शनिवार, 22 जुलाई 2017

Bhakt ke vash me hai bhagvan एक परम भक्त की गाथा, जिन्हें मिलने खुद भगवान श्री कृष्ण बालक रूप में धरती पर आए कथा लम्बी जरूर है लेक़िन बढ़ी भावपूर्ण हैं जरूर पढ़िये भक्तों देखिए कैसी- कैसी लीला करते है हमारे लीलाधारी

एक परम भक्त की गाथा, जिन्हें मिलने खुद भगवान श्री कृष्ण बालक रूप में धरती पर आए कथा लम्बी जरूर है लेक़िन बढ़ी भावपूर्ण हैं जरूर पढ़िये भक्तों देखिए कैसी- कैसी लीला करते है हमारे लीलाधारी....

दक्षिण प्रदेश में कृष्णवीणा नदी के तट पर एक ग्राम में रामदास नामक भगवद्भक्त ब्राह्मण निवास करते थे। उन्हीं के पुत्र का नाम ‘बिल्वमंगल’ था।
 पिता ने यथासाध्य पुत्र को धर्मशास्त्रों की शिक्षा दी थी। बिल्वमंगल पिता की शिक्षा तथा उनके भक्तिभाव के प्रभाव से बाल्यकाल में ही अति शान्त, शिष्ट और श्रद्धावान हो गये थे।

बिल्वमंगल प्रसिद्ध दाक्षिणात्य ब्राह्मण तथा भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त व कवि थे। जिन्हें लीला शुक कहा जाता है।

मित्रों का कुसंग......
दैवयोग से पिता-माता के देहावसान होने पर जब से घर की सम्पत्ति पर बिल्वमंगल अधिकार हुआ, तभी से उनके साथ कुसंगी मित्र जुटने लगे। कुसंगी मित्रों की संगती से बिल्वमंगल के अन्त:करण में अनेक दोषों ने अपना घर कर लिया।

 एक दिन गांव में कहीं चिन्तामणि नाम की एक वेश्या का नाच था। शौकीनों के दल-के-दल नाच में जा रहे थे।
बिल्वमंगल भी अपने मित्रों के साथ वहां जा पहुंचे। वेश्या को देखते ही बिल्वमंगल का मन चंचल हो उठा। विवेकशून्य बुद्धि ने सहारा दिया। बिल्वमंगल डूबे और उन्होंने हाड़-मांस भरे चामके कल्पित रूप पर अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।

 तन, मन, धन, कुल, मान, मर्यादा और धर्म सब को उत्सर्ग कर दिया। ब्राह्मण कुमार का पूरा पतन हुआ। सोते-जागते, उठते-बैठते और खाते-पीते सब समय बिल्वमंगल के चिन्तन की वस्तु केवल एक ‘चिन्ता’ ही रह गयी।
पिता का श्राद्ध..........
बिल्वमंगल के पिता का श्राद्ध है, इसलिये आज वह नदी के उस पार चिन्तामणि के घर नहीं जा सकते। श्राद्ध की तैयारी हो रही है। विद्वान कुलपुरोहित बिल्वमंगल से श्राद्ध के मंत्रों की आवृत्ति करवा रहे हैं, परंतु उनका मन चिन्तामणि की चिन्ता में निमग्न है। उन्हें कुछ भी अच्छा नहीं लगता।
किसी प्रकार श्राद्ध समाप्त कर जैसे-तैसे ब्राह्मणों को झटपट भोजन करवाकर बिल्वमंगल चिन्तामणि के घर जाने को तैयार हुए।

संध्या हो चुकी थी। लोगों ने समझाया कि- “भाई आज तुम्हारे पिता का श्राद्ध है। वेश्या के घर नहीं जाना चाहिये।” परंतु कौन सुनता था। उनका हृदय तो कभी का धर्म-कर्म से शून्य हो चुका था।

चिन्तामणि वेश्या के प्रति प्रबल आसक्ति बिल्वमंगल दौड़कर नदी के किनारे पहुंचे। भगवान की माया अपार है। अकस्मात् प्रबल वेग से तूफ़ान आया और उसी के साथ मूसलाधार वर्षा होने लगी। आकाश में अन्धकार छा गया। बादलों की भयानक गर्जना और बिजली की कड़कड़ाहट से जीवमात्र भयभीत हो गये।

रात-दिन नदी में रहने वाले केवटों ने भी नावों को किनारे बांधकर वृक्षों का आश्रय लिया, परंतु बिल्वमंगल पर इन सबका कोई असर नहीं पड़ा।

उसने केवटों से उस पार ले चलने को कहा। बार-बार विनती की, उतराई का भी गहरा लालच दिया, परंतु मृत्यु का सामना करने को कौन तैयार होता। सबने इनकार कर दिया।

ज्यों-ही-ज्यों विलम्ब होता था, त्यों-ही-त्यों बिल्वमंगल की व्याकुलता बढ़ती जाती थी। अन्त में वह अधीर हो उठे और यह वेश्या चिन्तामणि के प्रति उनकी प्रवल आसक्ति ही थी कि वे कुछ भी आगा-पीछा न सोचकर तैरकर पार जाने के लिये सहसा नदी में कूद पड़े। भयानक दु:साहस का कर्म था,

संयोगवश नदी में एक मुर्दा बहा जा रहा था। बिल्वमंगल तो बेहोश थे। उन्होंने उसे काठ समझा और उसी के सहारे नदी के उस पार चले गये। उन्हें कपड़ों की सुध नहीं है।

 बिल्कुल दिगम्बर हो गये हैं। चारों ओर अन्धकार छाया हुआ है। बनैले पशु भयानक शब्द कर रहे है, कहीं मनुष्य की गन्ध भी नहीं आती, परंतु बिल्वमंगल उन्मत्त की भांति अपनी धुन में चले जा रहे हैं।
वेश्या वाणी का प्रभाव
कुछ ही दूर पर चिन्तामणि का घर था।

श्राद्ध के कारण आज बिल्वमंगल के आने की बात नहीं थी, अत: चिन्तामणि घर के सब दरवाज़ों को बन्द करके निश्चिन्त होकर सो चुकी थी। बिल्वमंगल ने बाहर से बहुत पुकारा, परंतु तूफ़ान के कारण अंदर कुछ भी सुनाई नहीं पड़ा।

बिल्वमंगल ने इधर-उधर ताकते हुए बादलों में कड़कती हुई बिजली के प्रकाश में दीवार पर एक रस्सा-सा लटकता देखा, तुरंत उन्होंने उस रस्से को पकड़ा और उसी के सहारे दीवार फांदकर वेश्या चिन्तामणि के घर में प्रवेश कर गये। चिन्तामणि को जगाया।

वह तो बिल्वमंगल को देखते ही स्तम्भित सी रह गयी। नंगा बदन, सारा शरीर पानी से भीगा हुआ, भयानक दुर्गन्ध आ रही है। उसने कहा- “तुम इस भयावनी रात में नदी पार करके बंद घर में कैसे आये?”

 बिल्वमंगल ने काठ पर चढ़कर नदी पार होने और रस्से की सहायता से दीवार पर चढ़ने की कथा सुनायी। वृष्टि थम चुकी थी।
चिन्तामणि दीपक हाथ में लेकर बाहर आयी। देखती है तो दीवार पर एक भयानक काला नाग लटक रहा है और नदी के तीर सड़ा हुआ मुर्दा पड़ा है।

बिल्वमंगल ने भी देखा ओर देखते ही कांप उठे। चिन्तामणि ने उनकी बड़ी भर्त्सना करके कहा-
“तू ब्राह्मण है?

अरे, आज तेरे पिता का श्राद्ध था, परंतु एक हाड़-मांस की पुतली पर तू इतना आसक्त हो गया कि अपने सारे धर्म-कर्म को तिलांजलि देकर इस डरावनी रात में मुर्दे और सांप की सहायता से यहां दौड़ा आया।

तू आज जिसे परम सुन्दर समझकर इस तरह पागल हो रहा है, उसका भी एक दिन तो वही परिणाम होने वाला है, जो तेरी आंखों के सामने इस सड़े मुर्दे का है। धिक्कार है तेरी इस नीच वृत्ति को।

अरे! यदि तू इसी प्रकार उस मनमोहन श्यामसुन्दर पर आसक्त होता, यदि उससे मिलने के लिये यों छटपटाकर दौड़ता, तो अब तक उसको पाकर तू अवश्य ही कृताथ हो चुका होता।”

वेश्या की वाणी ने बड़ा काम किया। बिल्वमंगल चुप होकर सोचने लगे। बाल्यकाल की स्मृति उनके मन में जाग उठी। पिताजी की भक्ति और उनकी धर्मप्राणता के दृश्य उनकी आंखों के सामने मूर्तिमान होकर नाचने लगे।

बिल्वमंगल की हृदयतंत्री नवीन सुरों से बज उठी। विवेक की अग्नि का प्रादुर्भाव हुआ, भगवत्-प्रेम का समुद्र उमड़ा और उनकी आंखों से अश्रुओं की धाराएँ बहने लगीं।

 बिल्वमंगल ने चिन्तामणि के चरण पकड़ लिये और कहा- “माता, तूने आज मुझको दिव्यदृष्टि देकर कृतार्थ कर दिया।”
मन-ही-मन चिन्तामणि को गुरु मानकर प्रणाम किया और उसी क्षण जगच्चिन्तामणि की चारु चिन्ता में निमग्न होकर उन्मत्त की भांति चिन्ता के घर से निकल पड़े
 बिल्वमंगल के जीवन-नाटक की यवनिका का परिवर्तन हो गया था।

नेत्र फोड़ना.......
मनमोहन श्यामसुन्दर की प्रेममयी मनोहर मूर्ति का दर्शन करने के लिये बिल्वमंगल पागल की तरह जगह-जगह भटकने लगे। कई दिनों के बाद एक दिन अकस्मात् उन्हें रास्ते में एक परम रूपवती युवती दीख पड़ी।

 पूर्व संस्कार अभी सर्वथा नहीं मिटे थे। युवती का सुन्दर रूप देखते ही नेत्र चंचल हो उठे और नेत्रों के साथ ही मन भी खिंचा।
बिल्वमंगल को फिर मोह हुआ। भगवान को भूलकर वह पुन: पतंग बनकर विषयाग्नि की ओर दौड़े। बिल्वमंगल युवती के पीछे-पीछे उसके मकान तक गये।

युवती अपने घर के अंदर चली गयी। बिल्वमंगल उदास होकर घर के दरवाज़े पर बैठ गये। घर के मालिक ने बाहर आकर देखा कि मलिन मुख अतिथि ब्राह्मण बाहर बैठा है। उसने कारण पूछा।
बिल्वमंगल ने कपट छोड़कर सारी घटना सुना दी और कहा कि- “मैं एक बार फिर उस युवती को प्राण भरकर देख लेना चाहता हूँ।

 तुम उसे यहां बुलवा दो।” युवती उसी गृहस्थ की धर्मपत्नी थी। गृहस्थ को पहले गुस्सा आया फिर   सोचा कि इसमें हानि ही क्या है बाह्मण देवता यदि उसके देखने से ही इसकी तृप्ति होती हो तो अच्छी बात है।

अतिथिवत्सल गृहस्थ अपनी पत्नी को बुलाने के लिये अंदर गया। इधर बिल्वमंगल के मन-समुद्र में तरह-तरह की तरंगों का तूफ़ान उठने लगा।

 जो एक बार-अनन्यचित्त से उन अशरण-शरण की शरण में चला जाता है, उसके ‘योगक्षेम’ का सारा भार वे अपने उपर उठा लेते हैं। आज बिल्वमंगल को संभालने की चिन्ता उन्हीं को पड़ी।

दीनवत्सल भगवान ने अज्ञानान्ध बिल्वमंगल को दिव्यचक्षु प्रदान किये। उसको अपनी अवस्था का यथार्थ ज्ञान हुआ। हृदय शोक से भर गया और न मालूम क्या सोचकर उन्होंने पास के बेल के पेड़ से दो कांटे तोड़ लिये। इतने में ही गृहस्थ की धर्मपत्नी वहां आ पहुंची।

बिल्वमंगल ने उसे फिर देखा और मन ही मन अपने को धिक्कार देकर कहने लगा कि- “अभागी आंखें, यदि तुम न होती तो आज मेरा इतना पतन क्यों होता।

इतना कहकर बिल्वमंगल ने, चाहे यह उनकी कमजोरी हो या और कुछ, उस समय उन चंचल नेत्रों को दण्ड देना ही उचित समझा और तत्काल उन दोनों कांटों को दोनों आंखों में भोंक लिया।

आंखों से रुधिर की अजस्त्र धारा बहने लगी। बिल्वमंगल हंसता और नाचता हुआ तुमुल हरिध्वनि से आकाश को गुंजाने लगा। गृहस्थ को और उसकी पत्नी को बड़ा दु:ख हुआ, परंतु वे बेचारे निरुपाय थे। बिल्वमंगल का बचा-खुचा चित्त-मल भी आज सारा नष्ट हो गया और अब तो वह उस अनाथ के नाथ को अतिशीघ्र पाने के लिये बड़े ही व्याकुल हो उठे।

हे गोविंद हे गोविंद गाकर उनको
पुकारने लगे गोविंद भी कहा रुकने वाले थे
परम प्रियतम श्रीकृष्ण के वियोग की दारुण व्यथा से उनकी फूटी आंखों ने चौबीस घंटे आंसुओं की झड़ी लगा दी। न भूख का पता है न प्यास का, न सोने का ज्ञान है और न जगने का।

 ‘कृष्ण-कृष्ण’ की पुकार से दिशाओं को गुंजाते हुए बिल्वमंगल जंगल-जंगल और गांव-गांव में घूमते रहे।
जिस दीनबन्धु के लिये जान-बूझकर आंखें फोड़ीं, जिस प्रियतम को पाने के लिये ऐश-आराम पर लात मारी, वह मिलने में इतना विलम्ब करे, यह भला किसी से कैसे सहन हो😭

पर जो सच्चे प्रेमी होते,😭 हैं, वे प्रेमास्पद के विरह में जीवनभर रोया करते हैं, सहस्त्रों आपत्तियों को सहन करते हैं, परंतु उस पर दोषोरोपण कदापि नहीं करते, उनको अपने प्रेमास्पद में कभी कोई दोष दीखता ही नही।

ऐसे प्रेमी के लिये प्रेमास्पद को भी कभी चैन नहीं पड़ता। उसे दौड़कर आना ही पड़ता है। आज अन्धा बिल्वमंगल श्रीकृष्ण–प्रेम में मतवाला होकर जहां-तहां भटक रहा है। कहीं गिर पड़ता है, कहीं टकरा जाता है, अन्न-जल का तो केाई ठिकाना ही नहीं। ऐसी दशा में प्रेममय श्रीकृष्ण कैसे निश्चिन्त रह सकते हैं।

एक छोटे-से गोप-बालक के वेष में भगवान बिल्वमंगल के पास आकर अपनी मुनि-मनमोहिनी मधुर वाणी से बोले- “सूरदास जी ! आपको बड़ी भूख लगी होगी, मैं कुछ मिठाई लाया हूँ, जल भी लाया हूँ, आप इसे ग्रहण कीजिये।”

 बिल्वमंगल के प्राण तो बालक के उस मधुर स्वर से ही मोहे जा चुके थे। उनके हाथ का दुर्लभ प्रसाद पाकर तो उनका हृदय हर्ष के हिलोरों से उछल उठा।

बिल्वमंगल ने बालक से पूछा- “भैया! तुम्हारा घर कहां है, तुम्हारा नाम क्या है?

तुम क्या किया करते हो?” बालक ने कहा- “मेरा घर पास ही है, मेरा कोई खास काम नही, जो मुझे जिस नाम से पुकारता है,
मैं उसी से बोलता हूँ, गौऍं चराया करता हूँ।”
विनिन्दित वाणी सुनकर विमुग्ध हो गये। बालक जाते-जाते कह गया कि- “मैं रोज आकर आपको भोजन करवा जाया करूँगा।”

 बिल्वमंगल ने कहा- “बड़ी अच्छी बात है, तुम आया करो।” बालक चला गया और बिल्वमंगल का मन भी साथ लेता गया।

‘मनचोर’ 😭तो उसका नाम ही ठहरा। अनेक प्रकार की सामग्रियों से भोग लगाकर भी लोग जिनकी कृपा के लिये तरसा करते है, वही कृपासिन्धु रोज बिल्वमंगल को अपने करकमलों से भोजन करवाने आते हैं।
 धन्य है। भक्त के लिये भगवान क्या-क्या नहीं करते😭
बिल्वमंगल अब तक तो यह नहीं समझे कि मैंने जिसके लिये फकीरी का बाना लिया और आंखों में कांटे चुभाये, वह बालक वही है,

 परंतु उस गोप-बालक ने उनके हृदय पर इतना अधिकार अवश्य जमा लिया कि उनको दूसरी बात का सुनना भी असह्य हो उठा।

एक दिन बिल्वमंगल मन ही मन विचार करने लगे कि- “सारी आफतें छोड़कर यहां तक आया, यहां यह नयी आफत आ गयी। स्त्री के मोह से छूटा तो इस बालक ने मोह में घेर लिया।

” यों सोच ही रहे थे कि वह रसिक बालक उनके पास आ बैठा और अपना दीवाना बना देने वाली वाणी से बोला- “बाबा जी! चुपचाप क्या सोचते हो।वृन्दावन चलोगे?”

 मेरा वृन्दावन प्यारो वृन्दावन..😢
वृन्दावन का नाम सुनते ही बिल्वमंगल का हृदय हरा हो गया, परंतु अपनी असमर्थता प्रकट करते हुए बोले- “भैया!

 मैं अन्धा वृन्दावन कैसे जाऊँ?” बालक ने कहा- “यह लो मेरी लाठी, मैं इसे पकड़े-पकड़े तुम्हारे साथ चलता हूँ।”

 बिल्वमंगल का मुख खिल उठा। लाठी पकड़कर भगवानभक्त के आगे-आगे चलने लगे। धन्य दयालुता! भक्त की लाठी पकड़कर मार्ग दिखाते हैं। थोड़ी-सी दूर जाकर बालक ने कहा- “लो! वृन्दावन आ गया। अब मैं जाता हूँ।”

बिल्वमंगल ने बालक का हाथ पकड़ लिया। हाथ का स्पर्श होते ही सारे शरीर में बिजली-सी दौड़ गयी। सात्विक प्रकाश से सारे द्वार प्रकाशित हो उठे।

बिल्वमंगल ने दिव्य दृष्टि पायी और देखा कि बालक के रूप में साक्षात मेरे श्यामसुन्दर ही हैं। बिल्वमंगल का शरीर रोमांचित हो गया।
आंखों से प्रेमाश्रुओं की अनवरत धारा बहने लगी।

 भगवान का हाथ और भी जोर से पकड़ लिया और कहा- “अब पहचान लिया है, बहुत दिनों के बाद पकड़ सका हूँ।
प्रभु! अब नहीं छोड़ने का।” भगवान ने कहा- “छोड़ते हो कि नहीं?”
बिल्वमंगल ने कहा- “नहीं, कभी नहीं, त्रिकाल में भी नहीं।”

भगवान ने जोर से झटका देकर हाथ छुड़ा लिया। भला, जिनके बल से बलान्वित होकर माया ने सारे जगत को पददलित कर रखा है, उसके बल के सामने बेचारा अन्धा क्या कर सकता था।

परंतु उसने एक ऐसी रज्जु से उनको बांध लिया था कि जिससे छूटकर जाना उनके लिये बड़ी टेढ़ी खीर थी। हाथ छुड़ाते ही बिल्वमंगल ने कहा- “जाते हो, पर स्मरण रखो-
‘हस्तमुत्क्षिप्य यातोऽसि बलात्कृष्ण किमद्भुतम्।
हृदयाद् यदि निर्यासि पौरुषं गणयामि ते।।
हाथ छुड़ाये जात हौ, निबल जानि कै मोहि।
हिरदै तें जब जाहुगे, सबल बदौंगो तोहि।।’
भगवान नहीं जा सके। जाते भी कैसे। प्रतिज्ञा कर चुके हैं-
“ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।”( गीता ४-१२)
अर्थात “जो मुझको जैसे भजते हैं, मैं भी उनको वैसे ही भजता हूँ।”
भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन
भगवान ने बिल्वमंगल की आंखों पर अपना कोमल करकमल फिराया।

उसकी आंखे खुल गयीं। नेत्रों से प्रत्यक्ष भगवान को देखकर, उनकी भुवनमोहिनी अनूप रूपराशि के दर्शन पाकर बिल्वमंगल अपने-आपको संभाल नहीं सका।

 वह चरणों में गिर पड़ा और प्रेमाश्रुओं से प्रभु के पावन चरण कमलों को धोने लगा। भगवान ने उठाकर उसे अपनी छाती से लगा लिया।
भक्त और भगवान के मधुर मिलन से समस्त जगत में मधुरता छा गयी। देवता पुष्पवृष्टि करने लगे। संत-भक्तों के दल नाचने लगे।
 हरिनाम की पवित्र ध्वनि से आकाश परिपूर्ण हो गया। भक्त और भगवान दोनों धन्य हुए। वेश्या चिन्तामणि, गृहस्थ और उनकी पत्नी भी वहां आ गयीं।



 भक्त के प्रभाव से भगवान ने उन सबको अपना दिव्य दर्शन देकर कृतार्थ किया।
 हे ईश्वर! आपकी जय हो। आप सर्वसौंदर्यपूर्ण हैं।’

मंगलवार, 11 जुलाई 2017

पत्थर बाजो को मासूम कहने वालो को और पत्थर बाजो को जबतक कुत्ते कि मौत नहीं मारोगे तबतक ऐसे हमले होते रहेंगे

पत्थर बाजो को मासूम कहने वाले काहा गये ये कुत्ते अमरनाथ यात्री के बस पर पत्थर फेकते हैं पत्थर बाजो को मासूम कहने वालो को और पत्थर बाजो को जबतक कुत्ते कि मौत नहीं मारोगे तबतक ऐसे हमले होते रहेंगे
कल news channel पे दिखा रहे थे किसी पत्थर बाज को 100000 लाख इनाम दिया जा राहा हैं और रात में हमला हो गया आतंकवादी ये जानते हैं कि वहाँ के रहने वाले हमारी मदद करेंगे पहले आतंकवादी के मदद करने वाले कुत्तों को मारो बहुत कर लिये निंदा अब घर में घुस कर मारो पत्थर बाजो को
राजनाथ जी कश्मीरीओ को सलाम ठोकने से हमले नही रुकेगें पत्थर बाजो को कुत्ते की मौत मारने से रुकेगें आप सलाम ठोकते रहे वो हमे हमारे सेना को मारते रहे

अगर आप लोग मेरी बात से सहमत हैं तो comment aur share करे pls

सोमवार, 10 जुलाई 2017

RAM NAM KI MAHIMA केवल एक बार राम कह लो तुम्हे सहस्र नाम, भगवान के एक हज़ार नाम लेने का फल मिल जाएगा एक राम नाम हज़ार दिव्य नामों के समान है

महादेव जी को एक बार बिना कारण के किसी को प्रणाम करते देखकर पार्वती जी ने पूछा आप किसको प्रणाम करते रहते हैं?

शिव जी ने अपनी धर्मपत्नी पार्वती जी से कहते हैं की, हे देवी! जो व्यक्ति एक बार *राम* कहता है उसे मैं तीन बार प्रणाम करता हूँ।

***पार्वती जी ने एक बार शिव जी से पूछा आप श्मशान में क्यूँ जाते हैं और ये चिता की भस्म शरीर पे क्यूँ लगते हैं?

उसी समय शिवजी पार्वती जी को श्मशान ले गए। वहाँ एक शव अंतिम संस्कार के लिए लाया गया। लोग *राम नाम सत्य है* कहते हुए शव को ला रहे थे।

शिव जी ने कहा की देखो पार्वती इस श्मशान की ओर जब लोग आते हैं तो *राम* नाम का स्मरण करते हुए आते हैं। और इस शव के निमित्त से कई लोगों के मुख से मेरा अतिप्रिय दिव्य *राम* नाम निकलता है उसी को सुनने मैं श्मशान में आता हूँ, और इतने लोगो के मुख से *राम* नाम का जप करवाने में निमित्त बनने वाले इस शव का मैं सम्मान करता हूँ, प्रणाम करता हूँ, और अग्नि में जलने के बाद उसकी भस्म को अपने शरीर पर लगा लेता हूँ। *राम* नाम बुलवाने वाले के प्रति मुझे इतना प्रेम है।

***एक बार शिवजी कैलाश पर पहुंचे और पार्वती जी से बहुजन माँगा। पार्वती जी विष्णु सहस्रनाम का पाठ कर रहीं थी। पार्वती जी ने कहा अभी पाठ पूरा नही हुआ, कृपया थोड़ी देर प्रतीक्षा कीजिए। शिव जी ने कहा की इसमें तो समय और श्रम दोनों लगेंगे। संत लोग जिस तरह से सहस्र नाम को छोटा कर लेते हैं और नित्य जपते हैं वैसा उपाय कर लो।

पार्वती जी ने पूछा वो उपाय कैसे करते हैं? मैं सुन्ना चाहती हूँ।
शिव जी ने बताया, केवल एक बार *राम* कह लो तुम्हे सहस्र नाम, भगवान के एक हज़ार नाम लेने का फल मिल जाएगा। एक *राम* नाम हज़ार दिव्य नामों के समान है। पार्वती जी ने वैसा ही किया।

पार्वत्युवाच -
*केनोपायेन लघुना विष्णोर्नाम सहस्रकं?*
*पठ्यते पण्डितैर्नित्यम् श्रोतुमिच्छाम्यहं प्रभो।।*

ईश्वर उवाच-
*श्री राम राम रामेति, रमे रामे मनोरमे।*
*सहस्र नाम तत्तुल्यम राम नाम वरानने।।*

यह *राम* नाम सभी आपदाओं को हरने वाला, सभी सम्पदाओं को देने वाला दाता है, सारे संसार को विश्राम/शान्ति प्रदान करने वाला है। इसीलिए मैं इसे बार बार प्रणाम करता हूँ।

*आपदामपहर्तारम् दातारम् सर्वसंपदाम्।*
*लोकाभिरामम् श्रीरामम् भूयो भूयो नमयहम्।।*

 भव सागर के सभी समस्याओं और दुःख के बीजों को भूंज के रख देनेवाला/समूल नष्ट कर देने वाला, सुख संपत्तियों को अर्जित करने वाला, यम दूतों को खदेड़ने/भगाने वाला केवल *राम* नाम का गर्जन(जप) है।

*भर्जनम् भव बीजानाम्, अर्जनम् सुख सम्पदाम्।*
*तर्जनम् यम दूतानाम्, राम रामेति गर्जनम्।*

प्रयास पूर्वक स्वयम् भी *राम* नाम जपते रहना चाहिए और दूसरों को भी प्रेरित करके *राम* नाम जपवाना चाहिए। इस से अपना और दोसरों का तुरन्त कल्याण हो जाता है। यही सबसे सुलभ और अचूक उपाय है।  इसीलिए हमारे देश में प्रणाम *राम राम* कहकर किया जाता है।


             ।।जय श्रीराम।।

मंगलवार, 6 जून 2017

Mai zee news ka support karta hu jisne desh ko jaruk kiya aur pak India cricket ko apne channel pe nahi dikhaya

Mai zee news ka support karta hu jisne desh ko jaruk kiya aur pak India cricket ko apne channel pe nahi dikhaya

बॉलीवुड वालों की पाकिस्तानी कलाकारों से कोई दुश्मनी नहीं,
बीसीसीआई की पाकिस्तानी खिलाड़ियों से कोई दुश्मनी नही,
क्योंकि सर काटने वाले मुल्क के साथ क्रिकेट मैच खेला जा रहा है ,तो क्या सारी दुश्मनी भारतीय सेना की ही है ?
दुश्मन राष्ट्र का हर नागरिक, हिंदुस्तान का दुश्मन है, चाहे वह खिलाड़ी हो, चाहे वह कलाकार हो ,चाहे वह पत्रकार हो ,चाहे वह डॉक्टर हो, कोई भी हो, राष्ट्रवादिता का जिम्मा केवल हमारी सेना पर ही नहीं है, यहां के खिलाड़ी, यहां के गायक, यहां के बॉलीवुड कलाकार ,यहां के नेता ,सबकी अपनी जिम्मेदारी है, सेना का हर जवान अपनी व्यक्तिगत लड़ाई बॉर्डर पर नहीं लड़ता ,वह पूरे देश का प्रतिनिधित्व करता है, समय रहते ही स्वयं में सुधार कर लो, नहीं तो भविष्य किसी को नहीं छोड़ता, अंततः सेना का मूड बदल गया तो सभी का दिमाग सही कर देंगी।
जय जवान!
जय भारत!

बुधवार, 24 मई 2017

Hoga vahi Jo chahenge RAM मैं ना होता तो क्या होता पर हनुमान जी कहते है

हम सोचते है ।  
       मैं ना होता तो क्या होता ?
       पर हनुमान जी कहते है ।

हनुमानजी ने प्रभु श्रीराम से कहा था -
प्रभो, यदि मैं लंका न जाता, तो मेरे जीवन में बड़ी कमी रह जाती।
विभीषण का घर जब तक मैंने नही देखा था, तब तक मुझे लगता था, कि लंका में भला सन्त कहाँ मिलेंगे -
"लंका निसिचर निकर निवासा.
इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा".....
"प्रभो, मैं तो समझता था कि सन्त तो भारत में ही होते हैं. लेकिन जब मैं लंका में सीताजी को ढूंढ नहीं सका और विभीषण से भेंट होने पर उन्होंने उपाय बता दिया, तो मैंने सोचा कि अरे, जिन्हें मैं प्रयत्न करके नहीं ढूँढ सका, उन्हें तो इन लंका वाले सन्त ने ही बता दिया. शायद प्रभु ने यही दिखाने के लिए भेजा था कि इस दृश्य को भी देख लो।
और प्रभो, अशोक वाटिका में जिस समय रावण आया और रावण क्रोध में भरकर तलवार लेकर माँ को मारने के लिए दौड़ा, तब मुझे लगा कि अब मुझे कूदकर इसकी तलवार छीन कर इसका ही सिर काट लेना चाहिए, किन्तु अगले ही क्षण मैंने देखा कि मन्दोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया। यह देखकर मैं गदगद् हो गया।
ओह, प्रभो, आपने कैसी शिक्षा दी ! यदि मैं कूद पड़ता, तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मैं न होता तो क्या होता ?  बहुधा व्यक्ति को ऐसा ही भ्रम हो जाता है। मुझे भी लगता  कि, यदि मैं न होता, तो सीताजी को कौन बचाता ?
पर आप कितने बड़े कौतुकी हैं ? आपने उन्हें बचाया ही नहीं , बल्कि बचाने का काम रावण की उस पत्नी को ही सौंप दिया, जिसको प्रसन्नता होनी चाहिए कि सीता मरे, तो मेरा भय दूर हो। तो मैं समझ गया कि आप जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं। किसी का कोई महत्व नहीं है।
आगे चलकर जब त्रिजटा ने कहा कि लंका में बन्दर आया हुआ है, तो मैं समझ गया कि यहाँ तो बड़े सन्त हैं।
मैं आया और यहाँ के सन्त ने देख लिया। पर जब उसने कहा कि वह बन्दर लंका जलायेगा, तो मैं बड़ी चिन्ता में पड़ गया कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा नहीं और त्रिजटा कह रही है, तो मैं क्या करूँ ? पर प्रभु, बाद में तो मुझे सब अनुभव हो गया।
" रावण की सभा में इसलिए बँधकर रह गया कि करके तो मैंने देख लिया, अब जरा बँधके देखूं , कि क्या होता है। जब रावण के सैनिक तलवार लेकर मुझे मारने के लिए चले तो मैंने अपने को बचाने की तनिक भी चेष्टा नहीं की, पर जब विभीषण ने आकर कहा - दूत को मारना अनीति है, तो मैं समझ गया कि देखो, मुझे बचाना है, तो प्रभु ने यह उपाय कर दिया।
सीताजी को बचाना है, तो रावण की पत्नी मन्दोदरी को लगा दिया. मुझे बचाना था, तो रावण के भाई को भेज दिया।
प्रभो, आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बन्दर को मारा तो नहीं जायेगा, पर पूँछ में कपड़ा-तेल लपेट कर घी डालकर आग लगाई जाय, तो मैं गदगद् हो गया कि उस लंका वाली सन्त त्रिजटा की ही बात सच थी। लंका को जलाने के लिए मैं कहाँ से घी, तेल, कपड़ा लाता, कहाँ आग ढूँढता ! वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा लिया।
जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं, तो मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है !

*इसलिए यह याद रखें, कि संसार में जो कुछ भी हो रहा है, वह सब इश्वरीय बिधान है*।

*हम आप सब तो केवल निमित्त मात्र हैं*।
🙏🏻जय सियाराम🙏🏻

सोमवार, 22 मई 2017

Love jihad special har Hindu ladki gaur she padhe

वो कस्बे में डर डर के रहता था।

हालाँकि वो डरपोक नहीं था पर फिर भी डर–डर के रहना उसकी आदत हो गई थी।

 उसके डर की वजह भी थी। कोई आम नहीं बल्कि खास थी।

 उस कसबे की तीन – चौथाई आबादी हरे रंग की(मुस्लिम)थी।

जबकि वो हिन्दू था।

 उसकी एक लड़की थी। टीनएज  की।यही वजह थी कि वो कसबे में डरा – सहमा रहता था।

 उसने इतिहास पढ़ा था।

 दुनिया देखी थी।

 वो जानता था हरे रंग के रीत – रिवाज़ों में हिन्दू लड़की से जिस्मानी सम्बन्ध की बड़ी मान्यता है।

हिन्दू लड़की के कौमार्य को हासिल करने वाले हरे रंग के लड़के पर इस लोक और उस लोक दोनों जगह इनामों की बरसात होती है।

और ये ईनाम हरे रंग के लड़को के मनोबल चार गुना बड़ा देते है।

उसका डर थोड़ा और बढ़ गया था।

 डर के बढ़ने की वजह भी थी। कसबे में रहने वाली 5-6 हिन्दू लड़की के साथ पहले ही मुस्लिम लड़के नीच हरकत कर चुके थे।

 उन्होंने उन कई नारंगी देहों की दुर्दशा उजागर की थी जिन पर प्यार के नाम पर हरा रंग छिड़का गया था।

 यूँ कहे तो वो ‘लव जिहाद’ की मुहीम से नारंगी देहों का शोषण हुआ था।

उसकी टीनएज लड़की जब तक स्कूल या बाजार से वापस नहीं आ जाती उसका दिल धड़कता रहता।

बुरे – बुरे ख्याल उसे परेशान करते रहते थे।

 पिता होकर भी वो अपनी लड़की को चोर निगाहों से देखता।

किसी बदनीयती से नहीं।

बल्कि इसलिए कि किसी ने उसकी लड़की पे बदनीयती का हरा रंग तो नहीं छिड़क दिया।

कभी – कभी उसकी लड़की मोबाईल पर किसी से हँस कर करती तो उसका डर कलेजे में धड़क उठता।

कहीं मोबाईल पे दूसरी और कोई हरे रंग वाला लड़का तो नहीं।

लव जिहाद के फ़िराक में।

अचानक उसे पता चला कि लड़की किसी एक मुस्लिम लड़के से हँस कर बोलती – बतियाती है।

चुपके से उसने लड़की का मोबाईल चैक किया।

प्रेम के मेसेज के आदान – प्रदान के साथ एक ही नंबर पर ढेर फोन काल थे।

लड़के का नाम अफ़रोज़ था। मतलब हरे रंग वाला।

उसका डर बढ़ कर अब हद के करीब पहुँच गया।

लड़की के कॉलेज जाने पर रोक लगा दी गयी , लेकिन एक दिन लड़की मौका पा कर अफरोज के साथ घर से लापता हो गयी।

बाप तो उससे हर रिश्ता तोड़ चुका था , मन मे ठान चुका था कि अब लड़की को कभी अपनी देहलीज पर पैर नही रखने देगा।

अफरोज के परिवार का भी विरोध न कर सका क्योकि कस्बे में हरे रंग का आबादी बहुत ज्यादा थी और हिन्दू उनसे डरते थे।

 उसका गाव के  अब्दुल के साथ उठना – बैठने था सो अब्दुल उसे अबे – तबे से ज्यादा नहीं बोलता था।

पूरा पर्दा सरकने के बाद अब्दुल ने अपने दाये हाथ की तर्जनी से अपनी दाढ़ी खुजाई, फिर अचानक हो हो करके हंस पड़ा।

 वो हँस रहा था और विजय(लड़की का बाप)उसे यूँ हँसता देख खुद को अहमक समझ रहा था।

 अब्दुल को वो अहमक समझे ऐसा हक़ भी उसे हांसिल नहीं था।

वो गेरुए रंग का जो था। गेरुया रंग कसबे में अल्पसंख्यक जो था।

अचानक अपनी हँसी रोक कर अब्दुल ने एक चपत विजय के जांघ पर मारी और फिर बोला ‘ये क्या मनघड़ंत बवाल पाल रखा है मिया तुमने अपने दिल में।

ये लव सव जिहाद कुछ नहीं होता है। अरे तुम्हारी लड़की को प्यार – स्यार हुआ है, उस लड़के से।

इसलिये वो निकाह करके सलमा बन गयी और बहुत खुश है।

लेकिन कुछ दिनों के बाद ही अफरोज दूसरी बेगम ले आया और सलमा बनी हिन्दू लड़की ने जब विरोध किया , पुलिस के पास जाने की धमकी दी तो उसे ऐसिड डाल कर जला डाला...

लड़की कुछ दिन हॉस्पिटल में तड़पती रही वो आखिर में कुछ दिनों के बाद अपना दम तोड़ दिया...

ये ही सच्चाई लव जिहाद का शिकार होने वाली हर हिन्दू लड़की की।

लेकिन सच्चाई जानते हुए भी रोज हजारो लड़कियां हरे रंग वाले लड़के का शिकार हो रही है।

और ये कहानी नही बल्कि एक सच्ची घटना है.....

बुधवार, 10 मई 2017

Kaliyug ka arth

युधिष्ठर को था आभास कलुयुग में क्या होगा ?

पाण्डवों का अज्ञातवाश समाप्त होने में कुछ समय शेष रह गया था।

पाँचो पाण्डव एवं द्रोपदी जंगल मे छूपने का स्थान ढूंढ रहे थे,

उधर शनिदेव की आकाश मंडल से पाण्डवों पर नजर पड़ी शनिदेव के मन में विचार आया कि इन सब में बुद्धिमान कौन है परिक्षा ली जाय।

शनिदेव ने एक माया का महल बनाया कई योजन दूरी में उस महल के चार कोने थे, पूरब, पश्चिम, उतर, दक्षिण।

अचानक भीम की नजर महल पर पड़ी
और वो आकर्षित हो गया ,

भीम, यधिष्ठिर से बोला- भैया मुझे महल देखना है भाई ने कहा जाओ ।

भीम महल के द्वार पर पहुंचा वहाँ शनिदेव दरबान के रूप में खड़े थे,

भीम बोला- मुझे महल देखना है!

शनिदेव ने कहा- महल की कुछ शर्त है ।

1- शर्त महल में चार कोने हैं आप एक ही कोना देख सकते हैं।
2-शर्त महल में जो देखोगे उसकी सार सहित व्याख्या करोगे।
3-शर्त अगर व्याख्या नहीं कर सके तो कैद कर लिए जाओगे।

भीम ने कहा- मैं स्वीकार करता हूँ ऐसा ही होगा ।

और वह महल के पूर्व छोर की ओर गया ।

वहां जाकर उसने अद्भूत पशु पक्षी और फूलों एवं फलों से लदे वृक्षों का नजारा देखा,

आगे जाकर देखता है कि तीन कुंए है अगल-बगल में छोटे कुंए और बीच में एक बडा कुआ।

बीच वाला बड़े कुंए में पानी का उफान आता है और दोनों छोटे खाली कुओं को पानी से भर देता है। फिर कुछ देर बाद दोनों छोटे कुओं में उफान आता है तो खाली पड़े बड़े कुंए का पानी आधा रह जाता है इस क्रिया को भीम कई बार देखता है पर समझ नहीं पाता और लौटकर दरबान के पास आता है।

दरबान - क्या देखा आपने ?

भीम- महाशय मैंने पेड़ पौधे पशु पक्षी देखा वो मैंने पहले कभी नहीं देखा था जो अजीब थे। एक बात समझ में नहीं आई छोटे कुंए पानी से भर जाते हैं बड़ा क्यों नहीं भर पाता ये समझ में नहीं आया।

दरबान बोला आप शर्त के अनुसार बंदी हो गये हैं और बंदी घर में बैठा दिया।

अर्जुन आया बोला- मुझे महल देखना है, दरबान ने शर्त बता दी और अर्जुन पश्चिम वाले छोर की तरफ चला गया।

आगे जाकर अर्जुन क्या देखता है। एक खेत में दो फसल उग रही थी एक तरफ बाजरे की फसल दूसरी तरफ मक्का की फसल ।

बाजरे के पौधे से मक्का निकल रही तथा
मक्का के पौधे से बाजरी निकल रही । अजीब लगा कुछ समझ नहीं आया वापिस द्वार पर आ गया।

दरबान ने पुछा क्या देखा,

अर्जुन बोला महाशय सब कुछ देखा पर बाजरा और मक्का की बात समझ में नहीं आई।

शनिदेव ने कहा शर्त के अनुसार आप बंदी हैं ।

नकुल आया बोला मुझे महल देखना है ।

फिर वह उत्तर दिशा की और गया वहाँ उसने देखा कि बहुत सारी सफेद गायें जब उनको भूख लगती है तो अपनी छोटी बछियों का दूध पीती है उसे कुछ समझ नहीं आया द्वार पर आया ।

शनिदेव ने पुछा क्या देखा ?

नकुल बोला महाशय गाय बछियों का दूध पीती है यह समझ नहीं आया तब उसे भी बंदी बना लिया।

सहदेव आया बोला मुझे महल देखना है और वह दक्षिण दिशा की और गया अंतिम कोना देखने के लिए क्या देखता है वहां पर एक सोने की बड़ी शिला एक चांदी के सिक्के पर टिकी हुई डगमग डोले पर गिरे नहीं छूने पर भी वैसे ही रहती है समझ नहीं आया वह वापिस द्वार पर आ गया और बोला सोने की शिला की बात समझ में नहीं आई तब वह भी बंदी हो गया।

चारों भाई बहुत देर से नहीं आये तब युधिष्ठिर को चिंता हुई वह भी द्रोपदी सहित महल में गये।

भाइयों के लिए पूछा तब दरबान ने बताया वो शर्त अनुसार बंदी है।

युधिष्ठिर बोला भीम तुमने क्या देखा ?

भीम ने कुंऐ के बारे में बताया

तब युधिष्ठिर ने कहा- यह कलियुग में होने वाला है एक बाप दो बेटों का पेट तो भर देगा परन्तु दो बेटे मिलकर एक बाप का पेट नहीं भर पायेंगे।

भीम को छोड़ दिया।

अर्जुन से पुछा तुमने क्या देखा ??

उसने फसल के बारे में बताया

युधिष्ठिर ने कहा- यह भी कलियुग में होने वाला है वंश परिवर्तन अर्थात ब्राह्मण के घर शूद्र की लड़की और शूद्र के घर बनिए की लड़की ब्याही जायेंगी।

अर्जुन भी छूट गया।

नकुल से पूछा तुमने क्या देखा तब उसने गाय का वृतान्त बताया ।

तब युधिष्ठिर ने कहा- कलियुग में माताऐं अपनी बेटियों के घर में पलेंगी बेटी का दाना खायेंगी और बेटे सेवा नहीं करेंगे ।

तब नकुल भी छूट गया।

सहदेव से पूछा तुमने क्या देखा, उसने सोने की शिला का वृतांत बताया,

तब युधिष्ठिर बोले- कलियुग में पाप धर्म को दबाता रहेगा परन्तु धर्म फिर भी जिंदा रहेगा खत्म नहीं होगा।।  आज के कलयुग में यह सारी बातें सच साबित हो रही है ।।

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सोमवार, 17 अप्रैल 2017

तलाक स्पेशल हिन्दु धर्म में तलाक जैसा कुछ नहीं है

*तलाक स्पेशल : जरूर पढे़*

*कृपया एक बार जरूर पढें*

रविवार को फुरसत से.....
तब मैं जनसत्ता में नौकरी करता था। एक दिन खबर आई कि एक आदमी ने झगड़ा के बाद अपनी पत्नी की हत्या कर दी। मैंने खब़र में हेडिंग लगाई कि पति ने अपनी बीवी को मार डाला। खबर छप गई। किसी को आपत्ति नहीं थी। पर शाम को दफ्तर से घर के लिए निकलते हुए प्रधान संपादक प्रभाष जोशी जी सीढ़ी के पास मिल गए। मैंने उन्हें नमस्कार किया तो कहने लगे कि संजय जी, पति की बीवी नहीं होती।

“पति की बीवी नहीं होती?” मैं चौंका था।

“बीवी तो शौहर की होती है, मियाँ की होती है। पति की तो पत्नी होती है।”

भाषा के मामले में प्रभाष जी के सामने मेरा टिकना मुमकिन नहीं था। हालांकि मैं कहना चाह रहा था कि भाव तो साफ है न? बीवी कहें या पत्नी या फिर वाइफ, सब एक ही तो हैं। लेकिन मेरे कहने से पहले ही उन्होंने मुझसे कहा कि भाव अपनी जगह है, शब्द अपनी जगह। कुछ शब्द कुछ जगहों के लिए बने ही नहीं होते, ऐसे में शब्दों का घालमेल गड़बड़ी पैदा करता है।

प्रभाष जी आमतौर पर उपसंपादकों से लंबी बातें नहीं किया करते थे। लेकिन उस दिन उन्होंने मुझे टोका था और तब से मेरे मन में ये बात बैठ गई थी कि शब्द बहुत सोच-समझ कर गढ़े गए होते हैं।

खैर, आज मैं भाषा की कक्षा लगाने नहीं आया। आज मैं रिश्तों के एक अलग अध्याय को जीने के लिए आपके पास आया हूँ। लेकिन इसके लिए आपको मेरे साथ निधि के पास चलना होगा।

निधि मेरी दोस्त है। कल उसने मुझे फोन करके अपने घर बुलाया था। फोन पर उसकी आवाज़ से मेरे मन में खटका हो चुका था कि कुछ न कुछ गड़बड़ है। मैं शाम को उसके घर पहुँचा। उसने चाय बनाई और मुझसे बात करने लगी। पहले तो इधर-उधर की बातें हुईं, फिर उसने कहना शुरू कर दिया कि नितिन से उसकी नहीं बन रही और उसने उसे तलाक देने का फैसला कर लिया है।

मैंने पूछा कि नितिन कहाँ है, तो उसने कहा कि अभी कहीं गए हैं, बता कर नहीं गए। उसने कहा कि बात-बात पर झगड़ा होता है और अब ये झगड़ा बहुत बढ़ गया है। ऐसे में अब एक ही रास्ता बचा है कि अलग हो जाएँ, तलाक ले लें।

मैं चुपचाप बैठा रहा।

निधि जब काफी देर बोल चुकी, तो मैंने उससे कहा कि तुम नितिन को फोन करो और घर बुलाओ, कहो कि संजय सिन्हा आए हैं।

निधि ने कहा कि उनकी तो बातचीत नहीं होती, फिर वो फोन कैसे करे?

अज़ीब संकट था। निधि को मैं बहुत पहले से जानता हूँ। मैं जानता हूँ कि नितिन से शादी करने के लिए उसने घर में कितना संघर्ष किया था। बहुत मुश्किल से दोनों के घर वाले राज़ी हुए थे, फिर धूमधाम से शादी हुई थी। ढेर सारी रस्म पूरी की गईं थीं। ऐसा लगता था कि ये जोड़ी ऊपर से बन कर आई है। पर शादी के कुछ ही साल बाद दोनों के बीच झगड़े होने लगे। दोनों एक-दूसरे को खरी-खोटी सुनाने लगे। और आज उसी का नतीज़ा था कि संजय सिन्हा निधि के सामने बैठे थे, उनके बीच के टूटते रिश्तों को बचाने के लिए।

खैर, निधि ने फोन नहीं किया। मैंने ही फोन किया और पूछा कि तुम कहां हो ? मैं तुम्हारे घर पर हूँ, आ जाओ। नितिन पहले तो आनाकानी करता रहा, पर वो जल्दी ही मान गया और घर चला आया।

अब दोनों के चेहरों पर तनातनी साफ नज़र आ रही थी। ऐसा लग रहा था कि कभी दो जिस्म-एक जान कहे जाने वाले ये पति-पत्नी आँखों ही आँखों में एक-दूसरे की जान ले लेंगे। दोनों के बीच कई दिनों से बातचीत नहीं हुई थी।
नितिन मेरे सामने बैठा था। मैंने उससे कहा कि सुना है कि तुम निधि से तलाक लेना चाहते हो?
उसने कहा, “हाँ, बिल्कुल सही सुना है। अब हम साथ नहीं रह सकते।”

मैंने कहा कि तुम चाहो तो अलग रह सकते हो। पर तलाक नहीं ले सकते।

“क्यों?”

“क्योंकि तुमने निकाह तो किया ही नहीं है।”

“अरे यार, हमने शादी तो की है।”

“हाँ, शादी की है। शादी में पति-पत्नी के बीच इस तरह अलग होने का कोई प्रावधान नहीं है। अगर तुमने मैरिज़ की होती तो तुम डाइवोर्स ले सकते थे। अगर तुमने निकाह किया होता तो तुम तलाक ले सकते थे। लेकिन क्योंकि तुमने शादी की है, इसका मतलब ये हुआ कि हिंदू धर्म और हिंदी में कहीं भी पति-पत्नी के एक हो जाने के बाद अलग होने का कोई प्रावधान है ही नहीं।”

मैंने इतनी-सी बात पूरी गंभीरता से कही थी, पर दोनों हँस पड़े थे। दोनों को साथ-साथ हँसते देख कर मुझे बहुत खुशी हुई थी। मैंने समझ लिया था कि रिश्तों पर पड़ी बर्फ अब पिघलने लगी है। वो हँसे, लेकिन मैं गंभीर बना रहा।

मैंने फिर निधि से पूछा कि ये तुम्हारे कौन हैं?

निधि ने नज़रे झुका कर कहा कि पति हैं। मैंने यही सवाल नितिन से किया कि ये तुम्हारी कौन हैं? उसने भी नज़रें इधर-उधर घुमाते हुए कहा कि बीवी हैं।

मैंने तुरंत टोका। ये तुम्हारी बीवी नहीं हैं। ये तुम्हारी बीवी इसलिए नहीं हैं क्योंकि तुम इनके शौहर नहीं। तुम इनके शौहर नहीं, क्योंकि तुमने इनके साथ निकाह नहीं किया। तुमने शादी की है। शादी के बाद ये तुम्हारी पत्नी हुईं। हमारे यहाँ जोड़ी ऊपर से बन कर आती है। तुम भले सोचो कि शादी तुमने की है, पर ये सत्य नहीं है। तुम शादी का एलबम निकाल कर लाओ, मैं सबकुछ अभी इसी वक्त साबित कर दूँगा।

बात अलग दिशा में चल पड़ी थी। मेरे एक-दो बार कहने के बाद निधि शादी का एलबम निकाल लाई। अब तक माहौल थोड़ा ठंडा हो चुका था, एलबम लाते हुए उसने कहा कि कॉफी बना कर लाती हूं।

मैंने कहा कि अभी बैठो, इन तस्वीरों को देखो। कई तस्वीरों को देखते हुए मेरी निगाह एक तस्वीर पर गई जहां निधि और नितिन शादी के जोड़े में बैठे थे और पाँव-पूजन की रस्म चल रही थी। मैंने वो तस्वीर एलबम से निकाली और उनसे कहा कि इस तस्वीर को गौर से देखो।

उन्होंने तस्वीर देखी और साथ-साथ पूछ बैठे कि इसमें खास क्या है?

मैंने कहा कि ये पैर-पूजन की रस्म है। तुम दोनों इन सभी लोगों से छोटे हो, जो तुम्हारे पाँव छू रहे हैं।

“हाँ तो?”

“ये एक रस्म है। ऐसी रस्म संसार के किसी धर्म में नहीं होती, जहाँ छोटों के पाँव बड़े छूते हों। लेकिन हमारे यहाँ शादी को ईश्वरीय विधान माना गया है, इसलिए ऐसा माना जाता है कि शादी के दिन पति-पत्नी दोनों विष्णु और लक्ष्मी के रूप हो जाते हैं। दोनों के भीतर ईश्वर का निवास हो जाता है। अब तुम दोनों खुद सोचो कि क्या हज़ारों-लाखों साल से विष्णु और लक्ष्मी कभी अलग हुए हैं? दोनों के बीच कभी झिकझिक हुई भी हो तो क्या कभी तुम सोच सकते हो कि दोनों अलग हो जाएँगे? नहीं होंगे। हमारे यहाँ इस रिश्ते में ये प्रावधान है ही नहीं। तलाक शब्द हमारा नहीं है। डाइवोर्स शब्द भी हमारा नहीं है।"

यहीं दोनों से मैंने ये भी पूछा कि बताओ कि हिंदी में तलाक को क्या कहते हैं?

दोनों मेरी ओर देखने लगे। उनके पास कोई जवाब था ही नहीं। फिर मैंने ही कहा कि दरअसल हिंदी में तलाक का कोई विकल्प नहीं। हमारे यहाँ तो ऐसा माना जाता है कि एक बार एक हो गए तो कई जन्मों के लिए एक हो गए। तो प्लीज़ जो हो ही नहीं सकता, उसे करने की कोशिश भी मत करो। या फिर पहले एक दूसरे से निकाह कर लो, फिर तलाक ले लेना।

अब तक रिश्तों पर जमी बर्फ काफी पिघल चुकी थी।
निधि चुपचाप मेरी बातें सुन रही थी। फिर उसने कहा कि

भैया, मैं कॉफी लेकर आती हूँ।

वो कॉफी लाने गई, मैंने नितिन से बातें शुरू कर दीं। बहुत जल्दी पता चल गया कि बहुत ही छोटी-छोटी बातें हैं, बहुत ही छोटी-छोटी इच्छाएँ हैं, जिनकी वज़ह से झगड़े हो रहे हैं।

खैर, कॉफी आई। मैंने एक चम्मच चीनी अपने कप में डाली। नितिन के कप में चीनी डाल ही रहा था कि निधि ने रोक लिया, “भैया इन्हें शुगर है। चीनी नहीं लेंगे।”

लो जी, घंटा भर पहले ये इनसे अलग होने की सोच रही थीं और अब इनके स्वास्थ्य की सोच रही हैं।
मैं हँस पड़ा। मुझे हँसते देख निधि थोड़ा झेंपी। कॉफी पी कर मैंने कहा कि अब तुम लोग अगले हफ़्ते निकाह कर लो, फिर तलाक में मैं तुम दोनों की मदद करूँगा।
जब तक निकाह नहीं कर लेते तब तक “हम्मा-हम्मा-हम्मा, एक हो गए हम और तुम” वाला गाना गाओ, मैं चला।

मैं जानता हूँ कि अब तक दोनों एक हो गए होंगे। हिंदी एक भाषा ही नहीं संस्कृति है।
*('नूतनवाग्धारा' समूह से साभार)*

जिसने भी लिखा है उनको हम दिल से धन्यवाद देते हैं हमें गर्व है। कि हम हिन्दू है।

शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

Akta me hi SAKTI hai आप को लगे कि ये मेरी समस्या नहीं है तो रुकिए और दुबारा सोचिये हम सब खतरे में हैं

एक चूहा #किसान के घर में बिल बना कर रहता था. एक दिन चूहे ने देखा कि किसान और उसकी पत्नी एक थैले से कुछ निकाल रहे हैं. चूहे ने सोचा कि शायद कुछ खाने का सामान है.
उत्सुकतावश देखने पर उसने पाया कि वो एक चूहेदानी थी. ख़तरा भाँपने पर उस ने पिछवाड़े में जा कर कबूतर को यह बात बताई कि घर में चूहेदानी आ गयी है.
कबूतर ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि मुझे क्या? मुझे कौनसा उस में फँसना है?
निराश चूहा ये बात मुर्गे को बताने गया.
मुर्गे ने खिल्ली उड़ाते हुए कहा... जा भाई..ये मेरी समस्या नहीं है.
हताश चूहे ने बाड़े में जा कर बकरे को ये बात बताई... और बकरा हँसते हँसते लोटपोट होने लगा
.
उसी रात चूहेदानी में खटाक की आवाज़ हुई जिस में एक ज़हरीला साँप फँस गया था.
अँधेरे में उसकी पूँछ को चूहा समझ कर किसान की पत्नी ने उसे निकाला और साँप ने उसे डंस लिया.
तबीयत बिगड़ने पर किसान ने वैद्य को बुलवाया. वैद्य ने उसे कबूतर का सूप पिलाने की सलाह दी.
*कबूतर अब पतीले में उबल रहा था*.
खबर सुनकर किसान के कई रिश्तेदार मिलने आ पहुँचे जिनके भोजन प्रबंध हेतु अगले दिन *मुर्गे को काटा गया*.
कुछ दिनों बाद किसान की पत्नी मर गयी... अंतिम संस्कार और मृत्यु भोज में बकरा परोसने के अलावा कोई चारा न था......
चूहा दूर जा चुका था...बहुत दूर ...........
अगली बार कोई आप को अपनी समस्या बातये और आप को लगे कि ये मेरी समस्या नहीं है तो रुकिए और दुबारा सोचिये.... हम सब खतरे में हैं...
समाज का एक अंग, एक तबका, एक नागरिक खतरे में है तो पूरा देश खतरे में है....
जाति पाती के दायरे से बाहर निकलिये.
स्वयंम तक सीमित मत रहिये.  .
समाजिक बनिये...
और राष्ट्र  धर्म के लिए एक बनिये..

बुधवार, 5 अप्रैल 2017

Bhagvan ram aur unke banshaj

कभी सोचा है की प्रभु 🏹🏹श्री राम के दादा परदादा का नाम क्या था?
नहीं तो जानिये-
1 - ब्रह्मा जी से मरीचि हुए,
2 - मरीचि के पुत्र कश्यप हुए,
3 - कश्यप के पुत्र विवस्वान थे,
4 - विवस्वान के वैवस्वत मनु हुए.वैवस्वत मनु के समय जल प्रलय हुआ था,
5 - वैवस्वतमनु के दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु था, इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुलकी स्थापना की |
6 - इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुए,
7 - कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था,
8 - विकुक्षि के पुत्र बाण हुए,
9 - बाण के पुत्र अनरण्य हुए,
10- अनरण्य से पृथु हुए,
11- पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ,
12- त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए,
13- धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था,
14- युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए,
15- मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ,
16- सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित,
17- ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए,
18- भरत के पुत्र असित हुए,
19- असित के पुत्र सगर हुए,
20- सगर के पुत्र का नाम असमंज था,
21- असमंज के पुत्र अंशुमान हुए,
22- अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए,
23- दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए, भागीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतारा था.भागीरथ के पुत्र ककुत्स्थ थे |
24- ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए, रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया, तब से श्री राम के कुल को रघु कुल भी कहा जाता है |
25- रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए,
26- प्रवृद्ध के पुत्र शंखण थे,
27- शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए,
28- सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था,
29- अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग हुए,
30- शीघ्रग के पुत्र मरु हुए,
31- मरु के पुत्र प्रशुश्रुक थे,
32- प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए,
33- अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था,
34- नहुष के पुत्र ययाति हुए,
35- ययाति के पुत्र नाभाग हुए,
36- नाभाग के पुत्र का नाम अज था,
37- अज के पुत्र दशरथ हुए,
38- दशरथ के चार पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हुए |
इस प्रकार ब्रह्मा की उन्चालिसवी (39) पीढ़ी में श्रीराम का जन्म हुआ | शेयर करे ताकि हर हिंदू इस जानकारी को जाने..



🏹रामचरित मानस के कुछ रोचक तथ्य🏹

1:~मानस में राम शब्द = 1443 बार आया है।
2:~मानस में सीता शब्द = 147 बार आया है।
3:~मानस में जानकी शब्द = 69 बार आया है।
4:~मानस में बैदेही शब्द = 51 बार आया है।
5:~मानस में बड़भागी शब्द = 58 बार आया है।
6:~मानस में कोटि शब्द = 125 बार आया है।
7:~मानस में एक बार शब्द = 18 बार आया है।
8:~मानस में मन्दिर शब्द = 35 बार आया है।
9:~मानस में मरम शब्द = 40 बार आया है।

10:~लंका में राम जी = 111 दिन रहे।
11:~लंका में सीताजी = 435 दिन रहीं।
12:~मानस में श्लोक संख्या = 27 है।
13:~मानस में चोपाई संख्या = 4608 है।
14:~मानस में दोहा संख्या = 1074 है।
15:~मानस में सोरठा संख्या = 207 है।
16:~मानस में छन्द संख्या = 86 है।

17:~सुग्रीव में बल था = 10000 हाथियों का।
18:~सीता रानी बनीं = 33वर्ष की उम्र में।
19:~मानस रचना के समय तुलसीदास की उम्र = 77 वर्ष थी।
20:~पुष्पक विमान की चाल = 400 मील/घण्टा थी।
21:~रामादल व रावण दल का युद्ध = 87 दिन चला।
22:~राम रावण युद्ध = 32 दिन चला।
23:~सेतु निर्माण = 5 दिन में हुआ।

24:~नलनील के पिता = विश्वकर्मा जी हैं।
25:~त्रिजटा के पिता = विभीषण हैं।

26:~विश्वामित्र राम को ले गए =10 दिन के लिए।
27:~राम ने रावण को सबसे पहले मारा था = 6 वर्ष की उम्र में।
28:~रावण को जिन्दा किया = सुखेन बेद ने नाभि में अमृत रखकर।
यह जानकारी किसी भाइ ने महीनों के परिश्रम केबाद आपके सम्मुख प्रस्तुत किया है ।
आप भी share कर धर्म लाभ कमाये
जय श्री राम
🙏�  जय श्री राम   🙏

सोमवार, 3 अप्रैल 2017

Anti romio Ki pehchan ka tarika

*रोमियों को पहचानने का तरीका, पुलिस ही नहीं सभी के लिए कारगर...*

*नोट-निम्नलिखित गुणों में से चार गुण मिलने पर शोहदों को रोमियो घोषित किया जा सकता है.....*

1- हर दिन ये पेट्रोल पम्प पर बीस रुपये का पेट्रोल भराते हैं।

2- ये गाड़ी चलाते समय एक साथ पूरा एस्सेलेरेटर लेकर और आधा क्लच दबाकर गाड़ी चलाते हैं।

3- ये बालिका विद्यालय अथवा महिला महाविद्यालय अथवा किसी टेक्निकल इंस्टिट्यूट या प्राइवेट कोचिंग के आसपास दिन भर बिना किसी काम के सिगरेट के खोखे पर एक सिगरेट को तीन बार जलाकर पीते नजर आते हैं।

4- ये 60 रुपये की टी शर्ट और 120 रुपये की जीन्स जिस पर की लाल हरा नीला पीला रंग का ड्रैगन फूल पत्ते आदि बना होता है, धारण करते हैं और वह जीन्स इनके कमर पर टिकने का नाम नहीं लेती है नीचे को सरकती रहती है।

5- ये अधिकांशतः 45-50 किलोग्राम वजन के होते हैं लेकिन हाथ में दो चार पांच रुपये वाला रबर का लाल पीला फ्रेंडशिप बैंड एवं एक दो कड़े (250 ग्राम के) पहने होते हैं और दोनों हाथो को शरीर से थोड़ा दूर रखकर ऐसे चलते हैं मानो खपच्ची बंधी हो।

6- 50 रूपये वाला रेबेन का नकली चश्मा बार बार उतारकर साफ़ करके फिर पुनः लगाते नज़र आते हैं।

विशेष-
इन्हें कूटना केवल पुलिस की ही नहीं बल्कि आपकी भी नैतिक जिम्मेदारी बनती है...

जनहित में जारी

Ram mandir vahi banayenge मंदिर वही बनायेंगे

⚔🚩मंदिर वही बनायेंगे🚩⚔
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योगी जैसा और ना कोई , बोल रहा हू शान से
हिंदू है  हम प्यार  है हमको , मेरे हिन्दुस्थान से

जिन्हे चाहिये राम का मंदिर वो हिंदू मतवाले है
त्याग अहिंसा भूल गय़ा हाथो मे दिखते भाले है

प्रभु राम की जय होगी मुँह अपना जब खोलेंगे
योगी जी के अनुयायी हम , योगी भाषा बोलेंगे

बाबर की औलाद वीर के संयम जब भी तौलेँगे
वीर शिवा राणा के वंशज ,मुँह तेगो का खोलेंगे

मंदिर के विरोधी हर , बस  प्राण गवाने आयेंगे
प्रभु राम का जयकारा कर ,मंदिर वही बनायेंगे

जाफ़र औ जयचंद जो दुबे ज़हर फिजा मे घोलेँगे
योगी  जी  के  अनुयायी , हम योगी भाषा बोलेंगे
हम योगी भाषा बोलेंगे


हामारे भाइ बृजेश दुबे  जी के कलम से

बृजेश दुबे ✍🏻

सोमवार, 20 मार्च 2017

yogi adityanath cm up ab yogi raj chal raha hai

माथे पर चंदन टीका है, सूर्य तेज़ के स्वामी
हैं।
यू पी के दिल की सुन ली,
मोदी जी अंतर्यामी हैं।।
कई सियासी गठबंधन अब, भिखमंगे हो जाएँगे।
माँ को डायन कहने वाले, सब नंगे हो जाएँगे।।
यू पी के गुंडो सुनलो, ये पिस्टल वाला गाँधी
हैं।
योगी केवल नाम नहीं हैं, योगी
ख़ुद में आँधी हैं।।
जिनको घिन आती, भारत माँ को माता कहने में।
जिनकी साँसे फूल रही हो, वन्दे मातरम
कहने में।।
उनको योगी, योगी वाली, भाषा में
समझाएँगे।
वक़्त पड़ा तो हिटलर वाले, तेवर भी अपनाएँगे।।
हाँ, थोड़ा कड़वा तेवर हैं, कड़वी भाषा कहते हैं।
लेकिन योगी राष्ट्रवाद को, गले लगाकर रहते हैं।।
साम दाम और दंड भेद का, मंतर पढ़ना आता हैं।
योगी जी को सीधी
ऊँगली, टेढ़ी करना आता हैं।।
अफ़ज़ल के जीजा साले, बोलो किस पर ऐठेंगे।
भैंसों के सारे मालिक अब, गाय बाँध कर बैठेंगे।।
वक़्त लगेगा, लेकिन यू पी, पावन सी हो
जाएगी।
अब यू पी में हर दिन होली , रात
दिवाली आएगी।।

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