••••••••••••••
चारों जुग परताप तुम्हारा,है परसिद्ध जगत उजियारा॥
29॥★
《अर्थ 》→ चारो युगों सतयुग,त्रेता,द्वापर
तथा कलियुग मे आपका यश फैला हुआ है,जगत मे
आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।★
••••••••••••••••••••••••••••••
साधु सन्त के तुम रखवारे,असुर निकंदन राम दुलारे॥
30॥★
《अर्थ 》→ हे श्री राम के दुलारे ! आप
सज्जनों की रक्षा करते है और दुष्टों का नाश करते
है।★
•••••••••••••••••••••••••••••••
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ,अस बर दीन जानकी माता॥
३१॥★
《अर्थ 》→ आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान
मिला हुआ है,जिससे आप
किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते
है।★
1.) अणिमा → जिससे साधक किसी को दिखाई
नही पड़ता और कठिन से कठिन पदार्थ मे प्रवेश कर
जाता है।★
2.) महिमा → जिसमे योगी अपने को बहुत
बड़ा बना देता है।★
3.) गरिमा → जिससे साधक अपने को चाहे
जितना भारी बना लेता है।★
4.) लघिमा → जिससे जितना चाहे उतना हल्का बन
जाता है।★
5.) प्राप्ति → जिससे इच्छित पदार्थ
की प्राप्ति होती है।★
6.) प्राकाम्य → जिससे इच्छा करने पर वह पृथ्वी मे
समा सकता है,आकाश मे उड़ सकता है।★
7.) ईशित्व → जिससे सब पर शासन का सामर्थय
हो जाता है।★
8.)वशित्व → जिससे दूसरो को वश मे किया जाता है।★
•••••••••••••••••••••••••••••••
राम रसायन तुम्हरे पासा,सदा रहो रघुपति के दासा॥32॥

《अर्थ 》→ आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण मे
रहते है,जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य
रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।★
•••••••••••••••••••••••••••••••
तुम्हरे भजन राम को पावै,जनम जनम के दुख बिसरावै॥
33॥★
《अर्थ 》→ आपका भजन करने सेर श्री राम
जी प्राप्त होते है,और जन्म जन्मांतर के दुःख दूर
होते है।★
••••••••••••••••••••••••••••••
अन्त काल रघुबर पुर जाई,जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥
34॥★
《अर्थ 》→ अंत समय श्री रघुनाथ जी के धाम
को जाते है और यदि फिर भी जन्म लेंगे
तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलायेंगे।★
•••••••••••••••••••••••••••••••
और देवता चित न धरई,हनुमत सेई सर्व सुख करई॥35॥★
《अर्थ 》→ हे हनुमान जी!आपकी सेवा करने से सब
प्रकार के सुख मिलते है,फिर अन्य
किसी देवता की आवश्यकता नही रहती।★
•••••••••••••••••••••••••••••••
संकट कटै मिटै सब पीरा,जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥36॥

《अर्थ 》→ हे वीर हनुमान जी! जो आपका सुमिरन
करता रहता है,उसके सब संकट कट जाते है और सब
पीड़ा मिट जाती है।★
••••••••••••••••••••••••••••••
जय जय जय हनुमान गोसाईं,कृपा करहु गुरु देव
की नाई॥37॥★
《अर्थ 》→ हे स्वामी हनुमान जी!आपकी जय हो,जय
हो,जय हो!आप मुझपर कृपालु श्री गुरु जी के समान
कृपा कीजिए।★
••••••••••••••••••••••••••••••
जो सत बार पाठ कर कोई,छुटहि बँदि महा सुख होई॥38॥★
《अर्थ 》→ जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार
पाठ करेगा वह सब बन्धनों से छुट जायेगा और उसे
परमानन्द मिलेगा।★
•••••••••••••••••••••••••••••••
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा,होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
39॥★
《अर्थ 》→ भगवान शंकर ने यह हनुमान
चालीसा लिखवाया,इसलिए वे साक्षी है,कि जो इसे
पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।★
•••••••••••••••••••••••••••••••
तुलसीदास सदा हरि चेरा,कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥40॥

《अर्थ 》→ हे नाथ हनुमान जी! तुलसीदास
सदा ही श्री राम का दास है।इसलिए आप उसके हृदय मे
निवास कीजिए।★
•••••••••••••••••••••••••••••••
पवन तनय संकट हरन,मंगल मूरति रुप।
राम लखन सीता सहित,हृदय बसहु सुरभुप॥★
《अर्थ 》→ हे संकट मोचन पवन कुमार!आप आनन्द
मंगलो के स्वरुप है।हे देवराज! आप
श्री राम,सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय मे
निवास कीजिए।★

🌺🌹🌻  🍃🍂💐

Mahabharata War 10 Secret (महाभारत युद्ध के 10 गुप्त रहस्य).....

Mahabharata War 10 Secret (महाभारत युद्ध के 10 गुप्त रहस्य).....

महाभारत को ‘पंचम वेद’ कहा गया है। यह ग्रंथ हमारे देश के मन-प्राण में बसा हुआ है। यह भारत की राष्ट्रीय गाथा है। इस ग्रंथ में तत्कालीन भारत (आर्यावर्त) का समग्र इतिहास वर्णित है। अपने आदर्श स्त्री-पुरुषों के चरित्रों से हमारे देश के जन-जीवन को यह प्रभावित करता रहा है। इसमें सैकड़ों पात्रों, स्थानों, घटनाओं तथा विचित्रताओं व विडंबनाओं का वर्णन है। प्रत्येक हिंदू के घर में महाभारत होना चाहिए।
महाभारत में कई घटना, संबंध और ज्ञान-विज्ञान के रहस्य छिपे हुए हैं। महाभारत का हर पात्र जीवंत है, चाहे वह कौरव, पांडव, कर्ण और कृष्ण हो या धृष्टद्युम्न, शल्य, शिखंडी और कृपाचार्य हो। महाभारत सिर्फ योद्धाओं की गाथाओं तक सीमित नहीं है। महाभारत से जुड़े शाप, वचन और आशीर्वाद में भी रहस्य छिपे हैं।
दरअसल, महाभारत की कहानी युद्ध के बाद समाप्त नहीं होती है। असल में महाभारत की कहानी तो युद्ध के बाद शुरू होती है। आज तक अश्वत्थामा क्यों जीवित है? क्यों यदुवंशियों के नाश का शाप दिया गया था और क्यों धर्म चल पड़ा था कलियुग की राह पर। महाभारत का रहस्य अभी सुलझना बाकी है। महाभारत युद्ध और उससे जुड़े दस रहस्यों का हमने पता लगाया और जिसे आप शायद ही जानते हों...

1] 18 का रहस्य : कहते हैं कि महाभारत युद्ध में 18 संख्या का बहुत महत्व है। महाभारत की पुस्तक में 18 अध्याय हैं। कृष्ण ने कुल 18 दिन तक अर्जुन को ज्ञान दिया। 18 दिन तक ही युद्ध चला। गीता में भी 18 अध्याय हैं। कौरवों और पांडवों की सेना भी कुल 18 अक्षोहिनी सेना थी जिनमें कौरवों की 11 और पांडवों की 7 अक्षोहिनी सेना थी। इस युद्ध के प्रमुख सूत्रधार भी 18 थे। इस युद्ध में कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे।
सवाल यह उठता है कि सब कुछ 18 की संख्या में ही क्यों होता गया? क्या यह संयोग है या इसमें कोई रहस्य छिपा है?

2] क्या आज भी जीवित हैं अश्वत्थामा : विज्ञान यह नहीं मानता कि कोई व्यक्ति हजारों वर्षों तक जीवित रह सकता है। ज्यादा से ज्यादा 150 वर्ष तक जीवित रहा जा सकता है वह भी इस शर्त पर कि आबोहवा और खानपान अच्छा हो तो। तब ऐसे में कैसे माना जा सकता है कि अश्वत्थामा जीवित होंगे।
क्यों जीवित हैं अश्वत्थामा : महाभारत के युद्ध में अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया था जिसके चलते लाखों लोग मारे गए थे। अश्वत्थामा के इस कृत्य से कृष्ण क्रोधित हो गए थे और उन्होंने अश्वत्थामा को शाप दिया था कि 'तू इतने वधों का पाप ढोता हुआ तीन हजार वर्ष तक निर्जन स्थानों में भटकेगा। तेरे शरीर से सदैव रक्त की दुर्गंध नि:सृत होती रहेगी। तू अनेक रोगों से पीड़ित रहेगा।' व्यास ने श्रीकृष्ण के वचनों का अनुमोदन किया।
कहते हैं कि अश्वत्थामा इस शाप के बाद रेगिस्तानी इलाके में चला गया था और वहां रहने लगा था। कुछ लोग मानते हैं कि वह अरब चला गया था। उत्तरप्रदेश में प्रचलित मान्यता अनुसार अरब में उसने कृष्ण और पांडवों के धर्म को नष्ट करने की प्रतिज्ञा ली थी।

3] महाभारत काल में विमान और परमाणु अस्त्र थे? : मोहन जोदड़ो में कुछ ऐसे कंकाल मिले थे जिसमें रेडिएशन का असर था। महाभारत में सौप्तिक पर्व के अध्याय 13 से 15 तक ब्रह्मास्त्र के परिणाम दिए गए हैं। हिंदू इतिहास के जानकारों के मुताबिक 3 नवंबर 5561 ईसापूर्व छोड़ा हुआ ब्रह्मास्त्र परमाणु बम ही था?
महाभारत में इसका वर्णन मिलता है- ''तदस्त्रं प्रजज्वाल महाज्वालं तेजोमंडल संवृतम।।'' ''सशब्द्म्भवम व्योम ज्वालामालाकुलं भृशम। चचाल च मही कृत्स्ना सपर्वतवनद्रुमा।।'' 8 ।। 10 ।।14।।
अर्थात ब्रह्मास्त्र छोड़े जाने के बाद भयंकर वायु जोरदार तमाचे मारने लगी। सहस्रावधि उल्का आकाश से गिरने लगे। भूतमातरा को भयंकर महाभय उत्पन्न हो गया। आकाश में बड़ा शब्द हुआ। आकाश जलाने लगा पर्वत, अरण्य, वृक्षों के साथ पृथ्वी हिल गई।
अब सवाल यह उठता है कि क्या सचमुच ही हमारी आज की टेक्नोलॉजी से कहीं ज्यादा उन्नत थी महाभारतकालीन टेक्नोलॉजी?

4] कौरवों का जन्म एक रहस्य : कौरवों को कौन नहीं जानता। धृतराष्ट्र और गांधारी के 99 पुत्र और एक पुत्री थीं जिन्हें कौरव कहा जाता था। कुरु वंश के होने के कारण ये कौरव कहलाए। सभी कौरवों में दुर्योधन सबसे बड़ा था। गांधारी जब गर्भवती थी, तब धृतराष्ट्र ने एक दासी के साथ सहवास किया था जिसके चलते युयुत्सु नामक पुत्र का जन्म हुआ। इस तरह कौरव सौ हो गए।
गांधारी ने वेदव्यास से पुत्रवती होने का वरदान प्राप्त कर किया। गर्भ धारण कर लेने के पश्चात भी दो वर्ष व्यतीत हो गए, किंतु गांधारी के कोई भी संतान उत्पन्न नहीं हुई। इस पर क्रोधवश गांधारी ने अपने पेट पर जोर से मुक्के का प्रहार किया जिससे उसका गर्भ गिर गया।
वेदव्यास ने इस घटना को तत्काल ही जान लिया। वे गांधारी के पास आकर बोले- 'गांधारी! तूने बहुत गलत किया। मेरा दिया हुआ वर कभी मिथ्या नहीं जाता। अब तुम शीघ्र ही सौ कुंड तैयार करवाओ और उनमें घृत (घी) भरवा दो।'
वेदव्यास ने गांधारी के गर्भ से निकले मांस पिण्ड पर अभिमंत्रित जल छिड़का जिससे उस पिण्ड के अंगूठे के पोरुये के बराबर सौ टुकड़े हो गए। वेदव्यास ने उन टुकड़ों को गांधारी के बनवाए हुए सौ कुंडों में रखवा दिया और उन कुंडों को दो वर्ष पश्चात खोलने का आदेश देकर अपने आश्रम चले गए। दो वर्ष बाद सबसे पहले कुंड से दुर्योधन की उत्पत्ति हुई। फिर उन कुंडों से धृतराष्ट्र के शेष 99 पुत्र एवं दु:शला नामक एक कन्या का जन्म हुआ।

5] महान योद्धा बर्बरीक : बर्बरीक महान पांडव भीम के पुत्र घटोत्कच और नागकन्या अहिलवती के पुत्र थे। कहीं-कहीं पर मुर दैत्य की पुत्री 'कामकंटकटा' के उदर से भी इनके जन्म होने की बात कही गई है। महाभारत का युद्ध जब तय हो गया तो बर्बरीक ने भी युद्ध में सम्मिलित होने की इच्छा व्यक्त की और मां को हारे हुए पक्ष का साथ देने का वचन दिया। बर्बरीक अपने नीले रंग के घोड़े पर सवार होकर तीन बाण और धनुष के साथ कुरुक्षेत्र की रणभूमि की ओर अग्रसर हुए।
बर्बरीक के लिए तीन बाण ही काफी थे जिसके बल पर वे कौरव और पांडवों की पूरी सेना को समाप्त कर सकते थे। यह जानकर भगवान कृष्ण ने ब्राह्मण के वेश में उनके सामने उपस्थित होकर उनसे दान में छलपूर्वक उनका शीश मांग लिया।
बर्बरीक ने कृष्ण से प्रार्थना की कि वे अंत तक युद्ध देखना चाहते हैं, तब कृष्ण ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली। फाल्गुन मास की द्वादशी को उन्होंने अपने शीश का दान दिया। भगवान ने उस शीश को अमृत से सींचकर सबसे ऊंची जगह पर रख दिया ताकि वे महाभारत युद्ध देख सकें। उनका सिर युद्धभूमि के समीप ही एक पहाड़ी पर रख दिया गया, जहां से बर्बरीक संपूर्ण युद्ध का जायजा ले सकते थे।

6] राशियां नहीं थीं ज्योतिष का आधार : महाभारत के दौर में राशियां नहीं हुआ करती थीं। ज्योतिष 27 नक्षत्रों पर आधारित था, न कि 12 राशियों पर। नक्षत्रों में पहले स्थान पर रोहिणी था, न कि अश्विनी। जैसे-जैसे समय गुजरा, विभिन्न सभ्यताओं ने ज्योतिष में प्रयोग किए और चंद्रमा और सूर्य के आधार पर राशियां बनाईं और लोगों का भविष्य बताना शुरू किया, जबकि वेद और महाभारत में इस तरह की विद्या का कोई उल्लेख नहीं मिलता जिससे कि यह पता चले कि ग्रह नक्षत्र व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करते हैं।

7] विदेशी भी शामिल हुए थे लड़ाई में : महाभारत के युद्ध में विदेशी भी शामिल हुए थे। एक ओर जहां यवन देश की सेना ने युद्ध में भाग लिया था वहीं दूसरी ओर ग्रीक, रोमन, अमेरिका, मेसिडोनियन आदि योद्धाओं के लड़ाई में शामिल होने का प्रसंग आता है। इस आधार पर यह माना जाता है कि महाभारत विश्व का प्रथम विश्व युद्ध था।

8] 28वें वेदव्यास ने लिखी महाभारत : ज्यादातर लोग यह जानते हैं कि महाभारत को वेदव्यास ने लिखा है लेकिन यह अधूरा सच है। वेदव्यास कोई नाम नहीं, बल्कि एक उपाधि थी, जो वेदों का ज्ञान रखने वाले लोगों को दी जाती थी। कृष्णद्वैपायन से पहले 27 वेदव्यास हो चुके थे, जबकि वे खुद 28वें वेदव्यास थे। उनका नाम कृष्णद्वैपायन इसलिए रखा गया, क्योंकि उनका रंग सांवला (कृष्ण) था और वे एक द्वीप पर जन्मे थे।

9] दुशासन के पुत्र ने मारा अभिमन्यु को : लोग यह जानते हैं कि अभिमन्यु की हत्या चक्रव्यूह में सात महारथियों द्वारा की गई थी। इन सातों महारथियों ने मिलकर अभिमन्यु की हत्या कर दी थी लेकिन यह सच नहीं है। महाभारत के मुताबिक, अभिमन्यु ने बहादुरी से लड़ते हुए चक्रव्यूह में मौजूद सात में से एक महारथी (दुर्योधन के बेटे) को मार गिराया था। इससे नाराज होकर दुशासन के बेटे ने अभिमन्यु की हत्या कर दी थी।

10] तीन चरणों में लिखी महाभारत : वेदव्यास की महाभारत को बेशक मौलिक माना जाता है, लेकिन वह तीन चरणों में लिखी गई। पहले चरण में 8,800 श्लोक, दूसरे चरण में 24 हजार और तीसरे चरण में एक लाख श्लोक लिखे गए। वेदव्यास की महाभारत के अलावा भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट, पुणे की संस्कृत महाभारत सबसे प्रामाणिक मानी जाती है।
अंग्रेजी में संपूर्ण महाभारत दो बार अनूदित की गई थी। पहला अनुवाद 1883-1896 के बीच किसारी मोहन गांगुली ने किया था और दूसरा मनमंथनाथ दत्त ने 1895 से 1905 के बीच। 100 साल बाद डॉ. देबरॉय तीसरी बार संपूर्ण महाभारत का अंग्रेजी में अनुवाद कर रहे हैं।

शनिवार, 9 मई 2015

यदि विचार स्वादिष्ट हो और सोच में सुगन्ध हो तो सम्पूर्ण व्यक्तित्व महक उठता है

🔫: लकीरें भी बड़ी अजीब होती हैं------
माथे पर खिंच जाएँ तो किस्मत बना देती हैं
जमीन पर खिंच जाएँ तो सरहदें बना देती हैं
खाल पर खिंच जाएँ तो खून ही निकाल देती हैं
और रिश्तों पर खिंच जाएँ तो दीवार बना देती हैं..
एक रूपया एक लाख नहीं होता ,
मगर फिर भी एक रूपया एक लाख से निकल जाये तो वो लाख भी लाख नहीं रहता
हम आपके लाखों दोस्तों में बस वही एक रूपया हैं … संभाल के रखनI , बाकी सब मोह माया है

. एक बार, गांव वालों ने सूखे के हालात देखकर तय किया कि वे
भगवान से बरसात के लिए प्रार्थना करेंगे, प्रार्थना वाले दिन
सभी लोग प्रार्थना के लिए इकट्ठे हुए, लेकिन एक
लड़का छाता लेकर आया.!!!
इसे कहते हैं : विश्वास

2. जब आप एक बच्चे को ऊपर की तरफ उछालते हो, तो वह
हंसता है। क्योंकि, वह जानता है कि आप उसे पकड़ लोगे:
इसे कहते हैं : यकीन

3. हर रात हम बिस्तर पर सोने जाते हैं, यह जाने बगैर कि हम
अगली सुबह जीवित रहेंगे भी कि नहीं और हर रात नई सुबह के
लिए अलार्म भी सैट करते हैं।
इसे कहते हैं उम्मीद:

4. हम आने वाले कल की बड़ी-बड़ी प्लानिंग करते हैं, बावजूद
इसके कि हमें भविष्य का जरा भी ज्ञान नहीं हैं।
इसे कहते हैं: कान्फिडेंस

5. अपने दोस्तों-यारों और परिचितों को उनकी शादी के बाद हम
बीवी के नाम पर रोते-बिलखते और परेशान होते हुए देखते हैं।
हम फिर भी शादी करते हैं....???????
इसे कहते हैं: ओवर कान्फिडेंस :
1) अगर लगातार दौडने से रुपए  मिलते तो,
    आज कुत्ता करोड़ पति  होता.....

2) मौत रिश्वत नही लेती लेकिन,
    रिश्वत मौत ले लेती है.....

3)काम मेँ ईश्वर का साथ मांगो लेकिन,
   ईश्वर काम कर दे ऐसा मत मांगो......

4) कडवा सत्य एक गरीब पेट के लिए सुबह
    जल्दी उठकर दोडता है और एक अमीर पेट
    कम करने के लिए सुबह जल्दी उठकर
    दौडता है..

5) 50 रुपे मेँ 1 लीटर कोल्डंड्रीक आती है..
    जिसमे स्वाद और पोषण जीरो.. और
    कमाता कौन? मल्टीनेशनल कम्पनिया और
    उसके सामने 50 रुपे मे 1 किलो फल आते
    है स्वाद भरपुर और पोषण लाजवाब और
    कमाता कौन? धुप मेँ,सर्दी मेँ,बरसात मेँ
    लारी लेकर घुमता अपना एक गरीब
    भारतवासी..

6) सबंध भले थोडा रखो लेकिन,एसा रखो
    कि शरम किसी की झेलनी ना पडे मौत
    के मुह से जिदंगी बरस पडे और मरने
    के बाद शमशान की राख भी रो पडे..

7) जब तालाब भरता है तब,मछलीया
    चीटीँयो को खाती है और जब तालाब
    खाली होता है तब चीटींया मछलियो
    को खाती है, मौका सबको मिलता है
    बस अपनी बारी का इन्तजार करो..

8)दुनिया मेँ दो तरह के लोग होते है.. एक
   जो दुसरो का नाम याद रखते है और
   दुसरा जिसका नाम दुसरे याद रखते है..

9) सुख मेँ सुखी हो तो दु:ख भोगना सिखो
    जिसको खबर नही दु:ख की तो सुख
    का क्या मजा.?

10) जीवन मेँ कुछ बडा मिल जाए तो छोटे
      को मत भुलना.. क्योकिँ जहा सुई काम
      हो वहा तलवार काम नही आती..

11) माँ-बाप का दिल दुखाकर आजतक
      दुनिया मेँ कोई सुखी नही हुआ..

12) भगवान का उपकार है कि आँसुऔ को रंग
      नही दिया वरना रात को भींगा तकिया सवेरे
      कुछ ना कुछ भैद खोल देता..

13) जो इंसान प्रेम मेँ निष्फल होता है
      वो जिदगी मे सफल होता है..

14) आज करे कल कर कल करे
      सो परसो ईतनी भी क्या जल्दी है जब
     जीना है बरसो..

15) दुनिया का सबसे कीमती प्रवाही
      कौनसा है? आँसु जिसमेँ 1%पानी
      और 99% भावनाए होती है..

16) दुनिया का सबसे अमीर आदमी भी
      माँ के. बिना गरीब है..

17) गुस्से मे आदमी कभी कभी व्यर्थ बाते
      करता है, तो कभी मन की बात भी
      बोल देता है..

18) भगवान खडा है तुझे सब कुछ देने के
      लिए लेकिन तु चम्मच लेकर खडा है
      पुरा सागर माँगने के लिए..

19) आप यह पोस्ट पढ रहे
      हो ईसका असतित्व
      आप के माँ बाप है...

🔫: यदि विचार स्वादिष्ट हो और सोच में सुगन्ध हो तो
सम्पूर्ण व्यक्तित्व महक उठता है अन्यथा स्वाद और
सुगन्ध तो जहर में भी होता है...!!!"