क्यों नहीं पढाई गईं अकबर की पराजय गाथा? क्यों नहीं जानती नई पीढी उसे हराने वाले वीर योद्धा भानजी दल जाडेजा को?
आज हम एक ऐसे वीर योद्धा भान जी दल जाडेजा के बारे में बताने जा रहे है जिसने अपने राज्य पर बुरी नजर रखनेवाले मुगलों को गाजर मूली की तरह काटा | इतना ही नहीं तो उनका नेतृत्व करने वाले अकबर को भागने पर मजबूर कर दिया ! लेकिन दुर्भाग्य देश का कि नई पीढी को इस वीर योद्धा के बारे में पढाया और सुनाया ही नही गया ! भान जी दल जाडेजा ने अकबर को बुरी तरह परास्त किया और उसे भागने पर मजबूर कर दिया और साथ ही साथ उसके 52 हाथी 3530 घोड़े पालकिया आदि अपने कब्जे में ले लिए !
विक्रम सम्वंत 1633(1576 ईस्वी) में मेवाड़,गोंड़वाना के साथ साथ गुजरात भी मुगलो से लोहा ले रहा था | गुजरात में स्वय अकबर और उसका सेनापति कमान संभाले थे ! अकबर ने जूनागढ़ रियासत पर 1576 ईस्वी में आक्रमण करना चाहा तब वहां के नवाब ने पडोसी राज्य नवानगर (जामनगर) के राजा जाम सताजी जडेजा से सहायता मांगी ! क्षत्रिय धर्म के अनुरूप महाराजा ने पडोसी राज्य जूनागढ़ की सहायता के लिए अपने 30000 योद्धाओ को भेजा जिसका नेतत्व कर रहे थे नवानगर के सेनापति वीर योद्धा भान जी दल जाडेजा!
सभी योद्धा देवी दर्शन के पश्चात् तलवार शस्त्र पूजा कर जूनागढ़ की सहायता को निकले, पर माँ भवानी को कुछ और ही मंजूर था ! उस दिन जूनागढ़ के नवाब ने अकबर की विशाल सेना के सामने लड़ने से इंकार कर दिया व आत्मसमर्पण के लिए तैयार हो गया ! नवानगर के सेनापति ने वीर भान जी दल जाडेजा को वापस अपने राज्य लौट जाने को कहा ! इस पर भान जी और उनके वीर राजपूत योद्धा अत्यंत क्रोधित हुए ! भानजी जडेजा ने सीधे सीधे जूनागढ़ नवाब को राजपूती तेवर में कहा “क्षत्रिय युद्ध के लिए निकला है तो या तो जीतकर लौटेगा या फिर रण भूमि में वीर गति को प्राप्त करेगा” !
वहां सभी वीर जानते थे की जूनागढ़ के बाद नवानगर पर आक्रमण होगा ही, इसलिए सभी वीरो ने फैसला किया कि वे बिना युद्ध किये नही लौटेंगे ! अकबर की सेना लाखो में थी ! उन्होंने मजेवाड़ी गाँव के मैदान में अपना डेरा जमा रखा था ! भान जी जडेजा ने मुगलो के तरीके से ही कुटनीति का उपयोग करते हुए आधी रात को युद्ध लड़ने का फैसला किया !
सभी योद्धा आपस में गले मिले फिर अपने इष्ट देव का स्मरण कर युद्ध स्थल की ओर निकल पड़े ! आधी रात हुई और युद्ध आरम्भ हुआ ! रात के अँधेरे में हजारो मुगलो को काटा गया ! सुबह तक युद्ध चला, मुगलो का नेतृत्व कर रहा मिर्ज़ा खान और मुग़ल सेना अपना सामान छोड़ भाग खड़ी हुयी !
हालांकि अकबर इस युद्धस्थल से कुछ ही दूर था, किन्तु उसने भी स्थिति की गंभीरता को भांपकर पैर पीछे खींचने में ही भलाई समझी | वह भी सुबह होते ही अपने विश्वसनीय लोगो के साथ काठियावाड़ छोड़कर भाग खड़ा हुआ !
नवानगर की सेना ने मुगलो का 20 कोस तक पीछा किया ! जो हाथ आये वो मारे गए ! अंत में भान जी दल जाडेजा ने मजेवाड़ी में अकबर के शिविर से 52 हाथी 3530 घोड़े और पालकियों को अपने कब्जे में ले लिया ! उस के बाद यह काठियावाड़ी फ़ौज नवाब को उसकी कायरता की सजा देने के लिए सीधी जूनागढ़ गयी ! जूनागढ़ किले के दरवाजे उखाड दिए गए ! ये दरवाजे आज जामनगर में खम्बालिया दरवाजे के नाम से जाने जाते है और आज भी वहां लगे हुए है !
बाद में जूनागढ़ के नवाब को शर्मिन्दिगी और पछतावा हुआ उसने नवानगर महाराजा साताजी से क्षमा मांगी और दंड स्वरूप् जूनागढ़ रियासत के चुरू ,भार सहित 24 गांव और जोधपुर परगना (काठियावाड़ वाला) नवानगर रियासत को दिए ! कुछ समय बाद बदला लेने की मंशा से अकबर फिर 1639 में आया किन्तु इस बार भी उसे "तामाचान की लड़ाई" में फिर हार का मुँह देखना पड़ा !
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आज हम एक ऐसे वीर योद्धा भान जी दल जाडेजा के बारे में बताने जा रहे है जिसने अपने राज्य पर बुरी नजर रखनेवाले मुगलों को गाजर मूली की तरह काटा | इतना ही नहीं तो उनका नेतृत्व करने वाले अकबर को भागने पर मजबूर कर दिया ! लेकिन दुर्भाग्य देश का कि नई पीढी को इस वीर योद्धा के बारे में पढाया और सुनाया ही नही गया ! भान जी दल जाडेजा ने अकबर को बुरी तरह परास्त किया और उसे भागने पर मजबूर कर दिया और साथ ही साथ उसके 52 हाथी 3530 घोड़े पालकिया आदि अपने कब्जे में ले लिए !
विक्रम सम्वंत 1633(1576 ईस्वी) में मेवाड़,गोंड़वाना के साथ साथ गुजरात भी मुगलो से लोहा ले रहा था | गुजरात में स्वय अकबर और उसका सेनापति कमान संभाले थे ! अकबर ने जूनागढ़ रियासत पर 1576 ईस्वी में आक्रमण करना चाहा तब वहां के नवाब ने पडोसी राज्य नवानगर (जामनगर) के राजा जाम सताजी जडेजा से सहायता मांगी ! क्षत्रिय धर्म के अनुरूप महाराजा ने पडोसी राज्य जूनागढ़ की सहायता के लिए अपने 30000 योद्धाओ को भेजा जिसका नेतत्व कर रहे थे नवानगर के सेनापति वीर योद्धा भान जी दल जाडेजा!
सभी योद्धा देवी दर्शन के पश्चात् तलवार शस्त्र पूजा कर जूनागढ़ की सहायता को निकले, पर माँ भवानी को कुछ और ही मंजूर था ! उस दिन जूनागढ़ के नवाब ने अकबर की विशाल सेना के सामने लड़ने से इंकार कर दिया व आत्मसमर्पण के लिए तैयार हो गया ! नवानगर के सेनापति ने वीर भान जी दल जाडेजा को वापस अपने राज्य लौट जाने को कहा ! इस पर भान जी और उनके वीर राजपूत योद्धा अत्यंत क्रोधित हुए ! भानजी जडेजा ने सीधे सीधे जूनागढ़ नवाब को राजपूती तेवर में कहा “क्षत्रिय युद्ध के लिए निकला है तो या तो जीतकर लौटेगा या फिर रण भूमि में वीर गति को प्राप्त करेगा” !
वहां सभी वीर जानते थे की जूनागढ़ के बाद नवानगर पर आक्रमण होगा ही, इसलिए सभी वीरो ने फैसला किया कि वे बिना युद्ध किये नही लौटेंगे ! अकबर की सेना लाखो में थी ! उन्होंने मजेवाड़ी गाँव के मैदान में अपना डेरा जमा रखा था ! भान जी जडेजा ने मुगलो के तरीके से ही कुटनीति का उपयोग करते हुए आधी रात को युद्ध लड़ने का फैसला किया !
सभी योद्धा आपस में गले मिले फिर अपने इष्ट देव का स्मरण कर युद्ध स्थल की ओर निकल पड़े ! आधी रात हुई और युद्ध आरम्भ हुआ ! रात के अँधेरे में हजारो मुगलो को काटा गया ! सुबह तक युद्ध चला, मुगलो का नेतृत्व कर रहा मिर्ज़ा खान और मुग़ल सेना अपना सामान छोड़ भाग खड़ी हुयी !
हालांकि अकबर इस युद्धस्थल से कुछ ही दूर था, किन्तु उसने भी स्थिति की गंभीरता को भांपकर पैर पीछे खींचने में ही भलाई समझी | वह भी सुबह होते ही अपने विश्वसनीय लोगो के साथ काठियावाड़ छोड़कर भाग खड़ा हुआ !
नवानगर की सेना ने मुगलो का 20 कोस तक पीछा किया ! जो हाथ आये वो मारे गए ! अंत में भान जी दल जाडेजा ने मजेवाड़ी में अकबर के शिविर से 52 हाथी 3530 घोड़े और पालकियों को अपने कब्जे में ले लिया ! उस के बाद यह काठियावाड़ी फ़ौज नवाब को उसकी कायरता की सजा देने के लिए सीधी जूनागढ़ गयी ! जूनागढ़ किले के दरवाजे उखाड दिए गए ! ये दरवाजे आज जामनगर में खम्बालिया दरवाजे के नाम से जाने जाते है और आज भी वहां लगे हुए है !
बाद में जूनागढ़ के नवाब को शर्मिन्दिगी और पछतावा हुआ उसने नवानगर महाराजा साताजी से क्षमा मांगी और दंड स्वरूप् जूनागढ़ रियासत के चुरू ,भार सहित 24 गांव और जोधपुर परगना (काठियावाड़ वाला) नवानगर रियासत को दिए ! कुछ समय बाद बदला लेने की मंशा से अकबर फिर 1639 में आया किन्तु इस बार भी उसे "तामाचान की लड़ाई" में फिर हार का मुँह देखना पड़ा !
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