शुक्रवार, 18 सितंबर 2015

Jaha bhi ram katah hota hai HANUMAN ji ake sunte hai

एक समय की बात है अयोध्या के पहुंचे हुए संत श्री रामायण कथा सुना रहे थे। रोज एक घंटा प्रवचन करते कितने ही लोग आते और आनंद विभोर होकर जाते।

साधु महाराज का नियम था रोज कथा शुरू
करने से पहले "आइए हनुमंत जी बिराजिए"कहकर हनुमानजी का आहवान करते थे, फिर एक घण्टा प्रवचन करते थे। एक वकील साहब हर रोज कथा सुनने आते। वकील साहब के भक्तिभाव पर एकदिन
तर्कशीलता हावी हो गई उन्हें लगा कि महाराज
रोज "आइए हनुमंत बिराजिए" कहते है तो क्या
हनुमानजी सचमुच आते होंगे !

अत: वकील ने महात्माजी से एक दिन पूछ ही
डाला- महाराजजी आप रामायण की कथा
बहुत अच्छी कहते है हमें बड़ा रस आता है
परंतु आप जो गद्दी प्रतिदिन हनुमानजी को देते
है उसपर क्या हनुमानजी सचमुच बिराजते है ?
साधु महाराज ने कहा… हाँ यह मेरा व्यक्तिगत
विश्वास है कि रामकथा हो रही हो तो
हनुमानजी अवश्य पधारते है वकील ने कहा…
महाराज ऐसे बात नहीं बनगी। हनुमानजी यहां
आते है इसका कोई सबूत दीजिए

वकील ने कहा… आप लोगों को प्रवचन सूना
रहे है सो तो अच्छा है लेकिन अपने पास
हनुमानजी को उपस्थिति बताकर आप
अनुचित तरीके से लोगों को प्रभावित कर रहे
है आपको साबित करके दिखाना चाहिए कि
हनुमानजी आपकी कथा सुनने आते है
महाराजजी ने बहुत समझाया कि भैया आस्था
को किसी सबूत की कसौटी पर नहीं कसना
चाहिए यह तो भक्त और भगवान के बीच का
प्रेमरस है व्यक्तिगत श्रद्घा का विषय है आप
कहो तो मैं प्रवचन बंद कर दूँ या आप कथा में
आना छोड़ दो

लेकिन वकील नहीं माना, कहता ही रहा कि
आप कई दिनो से दावा करते आ रहे है यह
बात और स्थानों पर भी कहते होगे इसलिए
महाराज आपको तो साबित करना होगा कि
हनुमानजी कथा सुनने आते है !

इस तरह दोनों के बीच वाद-विवाद होता रहा
मौखिक संघर्ष बढ़ता चला गया हारकर साधु
ने कहा… हनुमानजी है या नहीं उसका सबूत
कल दिलाऊंगा। कल कथा शुरू हो तब प्रयोग
करूंगा।

जिस गद्दी पर मैं हनुमानजी को विराजित होने
को कहता हूं आप उस गद्दी को अपने घर ले
जाना कल अपने साथ उस गद्दी को लेकर
आना फिर मैं कल गद्दी यहाँ रखूंगा

मैं कथा से पहले हनुमानजी को बुलाऊंगा फिर
आप गद्दी ऊँची करना, यदि आपने गद्दी ऊँची
कर ली तो समझना कि हनुमान जी नहीं है
वकील इस कसौटी के लिए तैयार हो गया
महाराज ने कहा… हम दोनों में से जो पराजित
होगा वह क्या करेगा, इसका निर्णय भी कर लें ?
यह तो सत्य की परीक्षा है वकील ने कहा-मैं
गद्दी ऊँची न कर सका तो वकालत छोड़कर
आपसे दीक्षा लूंगा। आप पराजित हो गए तो
क्या करोगे?

साधु ने कहा… मैं कथावाचन छोड़कर आपके
ऑफिस का चपरासी बन जाऊंगा। अगले दिन
कथापंडाल में भारी भीड़ हुई जो लोग कथा
सुनने रोज नही आते थे वे भी भक्ति, प्रेम और
विश्वास की परीक्षा देखने आए।

काफी भीड़ हो गई। पंडाल भर गया, श्रद्घा और
विश्वास का प्रश्न जो था। साधु महाराज और
वकील साहब कथा पंडाल में प्यारे गद्दी रखी
गई। महात्माजी ने सजल नेत्रों से मंगलाचरण
किया और फिर बोले… आइए हनुमानजी
पधारिए

ऐसा बोलते ही साधुजी की आंखे सजल हो
उठी। मन ही मन साधु बोले… प्रभु! आज मेरा
प्रश्न नहीं बल्कि रघुकुल रीति की पंरपरा का
सवाल है मैं तो एक साधारण जन हूं। मेरी
भक्ति और आस्था की लाज रखना।

फिर वकील साहब को निमंत्रण दिया… आइए
गद्दी ऊँची कीजिए। लोगों की आँखे जम गई।
वकील साहब खड़ेे हुये। उन्होंने गद्दी लेने के
लिए हाथ बढ़ाया पर गद्दी को स्पर्श भी न कर
सके !

जो भी कारण हो उन्होंने तीन बार हाथ बढ़ाया
किन्तु तीनों बार असफल रहे। महात्माजी देख
रहे थे गद्दी को पकड़ना तो दूर वो गद्दी की छू
भी न सके तीनों बार वकील साहब पसीने से
तर-बतर हो गए।

वह वकील साधु के चरणों में गिर पड़े और
बोले… महाराजा उठाने का मुझे मालूम नहीं पर
मेरा हाथ गद्दी तक भी पहुंच नहीं सकता, अत: मैं
अपनी हार स्वीकार करता हूं।

कहते है कि श्रद्घा और भक्ति के साथ की गई
आराधना में बहुत शक्ति होती है मानों तो देव
नहीं तो पत्थर। प्रभु की मूर्ति तो पाषाण की ही
होती है लेकिन भक्त के भाव से उसमें प्राण
प्रतिष्ठा होती है और प्रभु बिराजते है
तुलसीदासजी कहते है- साधु चरित सुभ चरित
कषासू निरस बिसद गुनमय फल जासू

साधु का स्वभाव कपास जैसा होना चाहिए जो
दूसरों के अवगुण को ढककर ज्ञान को अलख
जगाए। जो ऐसा भाव प्राप्त कर ले वही साधु है।

शनिवार, 12 सितंबर 2015

Ram nam ki mahima kalyug me ram nam hi mukti ka adhar hai

शनिदेव की पूजा में तिल और तेल क्यों?
( संकलित )

काला तिल, तेल, काला वस्त्र, काली उड़द शनि देव को अत्यंत प्रिय है. मान्यता है कि काला तिल और तेल से शनिदेव जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं. यदि शनिदेव की पूजा इन वस्तुओं से की जाए तो ऐसी पूजा सफल मानी जाती है.

शनि देव महाराज पर तेल चढाया जाता हैं,

इस संबंध में आनंद रामायण में एक कथा का उल्लेख मिलता हैं।

जब भगवान राम की सेना ने सागर सेतु बांध लिया, तब राक्षस इसे हानि न पहुंचा सकें, उसके लिए पवन सुत हनुमान को उसकी देखभाल की जिम्मेदारी सौपी गई।
जब हनुमान जी शाम के समय अपने इष्टदेव भगवान राम के ध्यान में मग्न थे, तभी सूर्य पुत्र शनि ने अपना काला कुरूप चेहरा बनाकर क्रोधपूर्ण कहा- हे वानर मैं देवताओ में शक्तिशाली शनि हूँ। सुना हैं, तुम बहुत बलशाली हो। आँखें खोलो और मेरे साथ युद्ध करो, मैं तुमसे युद्ध करना चाहता हूँ।

इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा- इस समय मैं अपने प्रभु को याद कर रहा हूं। आप मेरी पूजा में विघन मत डालिए। आप मेरे आदरणीय है। कृपा करके आप यहा से चले जाइए।

लेकिन,जब शनि देव लड़ने पर उतर आए, तो हनुमान जी ने अपनी पूंछ में लपेटना शुरू कर दिया। फिर उन्हे कसना प्रारंभ कर दिया जोर लगाने पर भी शनि उस बंधन से मुक्त न होकर पीड़ा से व्याकुल होने लगे। हनुमान ने फिर सेतु की परिक्रमा कर शनि के घमंड को तोड़ने के लिए पत्थरो पर पूंछ को झटका दे-दे कर पटकना शुरू कर दिया। इससे शनि का शरीर लहुलुहान हो गया, जिससे उनकी पीड़ा बढ़ती गई।

तब शनि देव ने हनुमान जी से प्रार्थना की - मुझे बधंन मुक्त कर दीजिए। मैं अपने अपराध की सजा पा चुका हूँ, फिर मुझसे ऐसी गलती नही होगी।

इस पर हनुमान जी बोले - मैं तुम्हे तभी छोडूंगा, जब तुम मुझे वचन दोगे कि श्री राम के भक्त को कभी परेशान नही करोगे। यदि तुमने ऐसा किया, तो मैं तुम्हें कठोर दंड दूंगा।
शनि ने गिड़गिड़ाकर कहा - मैं वचन देता हूं कि कभी भूलकर भी आपके और श्री राम के भक्त की राशि पर नही आऊँगा। आप मुझे छोड़ दें।

तभी हनुमान जी ने शनिदेव को छोड़ दिया। फिर हनुमान जी से शनिदेव ने अपने घावों की पीड़ा मिटाने के लिए तेल मांगा। हनुमान जी ने जो तेल दिया, उसे घाव पर लगाते ही शनि देव की पीड़ा मिट गई।

उसी दिन से शनिदेव को तेल चढ़ाया जाता हैं, जिससे उनकी पीडा शांत हो जाती हैं और वे प्रसन्न हो जाते हैं।

लेकिन एक मंदिर ऐसा हैं जहां कलियुग में शनि को तेल चढ़ाने की मनाही की गई है।
मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में एक मंदिर है। इस मंदिर में कई देवी-देवताओं के साथ महाभारत और रामयाण काल के असुरों की भी मूर्तियां है।

इस मंदिर में एक बोर्ड पर शनि महाराज का संदेश लिखा हुआ है 'हे कलियुग वासियो तुम मुझ पर तेल चढ़ाना छोड़ दो तो मैं तुम्हारा पीछा छोड़ दूंगा'

यानी कलियुग में जब तक शनि महाराज को तेल अर्पित करते रहेंगे तब तक शनि महाराज आपको सताना छोड़ेंगे नहीं। यहां शनि के प्रभाव से बचने का एक बहुत ही आसान तरीका बताया गया है।

इस मंदिर के नियम के अनुसार श्रद्घालु को इस शर्त पर मंदिर में प्रवेश की इजाजत दी जाती है कि आप १०८ बार राम नाम लिखेंगे।

नेता हों या आम जनता। जो भी इस मंदिर में प्रवेश करता है उसे इस नियम का पालन करना होता है। बिना राम नाम लिखे कोई भी मंदिर से बाहर नहीं आ सकता।

मंदिर में शनि के संदेश में लिखा है कि १०८ बार राम नाम लिखना शुरू कर दो तो मैं तुमको सारी विपत्तियों से मुक्त कर दूंगा।'

तुलसीदास जी ने भी लिखा है 'कलियुग केवल नाम अधारा सुमिरि सुमिरि नर उतरहिं पारा'। यानी कलियुग में राम नाम ही केवल मुक्ति का आधार है।

बुधवार, 9 सितंबर 2015

Ahnkar ki katha

श्रीकृष्ण भगवान द्वारका में रानी
सत्यभामा के
साथ सिंहासन पर विराजमान थे, निकट
ही गरुड़ और
सुदर्शन चक्र भी बैठे हुए थे। तीनों के चेहरे पर
दिव्य
तेज
झलक रहा था।
बातों ही बातों में रानी सत्यभामा ने
श्रीकृष्ण से
पूछा कि हे प्रभु, आपने त्रेता युग में राम के रूप
में
अवतार
लिया था, सीता आपकी पत्नी थीं।
क्या वे मुझसे
भी ज्यादा सुंदर थीं? द्वारकाधीश समझ
गए
कि सत्यभामा को अपने रूप का अभिमान
हो गया है।
तभी गरुड़ ने कहा कि भगवान क्या दुनिया
में मुझसे
भी ज्यादा तेज गति से कोई उड़ सकता है।
इधर
सुदर्शन
चक्र से भी रहा नहीं गया और वह भी कह उठे
कि भगवान, मैंने बड़े-बड़े युद्धों में
आपको विजयश्री दिलवाई है। क्या
संसार में मुझसे
भी शक्तिशाली कोई है?
भगवान मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। वे जान रहे थे
कि उनके इन
तीनों भक्तों को अहंकार हो गया है और
इनका अहंकार नष्ट होने का समय आ गया है।
ऐसा सोचकर उन्होंने गरुड़ से कहा कि हे
गरुड़! तुम
हनुमान के पास जाओ और कहना कि भगवान
राम,
माता सीता के साथ उनकी प्रतीक्षा कर
रहे हैं। गरुड़
भगवान की आज्ञा लेकर हनुमान को लाने
चले गए।
इधर श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से कहा कि
देवी आप
सीता के रूप में तैयार हो जाएं और स्वयं
द्वारकाधीश
ने राम का रूप धारण कर लिया। मधुसूदन ने
सुदर्शन
चक्र
को आज्ञा देते हुए कहा कि तुम महल के प्रवेश
द्वार
पर
पहरा दो। और ध्यान रहे कि मेरी आज्ञा के
बिना महल में कोई प्रवेश न करे।
भगवान की आज्ञा पाकर चक्र महल के प्रवेश
द्वार
पर
तैनात हो गए। गरुड़ ने हनुमान के पास पहुंच कर
कहा कि हे वानरश्रेष्ठ! भगवान राम माता
सीता के
साथ द्वारका में आपसे मिलने के लिए
प्रतीक्षा कर
रहे हैं। आप मेरे साथ चलें। मैं आपको अपनी
पीठ पर
बैठाकर शीघ्र ही वहां ले जाऊंगा। हनुमान
ने
विनयपूर्वक गरुड़ से कहा, आप चलिए, मैं आता
हूं।
गरुड़ ने
सोचा, पता नहीं यह बूढ़ा वानर कब
पहुंचेगा। खैर मैं
भगवान के पास चलता हूं। यह सोचकर गरुड़
शीघ्रता से
द्वारका की ओर उड़े। पर यह क्या, महल में
पहुंचकर
गरुड़
देखते हैं कि हनुमान तो उनसे पहले ही महल में
प्रभु
के
सामने बैठे हैं। गरुड़ का सिर लज्जा से झुक
गया।
तभी श्रीराम ने हनुमान से कहा कि पवन
पुत्र तुम
बिना आज्ञा के महल में कैसे प्रवेश कर गए?
क्या तुम्हें
किसी ने प्रवेश द्वार पर रोका नहीं?
हनुमान ने हाथ
जोड़ते हुए सिर झुका कर अपने मुंह से सुदर्शन
चक्र
को निकाल कर प्रभु के सामने रख दिया।
हनुमान ने
कहा कि प्रभु आपसे मिलने से मुझे इस चक्र ने
रोका था, इसलिए इसे मुंह में रख मैं आपसे
मिलने आ
गया। मुझे क्षमा करें। भगवान मंद-मंद
मुस्कुराने लगे।
हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए श्रीराम से प्रश्न
किया हे
प्रभु! आज आपने माता सीता के स्थान पर
किस
 को इतना सम्मान दे दिया कि वह
आपके साथ
सिंहासन पर विराजमान है।
अब रानी सत्यभामा के अहंकार भंग होने
की बारी थी। उन्हें सुंदरता का अहंकार
था,
जो पलभर में चूर हो गया था। रानी
सत्यभामा,
सुदर्शन चक्र व गरुड़ तीनों का गर्व चूर-चूर
हो गया था।
वे भगवान की लीला समझ रहे थे। तीनों
की आंख से
आंसू बहने लगे और वे भगवान के चरणों में झुक
गए।
अद्भुत
लीला है प्रभु की।
हे परम इस्नेही मित्रो ..जब इन तीनो का
अहंकार चूर चूर हो गया तो इन तीनो के
सामने हम अपने आपको किस जगह पाते है
...?
विचार करना ... जय श्री राधे..जय श्री
कृष्ण ...

सोमवार, 7 सितंबर 2015

Sant shri asharam ji bapu kya aisa kar sakte hai pls padhe aur comment karke bataye

🚩क्या आप जानते हैं,
कि जिन महापुरुष
( संत श्री आशारामजी बापू ) पर
आजतक कोई आरोप सिद्ध नहीं हुआ,
🚩जानिए, आखिर कौन हैं
" संत श्री आशारामजी बापू "
💥1). लाखों धर्मांतरित ईसाईयों को
पुनः हिंदू बनाने वाले संत " पूज्य आशारामजी बापू हैं "

💥2).कत्लखाने में जाती हुई
हमारी पूज्यनीय गौमताओं
को बचाकर, उनके लिए सैकड़ों
गौशालाएं खोलनेवाले संत " पूज्य आशारामजी बापू हैं "

💥3). ईसाई मिशनरिओं को खुली
चुनौती देनेवाले संत " पूज्य आशारामजी बापू हैं "

💥4). शिकागो विश्व धर्मपरिषद में
स्वामी विवेकानंदजी के 100 साल बाद
जाके देश का नेतृत्व करते हुए भारत देश
और हिन्दूत्व का परचम लहराने वाले संत " पूज्य आशारामजी बापू हैं "

💥5). विदेशी कंपनियों द्वारा देश को
बचाकर आयुर्वेद का अनुसरण
करने और सिखाने वाले संत " पूज्य आशारामजी बापू हैं "

💥6). "ऋषि प्रसाद" भारत की सबसे ज्यादा
बिकनेवाली मासिक पत्रिका, जिसमे
सनातन धर्म का ज्ञान समाया है,
ऐसी पावन पत्रिका को छपवाने वाले संत " पूज्य आशारामजी बापू हैं "

💥7). लाखों करोड़ों विद्यार्थियों को सारस्वत
मंत्र की दीक्षा देकर, उन्हें तेजस्वी बनाने
वाले संत " पूज्य आशारामजी बापू हैं "

💥8). लाखों करोड़ों लोगों को अधर्म से
धर्म की ओर ले जाने वाले संत " पूज्य आशारामजी बापू हैं "

💥9). 100 से ज्यादा देशों मे आश्रमों
को स्थापित कर हिंदुत्व का
विस्तार करने वाले संत " पूज्य आशारामजी बापू हैं "

💥10). वेलेंटाइन डे का विरोध करके
"मातृ-पितृ पूजन दिवस"
का प्रारम्भ करने वाले संत " पूज्य आशारामजी बापू हैं "

💥11). क्रिसमस डे के दिन क्रिसमस ट्री
के बजाय, तुलसी पूजन दिवस
मनाने का संदेश देनेवाले संत " पूज्य आशारामजी बापू हैं "

💥12). पाकिस्तान, चाईना, अमेरिका
और बहुत सारे देशों में जाकर
सनातन हिंदू धर्म का ध्वज
फहरानेवाले संत " पूज्य आशारामजी बापू हैं "

💥13). बिकाऊ मीडिया को रुपयों के
पैकेज ना देकर, गरीबों में भंडारा
करने वाले संत " पूज्य आशारामजी बापू हैं "

💥14). गरीब इलाकों में
चलचिकित्सालय चलवाकर
निःशुल्क दवाईयाँ उपलब्ध
करवाने वाले संत " पूज्य आशारामजी बापू हैं "

💥15). लाखों लोगों को बुरे व्यसनों से
मुक्त कराने वाले संत " पूज्य आशारामजी बापू हैं "

💥16). युवाओं का सच्चा विकास करने
हेतु, युवा सेवा संघ खोलकर
उन्हें संयमी, साहसी व उद्धयमी
बनाने वाले संत " पूज्य आशारामजी बापू हैं "

💥17). महिलाओं का सर्वांगीण विकास
करने के लिए, महिला उत्थान
मंडल खोलने वाले संत " पूज्य आशारामजी बापू हैं "

💥18). वैदिक शिक्षा पर आधारित
अनेकों गुरुकुल खोलने वाले संत " पूज्य आशारामजी बापू हैं "

💥19). अपने सत्संगों में, सनातन हिंदू
धर्म की महिमा बताने वाले संत " पूज्य आशारामजी बापू हैं "

💥20). पिछले 50 वर्षों से लगातार आदिवासीयों
के बीच मुफ्त में भंडारा करनेवाले मुफ्त
में मकान, कपड़े, अनाज व दक्षिणा बाटनें
वाले संत " पूज्य आशारामजी बापू हैं "

💥21). मुश्किल हालातों में कांची कामकोठी पीठ
के "शंकराचार्य श्री जयेंद्र सरस्वतीजी" का
साथ देने वाले संत " पूज्य आशारामजी बापू हैं "

💥22). मुश्किल हालातों में
स्वामी रामदेवजी, मोरारी बापूजी
एवं अन्य संतों का साथ देने वाले संत " पूज्य आशारामजी बापू हैं "

💥23). मुश्किल हालातों में
*निर्दोष* "साध्वी प्रज्ञासिंघजी ठाकुर" को
जेल में मिलने जाकर, उन्हें सांत्वना देने
वाले संत " पूज्य आशारामजी बापू हैं "

💥24). मुश्किल हालातों में, पूरे देश में चल रहे
नकारात्मक प्रचार के समय भी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, का साथ देने
वाले संत " पूज्य आशारामजी बापू हैं "

💥25). "पूज्य आशारामजी बापू" जिनके सत्संग सुनने के लिये
लाखों की भीड़ उमड़ती है,
वे संत एक अंतरराष्ट्रीय षडयंत्र के शिकार हुए हैं,

जिसमें मुख्य रूप से ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित
भारतीय बिकाऊ मीडिया भी शामिल है !

💥26). बिकाऊ मीडिया द्वारा दिन रात गलत
खबरें दिखाकर बदनाम करने के बावजूद,
जेल मे रहकर, जेल को भी स्वर्ग बनाने वाले संत " पूज्य आशारामजी बापू हैं "

💥27). "पूज्य आशारामजी बापू" के
विश्व में 8 करोड़ से अधिक शिष्य हैं
और इतने घोर कुप्रचार में भी वो अबतक अपने
सतगुरुदेव के प्रति श्रद्धाभाव से टिके हैं !

💥28). हम आपसे ही पूछते हैं !
सच्चे दिलसे ज़रा सोचकर देखिये,
कि 75वर्ष के वृद्ध महान ब्रह्मज्ञानी संत,
क्या गलत कार्य कर सकते हैं.. ??

💥29). जिनके श्रीचरणों में लाखों करोड़ों लोग शीश झुकाते हैं और जो हर समय साधकों से घिरे रहते हैं !

💥30). क्या वे 2000km दूर से किसी भी कन्या को उसके माता पिता के साथ बुलाकर, उसके साथ गलत कर सकते हैं.. ??

💥31). क्या 50 वर्षों से लगातार समाज सेवाएँ और ब्रह्मज्ञान का सत्संग करने वाले 75वर्षीय वृद्ध संत ऐसा कर सकते हैं.. ??

                   

स्वयं विचारें

32). यह पोस्ट इस हिंदुस्तान के निष्क्रिय सज्जनों को दिखाने हेतु बनाया गया है !
जो अपने हिंदुस्तान के महापुरुषों के साथ अन्याय होता देखकर भी, चुप हैं

33). संत श्री आशारामजी बापू निर्दोष हैं और पूज्य बापूजी को
एक सुनियोजित षड्यंत्र के चलते फसाया गया है !

अधिक जानकारी के लिए निकट के
संत श्री आशारामजी आश्रम में संपर्क करें
( हरी ॐ )

34). अगर आप एक सच्चे हिन्दुस्तानी हैं और आपको
इस बात पर गर्व है, तो अब अपनी सक्रियता दिखाएँ

यह पोस्ट हर एक हिन्दुस्तानी तक पहुचाएँ _/\_

***** हिंदुस्तान में जागरुकता लाएँ *****

क्यूंकी जनजागरण लाना है, तो पोस्ट शेयर करना है !!
💥जानिए आखिर क्या है सच्चाई । कितने आरोप लगे उसमे से कितने साबित हुवे ? आखिर क्यों बिकाऊ मीडिया बनती है जज ? देखिये वीडियो  वीडियो देखने के बाद आप खुद ही तय कर लोगे की सच क्या है ।
💻https://youtu.be/2RmhrAxoZ3U


Agar aap ne padh liya hai to comment jarur karna

रविवार, 6 सितंबर 2015

Radha Nam ki mahima

राधा नाम की महिमा

एक व्यक्ति था, एक बार एक संत उसके नगर में आये ! वह उनके दर्शन करने गया और संत से बोला - स्वामी जी ! मेरा एक बेटा है, वो न तो भगवान को मानता है, न ही पूजा-पाठ करता है, जब उससे कहो तो कहता है मै किसी संत को नहीं मानता, अब आप ही उसे समझाइये,स्वामी जी ने कहा - ठीक है, मैं तुम्हारे घर आऊँगा.

एक दिन वे उसके घर गए और उसके बेटे से बोले -बेटा एक बार कहो : राधा, बेटा बोला : मै क्यों कहूँ,स्वामीजी ने बहुत बार कहा, अंत में वह बोला मै ‘राधा’ क्यों कहूँ ! स्वामी जी ने कहा - जब तुम मर जाओ तो मरने पर यमराज से पूँछना कि एक बार राधा नाम लेने की क्या महिमा है, इतना कहकर वे चले गए ! एक दिन वह मर गया : यमराज के पास पहुँच गया, तब उसने पूँछा - आप मुझे बताये कि एक बार राधा नाम लेने की क्या महिमा है?

यमराज ने कहा - मुझे नहीं पता कि क्या महिमा है, शायद इन्द्र को पता होगा, चलो उससे पूछते है ! जब उसने देखा की यमराज तो कुछ ढीले पड़ रहे है, तो बोला- मै ऐसे नहीं जाऊँगा, पालकी मँगाओ, तुरंत पालकी आ गयी, उसने कहार से बोला - आप हटो, यमराज जी आप इसकी जगह लग जाओ ! यमराज लग गए, इंद्र के पास गए !
इंद्र ने पूछा – ये कोई खास है क्या? यमराज जी ने कहा-ये पृथ्वी से आया है और एक बार राधा नाम लेने की क्या महिमा है - पूँछ रहा है ! आप बताइये,
इंद्र ने कहा - महिमा तो बहुत है, पर क्या है - ये नहीं पता, ये तो ब्रह्मा जी ही बता सकते है !
व्यक्ति बोला - तुमभी पालकी में लग जाओ, अब उसकी पालकी में एक ओर यमराज दूसरी ओर इंद्र लग गए और ब्रह्मा जी के पास पहुँचे !

ब्रह्मा जी ने कहा- ये कोई महान व्यक्ति लगता है, जिसे ये पालकी में लेकर आ रहे है ! ब्रह्मा जी ने पूँछा : ये कौन है? तो यमराज जी ने कहा - ये पृथ्वी से आया है और एक बार 'राधा' नाम लेने की क्या महिमा है - पूँछ रहा है ! आप को तो पता ही होगा !

ब्रह्मा जी ने कहा –महिमा तो अनंत है, पर ठीक- ठीक तो मुझे भी नहीं पता, शंकरजी ही बता सकते है ! व्यक्ति ने कहा - तीसरी जगह पालकी में आप लग जाइये, ब्रह्मा जी भी लग गए ! पालकी लेकर शंकरजी के पास गए ! शंकरजी ने कहा ये कोई खास लगता है, जिसकी पालकी को यमराज, इंद्र, ब्रह्मा जी, लेकर आ रहे है, पूँछा तो ब्रह्मा जी ने कहा: ये पृथ्वी से आया है और एक बार राधा-नाम लेने की महिमा पूँछ रहा है ! हमें तो पता नहीं, आप को तो जरुर पता होगा, आप तो समाधी में सदा उनका ही ध्यान करते है

शंकर जी ने कहा - हाँ, पर ठीक प्रकार से तो मुझे भी नहीं पता, विष्णु जी ही बता सकते है ! व्यक्ति ने कहा – आप भी चौथी जगह लग जाइये, अब शंकर जी भी पालकी में लग गए !

अब चारो विष्णुजी के पास गए
और
पूँछा कि एक बार 'राधा-नाम' लेने की क्या महिमा है -
भगवान ने कहा : राधा नाम की यही महिमा है कि इसकी पालकी, आप जैसे देव उठा रहे है, ये अब मेरी गोद में बैठने का अधिकारी हो गए है !
“जय जय श्री राधे”

परम प्रिय श्री राधा-नाम की महिमा का स्वयं श्री कृष्ण ने इस प्रकार गान किया है -

"जिस समय मैं किसी के मुख से ’रा’अक्षर सुन लेता हूँ,उसी समय उसे अपना उत्तम भक्ति-प्रेम प्रदानकर देता हूँ और ’धा’ शब्द का उच्चारण करने पर तो मैं प्रियतमा श्री राधा का नाम सुनने के लोभ से उसके पीछे-पीछे चल देता हूँ !""

ब्रज के रसिक संतश्री किशोरी अली जीने इस भाव को प्रकट किया है :-
"आधौ नाम तारि है राधा
'र' के कहत रोग सब मिटि हैं,
'ध ' के कहत मिटै सब बाधा
राधा राधा नाम की महिमा,
गावत वेद पुराण अगाधा
अलि किशोरी रटौ निरंतर,
वेगहि लग जाय भाव समाधा"🙏🙏🙏💐💐💐🙏🙏🙏

सोमवार, 31 अगस्त 2015

बहुत दिनों तक यह मामला यमराज की फाईल में अटका रहा

एक राजा ब्राह्मणों को
लंगर में भोजन करा रहा
था।
तब पंक्ति के अंत मैं बैठे एक
ब्राम्हण को भोजन
परोसते समय एक चील
अपने पंजे में एक मुर्दा
साँप लेकर राजा के उपर से
गुजरी। और उस मुर्दा साँप
के मुख से कुछ बुंदे जहर की
खाने में गिर गई। किसी
को कुछ पत्ता नहीं चला।
फल स्वरूप वह ब्राह्मण
जहरीला खाना खाते हीं
मर गया। अब जब राजा
को सच का पता चला तो
ब्रम्ह हत्या होने से उसे
बहुत दुख हुआ।
मित्रों ऐसे में अब ऊपर बैठे
यमराज के लिए भी यह
फैसला लेना मुश्किल हो
गया कि इस पाप-कर्म का
फल किसके खाते में
जायेगा ???
राजा... जिसको पता ही
नहीं था कि खाना
जहरीला हो गया है..
या
वह चील... जो जहरीला
साँप लिए राजा के उपर से
गुजरी...
या
वह मुर्दा साँप... जो पहले
से मर चुका था...
दोस्तों बहुत दिनों तक
यह मामला यमराज की
फाईल में अटका रहा।
फिर कुछ समय बाद कुछ
ब्राह्मण राजा से मिलने
उस राज्य मे आए। और
उन्होंने किसी महिला से
महल का रास्ता पूछा...
तो उस महिला ने महल का
रास्ता तो बता दिया,
पर रास्ता बताने के साथ-
साथ ब्राम्हणों से ये भी
कह दिया कि देखो भाई...
"जरा ध्यान रखना, वह
राजा आप जैसे ब्राह्मणों
को खाने में जहर देकर मार
देता है।"
बस मित्रों जैसे ही उस
महिला ने ये शब्द कहे
उसी समय यमराज ने
फैसला ले लिया कि उस
ब्राह्मण की मृत्यु के पाप
का फल इस महिला के खाते
में जाएगा और इसे उस पाप
का फल भुगतना होगा।
यमराज के दूतों ने पूछा
प्रभु ऐसा क्यों ? जबकि
उस ब्राम्हण की हत्या में
उस महिला की कोई
भूमिका भी नही थी।
तब यमराज ने कहा कि
भाई देखो जब कोई
व्यक्ति पाप करता हैं तब
उसे आनंद मिलता हैं। पर
उस ब्राम्हण की हत्या से
न तो राजा को आनंद
मिला न मरे हुए साँप को
आनंद मिला और न ही उस
चील को आनंद मिला... पर
उस पाप-कर्म की घटना
का बुराई करने के भाव से
बखान कर उस महिला को
जरूर आनंद मिला। इसलिये
राजा के उस अनजाने पाप-
कर्म का फल अब इस
महिला के खाते में जायेगा।
बस मित्रों इसी घटना के
तहत आज तक जब भी कोई
व्यक्ति जब किसी दुसरे के
पाप-कर्म का बखान बुरे
भाव से (बुराई) करता हैं,
तब उस व्यक्ति के पापों
का हिस्सा उस बुराई
करने वाले के खाते में भी
डाल दिया जाता हैं।
दोस्तों अक्सर हम जीवन
में सोचते हैं कि जीवन में
ऐसा कोई पाप नही
किया फिर भी जीवन में
इतना कष्ट क्यों आया ?
दोस्तों ये कष्ट और कहीं से
नही बल्कि लोगों की
बुराई करने के कारण उनके
पाप-कर्मो से आया होता
हैं जिनको यमराज बुराई
करते ही हमारे खाते में
ट्रांसफर कर देते हैं।
इसलिये दोस्तों आज से ही
संकल्प कर लो कि किसी के
भी पाप-कर्मों का बखान
बुरे भाव से नही करना,
यानी किसी की भी
बुराई नही करनी हैं।

शुक्रवार, 7 अगस्त 2015

भाग्य से ज्यादा और समय पहले किसी को कुछ नही मिला

एक सेठ जी थे  -
जिनके पास काफी दौलत थी.
सेठ जी ने अपनी बेटी की शादी एक बड़े घर में की थी.
परन्तु बेटी के भाग्य में सुख न होने के कारण उसका पति जुआरी, शराबी निकल गया.
जिससे सब धन समाप्त हो गया.

बेटी की यह हालत देखकर सेठानी जी रोज सेठ जी से कहती कि आप दुनिया की मदद करते हो,
मगर अपनी बेटी परेशानी में होते हुए उसकी मदद क्यों नहीं करते हो?

सेठ जी कहते कि
"जब उनका भाग्य उदय होगा तो अपने आप सब मदद करने को तैयार हो जायेंगे..."

एक दिन सेठ जी घर से बाहर गये थे कि, तभी उनका दामाद घर आ गया.
सास ने दामाद का आदर-सत्कार किया और बेटी की मदद करने का विचार उसके मन में आया कि क्यों न मोतीचूर के लड्डूओं में अर्शफिया रख दी जाये...

यह सोचकर सास ने लड्डूओ के बीच में अर्शफिया दबा कर रख दी और दामाद को टीका लगा कर विदा करते समय पांच किलों शुद्ध देशी घी के लड्डू, जिनमे अर्शफिया थी, दिये...

दामाद लड्डू लेकर घर से चला,
दामाद ने सोचा कि इतना वजन कौन लेकर जाये क्यों न यहीं मिठाई की दुकान पर बेच दिये जायें और दामाद ने वह लड्डुयों का पैकेट मिठाई वाले को बेच दिया और पैसे जेब में डालकर चला गया.

उधर सेठ जी बाहर से आये तो उन्होंने सोचा घर के लिये मिठाई की दुकान से मोतीचूर के लड्डू लेता चलू और सेठ जी ने दुकानदार से लड्डू मांगे...मिठाई वाले ने वही लड्डू का पैकेट सेठ जी को वापिस बेच दिया.

सेठ जी लड्डू लेकर घर आये.. सेठानी ने जब लड्डूओ का वही पैकेट देखा तो सेठानी ने लड्डू फोडकर देखे, अर्शफिया देख कर अपना माथा पीट लिया.
सेठानी ने सेठ जी को दामाद के आने से लेकर जाने तक और लड्डुओं में अर्शफिया छिपाने की बात कह डाली...

सेठ जी बोले कि भाग्यवान मैंनें पहले ही समझाया था कि अभी उनका भाग्य नहीं जागा...
देखा मोहरें ना तो दामाद के भाग्य में थी और न ही मिठाई वाले के भाग्य में...

इसलिये कहते हैं कि भाग्य से
ज्यादा
और...
समय
से पहले न किसी को कुछ मिला है और न मीलेगा!!!

सोमवार, 29 जून 2015

yogi Raj 2017 जगा दिया गोरखपुर को जिसने, देश जगाने वाला है। विजय पताका फहराकर वो, जो यूपी आने वाला है।।

कौन हैं योगी आदित्यनाथ जानिए,

योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश की गोरखपुर से सांसद हैं लोकसभा चुनाव में उन्होंने लगातार पांच बारजीत दर्ज की ...

योगी आदित्यनाथ बीएससी पास हैं 26 साल की उम्र से ही सांसद हैं पांचवीं बार संसद पहुंचे हैं,लेकिन उनकी इस चमत्कारी जीत के पीछे उनका कट्टर हिंदुत्व का एजेंडा हैं ऐसा एजेंडा जिससे उनकी ताकत लगातार बढ़ती गई.

इतनी कि आखिरकार गोरखपुर में जो योगी कहे वही नियम है, वही कानून है.तभी तो उनके समर्थक नारा भी लगाते हैं,'गोरखपुर में रहना है तो योगी-योगी कहना होगा.'1998 में शुरू हुई राजनीतिक पारी योगी आदित्यनाथ का असली नाम है अजय सिंह.वह मूल रूप से उत्तराखंड के रहने वाले हैं. गढ़वाल यूनिवर्सिटी से उन्होंने बीएससी की पढ़ाई की. गोरखनाथ मंदिर के महंत अवैद्यनाथ ने उन्हें दीक्षा देकर योगी बनाया था अवैद्यनाथ ने 1998 में राजनीति से संन्यास लिया और योगी आदित्यनाथ को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया.

यहीं से योगी आदित्यनाथ की राजनीतिक पारी शुरू हुई है.1998 में गोरखपुर से 12वीं लोकसभा का चुनाव जीतकर योगी आदित्यनाथ संसद पहुंचे तो वह सबसे कम उम्र के सांसद थे हिंदूयुवा वाहिनी का गठन राजनीति के मैदान में आते ही योगी आदित्यनाथ ने सियासत की दूसरी डगर भी पकड़ ली उन्होंने हिंदू युवा वाहिनी का गठन किया और धर्म परिवर्तन के खिलाफ मुहिम छेड़ दी कट्टर हिंदुत्व की राह पर चलते हुए उन्होंने कई बार विवादित बयान दिए.

योगी विवादों में बने रहे, लेकिन उनकी ताकत लगातार बढ़ती गई. 2007 में गोरखपुर में दंगे हुए तो योगी आदित्यनाथ को मुख्य आरोपी बनाया गया. गिरफ्तारी हुई और इस पर कोहराम भी मचा.योगी के खिलाफ कई अपराधिक मुकदमे भी दर्ज हुए. अब तक योगी आदित्यनाथ की हैसियत ऐसी बन गई कि जहां वो खड़े होते, वहाँ सभा शुरू हो जाती.वो जो बोल देते, उनके समर्थकों के लिए वो कानून हो जाता. यही नहीं, होली और दीपावली जैसे त्योहार कब मनाया जाए, इसके लिए भी योगी आदित्यनाथ गोरखनाथ मंदिर से फरमान जारी करते हैं इसलिए गोरखपुर में हिन्दूओं के त्योहार एक दिन बाद मनाए जाते हैं.

उर्दू बन गई हिंदी, मियां बदलकर मायायोगी आदित्यनाथ के तौर-तरीकों का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने गोरखपुर के कई ऐतिहासिक मुहल्लों के नाम बदलवा दिए. इसके तहत उर्दू बाजार हिंदी बाजार बन गया.अली नगर आर्यनगर हो गया. मियां बाजारमाया बाजार हो गया. इतना ही नहीं,योगी आदित्यनाथ तो आजमगढ़ का नाम भी बदलवाना चाहते हैं.इसके पीछे आदित्यनाथ का तर्क है कि देश की पहचान हिंदी से है उर्दू से नहीं, आर्य से है अली से नहीं. गोरखपुर और आसपास के इलाके में योगी आदित्यनाथ और उनकी हिंदूयुवा वाहिनी की तूती बोलती है. बीजेपी में भी उनकी जबरदस्त धाक है.इसका प्रमाण यह है कि पिछले लोकसभा चुनावों में प्रचार के लिए योगी आदित्यनाथ को बीजेपी ने हेलीकॉप्टर मुहैया करवाया था


जगा दिया गोरखपुर को जिसने, देश जगाने वाला है।
विजय पताका फहराकर वो, जो यूपी आने वाला है।।
शंखनाद हो गया शुरू, अब तो रण होने वाला है।
आजसुना है अपने कानो से, की योगी आने वाला है।।
मत डरो अंधियारो से, अब भोर होने वाला है।गर्जना
सुन पा रहा हु, कोई शेर आने वाला है।।जल रहा है पुरा
भारत, अब शासन हिलने वाला है।सुन लो सब कान
खोल के, अब योगी आने वाला है ।

¤हिन्दू युवा वाहिनी¤
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रविवार, 14 जून 2015

Sanatan Hindu dharm duniya ka pehla dharm hai iske parmad har jagah mil jayenge aaj hum apko ek gufa ke bare me bata rahe hai jaha ye bhi pata chalta hai ki duniya kab samapt hogi

उत्तराखंड के  गंगोलीहाट कस्बे में
बसा है एक रहस्यमयी गुफा। इस गुफा से जुड़ी ऐसी
मान्यताएं जिनका उल्लेख कई पुराणों में भी
किया गया है। इस गुफा के बारे में बताया जाता
है कि इसमें दुनिया के समाप्त होने का भी रहस्य
छुपा हुआ है।
इस गुफा को पाताल भुवनेश्वर के नाम से जाना
जाता है। स्कंद पुराण में इस गुफा के विषय में कहा
गया है कि इसमें भगवान शिव का निवास है।
सभी देवी-देवता इस गुफा में आकर भगवान शिव
की पूजा करते हैं। गुफा के अंदर जाने पर आपको
इसका कारण भी समझ में आने लगेगा।
गुफा के संकरे रास्ते से जमीन के अंदर आठ से दस
फीट नीचे जाने पर गुफा की दीवारों पर कई ऐसी
आकृतियां नजर आने लगती हैं जिसे देखकर आप
हैरान रह जाएंगे। यह आकृति एक हंस की है जिसके
बारे में यह माना जाता है कि यह ब्रह्मा जी का
हंस है।

गुफा के अंदर एक हवन कुंड बना है। इस कुंड के बारे में कहा
जाता है कि इसमें जनमेजय ने नाग यज्ञ किया था
जिसमें सभी सांप भष्म हो गए थे। केवल तक्षक नाग
ही बच गया जिसने राजा परीक्षित को काटा
था। कुंड के पास एक सांप की आकृति जिसे तक्षक
नाग कहा जाता है।
पाताल भुवनेश्वर गुफा में एक साथ दर्शन कीजिए
चार धामों के। ऐसी मान्यता है कि इस गुफा में
एक साथ केदारनाथ, बद्रीनाथ, अमरनाथ के दर्शन
होते हैं। इसे दुर्लभ दर्शन माना जाता है जो
किसी अन्यतीर्थ में संभव नहीं होता।
गुफा के अंदर आपको 33 कोटि देवी देवताओं
की आकृति के अलावा शेषनाग का फन नजर आएगा।
इस रहस्यमयी गुफा के बारे में कहा जाता है कि
पाण्डवों ने इस गुफा के पास तपस्या की
थी। काफी समय तक लोगों
की नजरों से दूर रहे इस गुफा की
खोज आदिशंकराचार्य ने की थी।
गुफा के अंदर बना है गणेश जी का सिर जो इस
कथा की याद दिलाता है कि भगवान शिव ने गणेश
जी का सिर काट दिया था।

इस गुफा में चार खंभा है जो चार युगों अर्थात सतयुग, त्रेतायुग,
द्वापरयुग तथा कलियुग को दर्शाते हैं। इनमें पहले
तीन आकारों में कोई परिवर्तन नही
होता। जबकि कलियुग का खंभा लम्बाई में अधिक है और इसके
ऊपर छत से एक पिंड नीचे लटक रहा है, जिसमें
एक गहरा रहस्य छुपा है।

यहां के पुजारी का कहना है कि 7 करोड़ वर्षों में
यह पिंड 1 ईंच बढ़ता है। मान्यता है कि जिस दिन यह पिंड
कलियुग के खंभे से मिल जाएगा उस दिन कलियुग समाप्त होगा
और महाप्रलय आ जाएगा।

मंगलवार, 2 जून 2015

घरों में चित्र लगाने से घर सुंदर दिखता है,बहुत कम ही लोग जानते हैं कि घर में लगाए गए चित्र का प्रभाव वहां रहने वाले लोगों के जीवन पर भी पड़ता है। वास्तु शास्त्र

घरों में तस्वीर या चित्र लगाने से घर सुंदर दिखता है, परंतु बहुत कम ही लोग यह जानते हैं कि घर में लगाए गए चित्र का प्रभाव वहां रहने वाले लोगों के जीवन पर भी पड़ता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में श्रृंगार, हास्य व शांत रस उत्पन्न करने वाली तस्वीरें ही लगाई जानी चाहिए।
घर के अन्दर और बाहर सुन्दर चित्र , पेंटिंग , बेल- बूटे , नक्काशी लगाने से ना सिर्फ सुन्दरता बढती है , वास्तु दोष भी दूर होते है।

1- फल-फूल व हंसते हुए बच्चों की तस्वीरें जीवन शक्ति का प्रतीक है। उन्हें पूर्वी व उत्तरी दीवारों पर लगाना शुभ होता है। इनसे जीवन में खुशहाली आती है।

2- लक्ष्मी व कुबेर की तस्वीरें भी उत्तर दिशा में लगानी चाहिए। ऐसा करने से धन लाभ होने की संभावना अधिक होती है।

3- यदि आप पर्वत आदि प्राकृतिक दृश्यों की तस्वीरें लगाना चाहते हैं तो दक्षिण या पश्चिम दिशा में लगाएं।

4- नदियों-झरनों आदि की तस्वीरें उत्तरी व पूर्वी दिशा में लगाना शुभ होता है।

5- वसुदेव द्वारा बाढग़्रस्त यमुना से श्रीकृष्ण को टोकरी में ले जाने वाली तस्वीर समस्याओं से उबरने की प्रेरणा देती है। इसे हॉल में लगाना चाहिए।
युद्ध प्रसंग, रामायण या महाभारत के युद्ध के चित्र, क्रोध, वैराग्य, डरावना, वीभत्स, दुख की भावना वाला, करुण रस से ओतप्रोत स्त्री, रोता बच्चा, अकाल, सूखे पेड़ कोई भी चित्र घर में न लगायें।

घर में दक्षिण दीवार पर हनुमान जी का लाल रंग का चित्र लगाएं। ऐसा करने से अगर मंगल आपका अशुभ है तो वो शुभ परिणाम देने लगेगा। हनुमान जी का आशीर्वाद आपको मिलने लगेगा। साथ ही पूरे परिवार का स्वास्थय अच्छा रहेगा।

घर का उत्तर पूर्व कोना (इशान कोण) स्वच्छ रखें व वंहा बहते पानी का चित्र लगायें | (ध्यान रहे इस चित्र में पहाड़/पर्वत न हो )
अपनी तस्वीर उत्तर या पूर्व दिशा मैं लगायें

उत्तर क्षेत्र की दीवार पर हरियाली या हरे चहकते हुए पक्षियों (तोते की तस्वीर) का शुभ चित्र लगाएं। ऐसा करने से परिवार के लोगों की एकाग्रता बनेगी साथ ही बुध ग्रह के शुभ परिणाम मिलेंगे। उत्तर दिशा बुध की होती है।

लक्ष्मी व कुबेर की तस्वीरें भी उत्तर दिशा में लगानी चाहिए। ऐसा करने से धन लाभ होने की संभावना है।

घर में जुडवां बत्तख व हंस के चित्र लगाना लगाना श्रेष्ठ रहता है। ऐसा करने से समृद्धि आती है।

घर की तिजोरी के पल्ले पर बैठी हुई लक्ष्मीजी की तस्वीर जिसमें दो हाथी सूंड उठाए नजर आते हैं, लगाना बड़ा शुभ होता है। तिजोरी वाले कमरे का रंग क्रीम या ऑफ व्हाइट रखना चाहिए।

घर में नाचते हुए गणेश की तस्वीर लगाना अति शुभ होता है।

बच्चाा जिस तरफ मुंह करके पढता हो, उस दीवार पर मां सरस्वती का चित्र लगाएं। पढाई में रूचि जागृत होगी।

बच्चों के उत्तर-पूर्व दीवार में लाल पट्टी के चायनीज बच्चों की युगल फोटों लगाएं। ऎसा करने से घर में खुशियां आएंगी और आपके बच्चो का करियर अच्छा बनेगा। इन उपायों को अपनाकर आप अपने बच्चे को एक अच्छा करियर दे सकते हैं और जीवन में सफल बना सकते हैं।

अध्ययन कक्ष में मोर, वीणा, पुस्तक, कलम, हंस, मछली आदि के चित्र लगाने चाहिए।

बच्चों के शयन कक्ष में हरे फलदार वृक्षों के चित्र, आकाश, बादल, चंद्रमा अदि तथा समुद्र तल की शुभ आकृति वाले चित्र लगाने चाहिए।

फल-फूल व हंसते हुए बच्चों की तस्वीरें जीवन शक्ति का प्रतीक है। उन्हें पूर्वी व उत्तरी दीवारों पर लगाएं।

ऐसे नवदम्पत्ति जो संतान सुख पाना चाहते हैं वे श्रीकृष्ण का बाल रूप दर्शाने वाली तस्वीर अपने बेडरूम में लगाएं।

यदि आप अपने वैवाहिक रिश्ते को अधिक मजबुत और प्रसन्नता से भरपूर बनाना चाहते हैं तो अपने बेडरुम में नाचते हुए मोर का चित्र लगाएं।

यूं तो पति-पत्नी के कमरे में पूजा स्थल बनवाना या देवी-देवताओं की तस्वीर लगाना वास्तुशास्त्र में निषिद्ध है फिर भी राधा-कृष्ण अथवा रासलीला की तस्वीर बेडरूम में लगा सकते हैं। इसके साथ ही बांसुरी, शंख, हिमालय आदि के चित्र दाम्पत्य सुख में वृद्धि के कारक होते हैं।

कैरियर में सफलता प्राप्ति के लिए उत्तर दिशा में जंपिंग फिश, डॉल्फिन या मछालियों के जोड़े का प्रतीक चिन्ह लगाए जाने चाहिए। इससे न केवल बेहतर कैरियर की ही प्राप्ति होती है बल्कि व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता भी बढ़ती है।

अपने शयन कक्ष की पूर्वी दीवार पर उदय होते हुए सूर्य की ओर पंक्तिबद्ध उड़ते हुए शुभ उर्जा वाले पक्षियों के चित्र लगाएं। निराश, आलस से परिपूर्ण, अकर्मण्य, आत्मविश्वास में कमी अनुभव करने वाले व्यक्तियों के लिए यह विशेष प्रभावशाली है।

अगर किसी का मन बहुत ज्यादा अशांत रहता है तो अपने घर के उत्तर-पूर्व में ऐसे बगुले का चित्र लगाना चाहिए जो ध्यान मुद्रा मैं हो।

बुधवार, 27 मई 2015

bharat ki bahadur beti)कराची एयरपोर्ट की घटना एक विमान में 23 साल की अकेली पतली-दुबली भारतीय लड़की 17 घंटे तक आतंकवादियों को मात देती रही

कराची एयरपोर्ट की घटना
एक विमान में 23 साल की अकेली
पतली-दुबली भारतीय
लड़की 17 घंटे तक आतंकवादियों को मात
देती रही। उसने करीब
380 लोगों को बचा लिया, लेकिन अंत में कुछ बच्चों को विमान से
बाहर निकालते वक्त एक दहशतगर्द ने उसके
सीने में गोली उतार दी।
अमेरिकी एयरवेज का विमान पैन एम73,
करीब� 380 यात्री लेकर पाकिस्तान
के करांची हवाई अड्डे पर पायलट का इंतजार कर
रहा था। अचानक उसमें चार हथियारबंद आतंकवादी
घुस गए और सभी यात्रियों को गन प्वांइट पर ले
लिया।
आतंकियों ने पाक सरकार से पायलट भेजने की मांग
की, ताकि वो विमान को अपने मन मुताबिक जगह पर
ले जा सकें, पाक सरकार ने मना कर दिया।
इससे भन्नाए आतंकियों ने विमान में बैठे अमेरिकी
यात्रियों को मारने का फैसला कर लिया। वो अमेरिका के जरिए पाक
सरकार पर दबाव बनाने की ताक में थे। लेकिन उन्हें
पता था इसी विमान की एक अटेंडेंट एक
भारतीय विरांगना है। जिससे वो टकरा
नहीं पाएंगे।
एक अमेरिकी को नहीं मरने दिया
आतंकियों ने गलती से उसी
वीर भारतीय लड़की को
बुला लिया और विमान में बैठे सभी यात्रियों के पासपोर्ट
इकट्ठा करने को कहा। ताकि वो अमेरिकी नागरिकों को
चुन-चुन कर मार सकें।
लेकिन भारतीय वीरांगना ने दिन में
आतंकियों की आंखों में धूल झोंक दिया। विमान में
अमेरिकी यात्री बैठे हुए थे, पर एक
भी आतंकियों के हवाले नहीं हुए।
लड़की ने सबके पासपोर्ट छुपा लिए। यह देख
आतंकी तिलमिला उठे। उन्होंने गोराचिट्टा दिखने वाले
एक अंग्रेज को खींचकर वीमाने के गेट
पर ले आए और गोली मारने की
तैयारी करने लगे।
लेकिन यहां भी लड़की ने अपने
कार्यकुशलता का परिचय दिया और आतंकियों का ऐसा ‌दिमाग घूमाया
कि उन्होंने उस ब्रिटिश को छोड़ दिया। आतंकी और
पाक सरकार में लगातार खींचातानी
चलती रही। इधर 380 डरे हुए लोगों
में एक अकेली भारतीय
लड़की डंटी रही।

खत्म हो गया विमान का ईंधन, दगने लगीं गोलियां
लड़की ने 16 घंटे हिम्मत बांधे रखी।
किसी भी यात्री को आंच
नहीं आने दी। लेकिन उसे अचानक
खयाल आया कि अब विमान का ईंधन खत्म होने वाला है। ऐसा
हुआ तो विमान में अंधेरा छा जाएगा और ‌भागदौड़ मच
जाएगी। जिसमें बेतहाशा खून बहेगा।
लड़की ने फिर अपने भारतीय होने
की पहचान दी। उसने तत्काल
आतंकियों को खाने का पैकेट दिया और यात्रियों को
आपातकालीन खिड़कियों के बारे में तेजी
समझाया। तभी विमान का ईंधन खत्म हो गया। चारों
तरफ अंधेरा छा गया। प्लान के मुताबिक लड़की ने
यात्रियों को प्लेन से नीचे कूदाना शुरू कर दिया। लेकिन
इसी बीच दहशतगर्दों ने गोलियां दागना
शुरू कर दी।
लेकिन उस बहादुर लड़की ने एक शख्स को
नहीं मरने दिया। जल्दबाजी और
बेसुधगी के चलते कुछ घायल जरूर हो गए।
दूसरी तरफ मौका देखकर पाक कमांडो
भी विमान पहुंच गए।

और उस बहादुर लड़की के सीने में
उतर गई गोली
धुआंधार गोलीबारी के बीच
एक तरफ सारे लोग भागने में लगे थे, दूसरी तरफ वो
भारत की बेटी दुर्दांत आतंकियों को
तरह तरह से छकाने में लगी थी।
उसने आतंकियों को उलझाए रखा ताकि वो किसी को
नुकसान न पहुंचा सकें। और वो कामयाब भी
रही। सबके निकल जाने के बाद अंत में जब वो
विमान से निकलने लगी, तो अचानक उसे कुछ बच्चों
के रोने की आवाज सुनाई दी।
वो भारत की बेटी मां तो
नहीं बनी थी, लेकिन वो
रोते हुए बच्चों को छोड़कर भागना ठीक
नहीं समझी। वो वापस विमान में आ
गई और बच्चों को ढूंढ निकाला। जैसे ही उन्हें
लेकर एक आपातकालीन खिड़की ओर
बढ़ी एक आतंकी उसके सामने आ
खड़ा हुआ।
उसने बच्चों को खिड़की से नीचे धकेल
दिया और आतंकी सारी गोलियां अपने
सीने में खा गई। 17 घंटे तक चले इस खून खराबे
में अंततः 20 लोगों की जान चली गई। वो
भारतीय वीरांगना भी
शहीद हो गई।

नीरजा भनोट है उस भारत की
बेटी का नाम
पाक की धरती पर विश्वभर के लोगों
की जान की रक्षा करने
वाली उस भारत की बेटी का
नाम है नीरजा भनोट। घटना के दो दिन बाद वो अपना
23वां जन्मदिन मनाने वाली थी। लेकिन
सपने अधूरे रह गए।
2004 में इस बात का पता चला कि 5 सितंबर, 1986 में हुई
उस भयावह घटना के पीछे लीबिया के
चरमपंथियों का हाथ था। इस पूरे मामले को और भारत
की बेटी नीरजा के बलिदान
को याद कराने के लिए रूपहले पर्दे पर 'नीरजा
भनोट' आ रही है।
नीरजा भनोट के किरदार में सोनम कपूर हैं। लास्ट
नाइट इसकी शूटिंग शुरुआत की गई।
मुंबई एयरपोर्ट पर पहली शूटिंग हुई। डायरेक्टर
राम माधवानी का कहना है कि इंडस्ट्री
के कई बड़े नामों समेत 200 कलाकार फिल्म बनाने में सहयोग
कर रहे हैं। इसकी बानगी मुहुर्त
शॉट पर आमिर खान की मौजूदगी ने
दी।
नीरजा को भारत ने सर्वोच्च नागरिक सम्मान अशोक
चक्र दिया था, पाक ने तमगा-ए-इन्सानियत। भारत ने उनके नाम
पर डाक टिकट भी जारी किया ॥।।।॥।।॥
इस भारतीय बेटी ने साबित कर दिया हिन्दुस्तानी कितने बहादुर होते है।


शुक्रवार, 22 मई 2015

झूठे सीरियल कहते हैं की जोधा बाई अकबर की पत्नि थी जब की हकीकत यह है की जोधा बाई का पूरे इतिहास में कहीं कोइ नाम नहीं है,

2- तुजुक-ए-जहांगिरी /Tuzuk-E-Jahangiri
(जहांगीर की आत्मकथा /BIOGRAPHY of Jahangir)
में भी जोधा का कहीं कोई उल्लेख नही है
(There is no any name of JODHA Bai Found in
Tujuk -E- Jahangiri ) जब की एतिहासिक दावे और
झूठे सीरियल यह कहते हैं की जोधा बाई अकबर
की पत्नि व जहांगीर की माँ थी जब की हकीकत
यह है की जोधा बाई का पूरे इतिहास में कहीं
कोइ नाम नहीं है, जोधा का असली नाम {मरियम-
उल-जमानी} ( Mariamuz-Zamani ) था जो कि
आमेर के राजा भारमल के विवाह के दहेज में
आई परसीयन दासी की पुत्री थी उसका लालन
पालन राजपुताना में हुआथा इसलिए वह
राजपूती रीती रिवाजों को भली भाँती
जान्ती थी और राजपूतों में उसे हीरा
कुँवरनी (हरका) कहते थे, यह राजा भारमल की
कूटनीतिक चाल थी, राजा भारमल जान्तेथे की
अकबर की सेनाजंसंख्या में उनकीसेना से
बड़ी है तोराजा भारमल ने हवसी अकबर बेवकूफ
बनाकर उस्से संधी करना ठीक समझा , इससे
पूर्व में अकबर ने एक बार राजा भारमल की
पुत्री से विवाह करने का प्रस्ताव रखा था
जिस पर भारमल ने कड़े शब्दों में क्रोधित
होकर प्रस्ताव ठुकरा दिया था , परंतु बाद में
राजा के दिमाग में युक्ती सूझी , उन्होने
अकबर के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और
परसियन दासी को हरका बाइ बनाकर उसका
विवाह रचा दिया , क्योकी राजा भारमल ने
उसका कन्यादान किया था इसलिये वह राजा
भारमल की धर्म पुत्री थी लेकिन वह
कचछ्वाहाराजकुमारी नही थी ।। उन्होंने यह
प्रस्ताव को एक AGREEMENT की तरहया
राजपूती भाषा में कहें तो हल्दी-चन्दन
किया था
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Hardik Singh Negi
अरब में बहुत सी किताबों में लिखा है written
in parsi ( “ ﻭﻧﺤﻦ ﻓﻲ ﺷﻚ ﺣﻮﻝ ﺃﻛﺒﺮ ﺃﻭ ﺟﻌﻞ ﺍﻟﺰﻭﺍﺝ
ﺭﺍﺟﺒﻮﺕ ﺍﻷﻣﻴﺮﺓ ﻓﻲ ﻫﻨﺪﻭﺳﺘﺎﻥ ﺁﺭﻳﺎﺱ ﻛﺬﺑﺔ ﻟﻤﺠﻠﺲ ”)
हम यकीन नहीं करते इस निकाह पर हमें संदेह है
।। 4- ईरान के मल्लिक नेशनल संग्रहालय एन्ड
लाइब्रेरी में रखी किताबों में इन्डियन
मुघलों का विवाह एक परसियन दासी से करवाए
जाने की बात लिखी है ।। 5- अकबर-ए-महुरियत
में यह साफ-साफ लिखा है कि (written in
persian “ ﮨﻢ ﺭﺍﺟﭙﻮﺕﺷﮩﺰﺍﺩﯼ ﯾﺎ ﺍﮐﺒﺮ ﮐﮯ ﺑﺎﺭﮮ ﻣﯿﮟ ﺷﮏ
ﻣﯿﮟ ﮨﯿﮟ ” (we dont have trust in this Rajput
marriagebecause at the time of mariage there was
not even a single tear in any ones eye even then
the Hindus God Bharai Rasam was also not
Happened ) हमें इस हिन्दू निकाह पर संदेह है
क्यौकी निकाह के वक्त राजभवन में किसी की
आखों में आँसू नही थे और ना ही हिन्दू गोद
भरई की रस्म हुई थी ।। 6- सिक्ख धर्म के गुरू
अर्जुन और गुरू गोविन्द सिंहने इस विवाह के
समययह बात स्वीकारी थी कि (written in Punjabi
font - “ਰਾਜਪੁਤਾਨਾ ਆਬ ਤਲਵਾਰੋ ਓਰ ਦਿਮਾਗ ਦੋਨੋ ਸੇ ਕਾਮ ਲੇਨੇ ਲਾਗਹ ਗਯਾ ਹੈ “ ) कि
क्षत्रीय , ने अब तलवारों और बुद्धीदोनो का
इस्तेमाल करना सीख लिया है , मत्लब
राजपुताना अब तलवारों के साथ-साथ बुद्धी
का भी काम लेने लगा है ।।( At the time of this
fake mariage the Guru of Sikh Religion Arjun Dev
and Guru Govind Singh also admited that now
Kshatriya Rajputs have learned to use the swords
with brain also !! ) ै7- 17वी सदी में जब परसि
भारत भ्रमन के लिये आये तब उन्होंने अपनी
रचना (Book) परसी तित्ता/PersiTitta में यह
लिखा है की यह भारतीय राजा एक परसियन
वैश्या को सही हरम में भेज रहा है , अत: हमारे
देव (अहुरा मझदा) इस राजा को स्वर्ग दें ( In
17 th centuary when the Persian came to India So
they wrote in there book (Persi Titta) that This
Indian King is sending a Persian prostitude to her
right And deservable place and May our God
(Ahura Mazda) give Heaven to this Indian King . 8-
हमारे इतिहास में राव और भट्ट होते हैं , जो
हमारा ईतिहास लिखते हैं!! उन्होंने साफ साफ
लिखा है की गढ़आमेर आयी तुरकान फौज , ले
ग्याली पसवान कुमारी ,राण राज्या राजपूता
लेली इतिहासा पहलीबार ले बिन लड़िया जीत
(1563 AD )। मत्लब आमेर किले में मुघल फौज
आती है और एक दासी की पुत्री को ब्याह कर
ले जाती है, हे रण के लिये पैदा हुए राजपूतों
तुमने इतिहास में ले ली बिना लड़े पहली जीत
1563 AD (In our Rajputana History our History
writers were Raos and Bhatts They clearly wrote
Garh Amer ayi Turkaan Fauj Le gyali Paswaan
Kumari , Ran Rajya Rajputa leli itihasa Pehlibar le
bin ladiya jeet !! This means that when Mughal
army came at Amer fort their Emperor got married
with persian female servant of Rajputs The Rajputs
who born for war And in history this was the first
time that the Rajput has got a victory without any
violence 9-यह वो अकबर महान था जिसके समय मे
लाखों राजपुतानी अपनी इज्जत बचाने के
लिये जोहर की आगमें कूद गई ( अगनी कुन्ड
में ) कूद गई ताकी मुघल सेना उन्हे छू भी ना
सके, क्या उनका बलिदानव्यर्थ हे जो हम
उसजलाल उद्दीन मोहोम्मद अकबर को अकबर महान
कहते ह

गुरुवार, 21 मई 2015

यदि भक्ति में भक्त कोई सेवा भूल भी जाता है तो भगवान अपनी तरफ से पूरा कर लेते हैं।

🌸💐🌸💐🌸💐🌸💐🌸💐🌸
"जय" बोलने से मन को शांति मिलती हैं...
"श्री" बोलने से शक्ति मिलती हैं...
"राधे" बोलने से पापो से मुक्ति मिलती हैं...
और निरंतर ""जय श्री राधे"" बोलने से
भक्ति मिलती हैं...
और भक्ति से क्या मिलता हैं जानते
हो आप.???
भक्ति से मेरे कन्हैंया मिलते हैं.......
तो प्यार से बोलो """जय श्री  राधे""""🙌🙌
जय जय श्री राधे श्याम 🙌🙌
🌸💐🌸💐🌸💐🌸💐🌸💐🌸
ऐ कन्हैया
!!..सिर्फ दो ही वक़्त पर आपका साथ चाहिए,
एक तो अभी और एक हमेशा के लिए..!!
!!..!!..........प्रेम से कहिये श्री राधे.........!!..!!
👌जब आप मंदिर नहीं जा पाए तो
यह मत कहो कि वक्त नहीं मिला..!

बल्कि यह सोचो कि...
ऐसा कौन सा काम किया, जिसकी वजह से..
भगवान ने तुम्हें आज
अपने सामने खड़ा करना भी पसंद नहीं किया.
🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹
🍃💘ए "साॅवरिया" हीचकीया दीलाकर ये कैसी उलझन बढा रहे हो...😊आंखे बंद है फिर भी नजर आरहेहो. 😊.बस इतना बता दो ए कन्हैया.....हमें याद कर रहे हो या अपनी याद दिला रहे हो...💞🙏🙏🙏
🎲 मिश्री से मीठे है
           कृष्ण के बोल
      💰 कोई कैसे लगाये
           उनका मोल
      💎 हीरे से ज्यादा है
         कृष्ण अनमोल
       📯 अब तो
          जय श्री कृष्ण
                 बोल
      📼📼📼📼📼
    ♨


🔫: 🌞🙏(:-बहुत समय पहले की बात है वृन्दावन में श्रीबांके
बिहारी जी के मंदिर में रोज पुजारी जी बड़े भाव से सेवा
करते थे। वे रोज बिहारी जी की आरती करते , भोग
लगाते और उन्हें शयन कराते और रोज चार लड्डू
भगवान के बिस्तर के पास रख देते थे। उनका यह भाव
था कि बिहारी जी को यदि रात में भूख लगेगी तो वे उठ
कर खा लेंगे। और जब वे सुबह मंदिर के पट खोलते थे
तो भगवान के बिस्तर पर प्रसाद बिखरा मिलता था।
इसी भाव से वे रोज ऐसा करते थे।
एक दिन बिहारी जी को शयन कराने के बाद वे चार
लड्डू रखना भूल गए। उन्होंने पट बंद किए और चले
गए। रात में करीब एक-दो बजे , जिस दुकान से वे बूंदी
के लड्डू आते थे , उन बाबा की दुकान खुली थी। वे घर
जाने ही वाले थे तभी एक छोटा सा बालक आया और
बोला बाबा मुझे बूंदी के लड्डू चाहिए।
बाबा ने कहा - लाला लड्डू तो सारे ख़त्म हो गए। अब
तो मैं दुकान बंद करने जा रहा हूँ। वह बोला आप अंदर
जाकर देखो आपके पास चार लड्डू रखे हैं। उसके हठ
करने पर बाबा ने अंदर जाकर देखा तो उन्हें चार लड्डू
मिल गए क्यों कि वे आज मंदिर नहीं गए थे। बाबा ने
कहा - पैसे दो।
बालक ने कहा - मेरे पास पैसे तो नहीं हैं और तुरंत
अपने हाथ से सोने का कंगन उतारा और बाबा को देने
लगे। तो बाबा ने कहा - लाला पैसे नहीं हैं तो रहने दो ,
कल अपने बाबा से कह देना , मैं उनसे ले लूँगा। पर वह
बालक नहीं माना और कंगन दुकान में फैंक कर भाग
गया। सुबह जब पुजारी जी ने पट खोला तो उन्होंने देखा
कि बिहारी जी के हाथ में कंगन नहीं है। यदि चोर भी
चुराता तो केवल कंगन ही क्यों चुराता। थोड़ी देर बाद
ये बात सारे मंदिर में फ़ैल गई।
जब उस दुकान वाले को पता चला तो उसे रात की बात
याद आई। उसने अपनी दुकान में कंगन ढूंढा और पुजारी
जी को दिखाया और सारी बात सुनाई। तब पुजारी जी
को याद आया कि रात में , मैं लड्डू रखना ही भूल गया
था। इसलिए बिहारी जी स्वयं लड्डू लेने गए थे।
🌿यदि भक्ति में भक्त कोई सेवा भूल भी जाता है तो
भगवान अपनी तरफ से पूरा कर लेते हैं।
🌞🙏(नमो नारायण) 🌞🙏
🌞🙏(अपने अाराध्य का दास यति)🌞🙏

रविवार, 17 मई 2015

भारत में sunday की छुट्टी का कारण

भारत में sunday की छुट्टी का कारण
हमारे ज्यादातर लोग sunday
की छुट्टी का दिन enjoy करने
में लगाते है।
उन्हें लगता है, की हम इस sunday
की छुट्टी के हक़दार है।
क्या हमें ये बात का पता है,
की sunday के दिन हमें
छुट्टी क्यों मिली? और ये
छुट्टी किस
व्यक्ति ने हमें
दिलाई? और इसके पीछे उस महान
व्यक्ति का क्या मकसद
था? क्या है इसका इतिहास?
साथियों, जिस व्यक्ति की वजह से हमें
ये छुट्टी हासिल
हुयी है, उस महापुरुष का नाम है
"नारायण मेघाजी लोखंडे".
नारायण मेघाजी लोखंडे ये जोतीराव
फुलेजी के सत्यशोधक
आन्दोलन के कार्यकर्ता थे। और
कामगार नेता भी थे।
अंग्रेजो के समय में हफ्ते के सातो दिन
मजदूरो को काम
करना पड़ता था। लेकिन नारायण
मेघाजी लोखंडे जी का ये
मानना था की,
हफ्ते में सात दिन
हम अपने परिवार के लिए काम करते है।
लेकिन जिस समाज
की बदौलत हमें नौकरिया मिली है, उस
समाज
की समस्या छुड़ाने के लिए हमें एक दिन
छुट्टी मिलनी चाहिए।
उसके लिए उन्होंने अंग्रेजो के सामने
1881 में प्रस्ताव रखा।
लेकिन अंग्रेज ये प्रस्ताव मानने के लिए
तयार नहीं थे। इसलिए
आख़िरकार नारायण
मेघाजी लोखंडे जी को इस sunday
की छुट्टी के लिए 1881 में आन्दोलन
करना पड़ा। ये आन्दोलन
दिन-ब-दिन बढ़ते गया। लगभग 8 साल
ये आन्दोलन चला।
आखिरकार 1889 में
अंग्रेजो को sunday
की छुट्टी का ऐलान
करना पड़ा।
ये है इतिहास।
क्या हम इसके बारे में जानते है? अनपढ़
लोग छोड़ो लेकिन
क्या पढ़े लिखे लोग भी इस बात
को जानते है? जहा तक
हमारी जानकारी है, पढ़े लिखे लोग
भी इस बात
को नहीं जानते। अगर
जानकारी होती तो sunday के दिन
enjoy नहीं करते....समाज का काम
करते....और अगर समाज
का काम ईमानदारी से करते तो समाज में
भुखमरी,
बेरोजगारी, बलात्कार, गरीबी,
लाचारी ये
समस्या नहीं होती।
साथियों, इस sunday की छुट्टीपर
हमारा हक़ नहीं है, इसपर
"समाज" का हक़ है।
कोई बात नहीं, आज तक हमें ये मालूम
नहीं था लेकिन अगर आज
हमें मालूम हुआ है तो आजसेही sunday
का ये दिन हम  "mission day" के रूप में मनायेंगे।

गुरुवार, 14 मई 2015

Ganga jal kabhi kharab nahi hoti

आइए समझते हैं गंगा जल की कुछ खासियत को गंगाजल कभी खराब क्यों नहीं होता ?
हिमालय की कोख गंगोत्री से निकली गंगा (भागीरथी), हरिद्वार (देवप्रयाग) में अलकनंदा से मिलती है। यहाँ तक आते-आते इसमें कुछ चट्टानें घुलती जाती हैं जिससे इसके जल में ऐसी क्षमता पैदा हो जाती है जो पानी को सड़ने नहीं देती। हर नदी के जल की अपनी जैविक संरचना होती है, जिसमें वह ख़ास तरह के घुले हुए पदार्थ रहते हैं जो कुछ क़िस्म के जीवाणु को पनपने देते हैं और कुछ को नहीं। वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि गंगा के पानी में ऐसे जीवाणु हैं जो सड़ाने वाले कीटाणुओं को पनपने नहीं देते, इसलिए पानी लंबे समय तक ख़राब नहीं होता।
वैज्ञानिक कारण-
वैज्ञानिक बताते हैं कि हरिद्वार में गोमुख- गंगोत्री से आ रही गंगा के जल की गुणवत्ता पर इसलिए कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि यह हिमालय पर्वत पर उगी हुई अनेकों जीवनदायनी उपयोगी जड़ी-बूटियों, खनिज पदार्थों और लवणों को स्पर्श करता हुआ आता है। वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि हिमालय की कोख गंगोत्री से निकली गंगा के जल का ख़राब नहीं होने के कई वैज्ञानिक कारण भी हैं। गंगाजल में बैट्रिया फोस नामक एक बैक्टीरिया पाया गया है जो पानी के अंदर रासायनिक क्रियाओं से उत्पन्न होने वाले अवांछनीय पदार्थों को खाता रहता है। इससे जल की शुद्धता बनी रहती है। गंगा के पानी में गंधक (सल्फर) की प्रचुर मात्रा मौजूद रहती है; इसलिए भी यह ख़राब नहीं होता। इसके अतिरिक्त कुछ भू-रासायनिक क्रियाएं भी गंगाजल में होती रहती हैं, जिससे इसमें कभी कीड़े पैदा नहीं होते। यही कारण है कि यह पानी सदा पीने योग्य माना गया है। जैसे-जैसे गंगा हरिद्वार से आगे अन्य शहरों की ओर बढ़ती जाती है शहरों, नगर निगमों और खेती- बाड़ी का कूड़ा-करकट तथा औद्योगिक रसायनों का मिश्रण गंगा में डाल दिया जाता है।
वैज्ञानिको के मत एवं शोध-
वैज्ञानिक परीक्षणों से पता चला है कि गंगाजल से स्नान करने तथा गंगाजल को पीने से हैजा, प्लेग, मलेरिया तथा क्षय आदि रोगों के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। इस बात की पुष्टि के लिए एक बार डॉ. हैकिन्स, ब्रिटिश सरकार की ओर से गंगाजल से दूर होने वाले रोगों के परीक्षण के लिए आए थे। उन्होंने गंगाजल के परिक्षण के लिए गंगाजल में हैजे (कालरा) के कीटाणु डाले गए। हैजे के कीटाणु मात्र 6 घंटें में ही मर गए और जब उन कीटाणुओं को साधारण पानी में रखा गया तो वह जीवित होकर अपने असंख्य में बढ़ गया। इस तरह देखा गया कि गंगाजल विभिन्न रोगों को दूर करने वाला जल है। फ्रांस के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. हैरेन ने गंगाजल पर वर्षों अनुसंधन करके अपने प्रयोगों का विवरण शोधपत्रों के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने आंत्र शोध व हैजे से मरे अज्ञात लोगों के शवों को गंगाजल में ऐसे स्थान पर डाल दिया, जहाँ कीटाणु तेजी से पनप सकते थे। डॉ. हैरेन को आश्चर्य हुआ कि कुछ दिनों के बाद इन शवों से आंत्र शोध व हैजे के ही नहीं बल्कि अन्य कीटाणु भी गायब हो गए। उन्होंने गंगाजल से 'बैक्टीरियासेपफेज' नामक एक घटक निकाला, जिसमें औषधीय गुण हैं। इंग्लैंड के जाने-माने चिकित्सक सी. ई. नेल्सन ने गंगाजल पर अन्वेषण करते हुए लिखा कि इस जल में सड़ने वाले जीवाणु ही नहीं होते। उन्होंने महर्षि चरक को उद्धृत करते हुए लिखा कि गंगाजल सही मायने में पथ्य है। रूसी वैज्ञानिकों ने हरिद्वार एवं काशी में स्नान के उपरांत 1950 में कहा था कि उन्हें स्नान के उपरांत ही ज्ञात हो पाया कि भारतीय गंगा को इतना पवित्र क्यों मानते हैं। गंगाजल की पाचकता के बारे में ओरियंटल इंस्टीटयूट में हस्तलिखित आलेख रखे हैं। कनाडा के मैकिलन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. एम. सी. हैमिल्टन ने गंगा की शक्ति को स्वीकारते हुए कहा कि वे नहीं जानते कि इस जल में अपूर्व गुण कहाँ से और कैसे आए। सही तो यह है कि चमत्कृत हैमिल्टन वस्तुत: समझ ही नहीं पाए कि गंगाजल की औषधीय गुणवत्ता को किस तरह प्रकट किया जाए। आयुर्वेदाचार्य गणनाथ सेन, विदेशी यात्री इब्नबतूता वरनियर, अंग्रेज़ सेना के कैप्टन मूर, विज्ञानवेत्ता डॉ. रिचर्डसन आदि सभी ने गंगा पर शोध करके यही निष्कर्ष दिया कि यह नदी अपूर्व है।
गंगाजल में स्नान-
गंगा नदी में तैरकर स्नान करने वालों को स्नान का विशेष लाभ होता है। गंगाजल अपने खनिज गुणों के कारण इतना अधिक गुणकारी होता है कि इससे अनेक प्रकार के रोग दूर होते हैं। गंगा नदी में स्नान करने वाले लोग स्वस्थ और रोग मुक्त बने रहते हैं। इससे शरीर शुद्ध और स्फूर्तिवान बनता है। भारतीय सभ्यता में गंगा को सबसे पवित्र नदी माना जाता है। गंगा नदी के पानी में विशेष गुण के कारण ही गंगा नदी में स्नान करने भारत के विभिन्न क्षेत्र से ही नहीं बल्कि संसार के अन्य देशों से भी लोग आते है।
गंगा नदी में स्नान के लिए आने वाले सभी लोग विभिन्न प्रकार के रोगों से मुक्ति पाने के लिए हरिद्वार और ऋषिकेश आकर मात्र कुछ ही दिनों में केवल गंगा स्नान से पूर्ण स्वस्थ हो जाते हैं। कई विद्वानों ने गंगाजल की पवित्रता का वर्णन अपने निबन्धों में पूर्ण आत्मा से किया है। भौतिक विज्ञान के कई आचार्यो ने भी गंगाजल की अद्भुत शक्ति और प्रभाव को स्वीकार किया है

Mera sapna) जीवन में कुछ अच्छे कर्म किये होंगे इसलिये यमराज मुझे स्वर्ग में ले गये.!!

~~~"मेरा सपना"~~~

कल रात मैंने एक "सपना" देखा.!!
सपने में मैं और मेरी Family
शिमला घूमने गए.!!
हम सब शिमला की रंगीन
वादियों में कुदरती नजारा
देख रहे थे.!!
जैसे ही हमारी Car
Sunset Point की ओर
निकली..... अचानक गाडी के Breakफेल हो गए और हम सब
करीबन 1500 फिट गहरी
खाई में जा गिरे.!!

मेरी तो on the spot Death हो गई.!!

जीवन में कुछ अच्छे कर्म किये होंगे इसलिये यमराज मुझे स्वर्ग में ले गये.!!

देवराज इंद्र ने मुस्कुराकर
मेरा स्वागत किया.!! मेरे हाथ में Bag देखकर पूछने लगे

इसमें क्या है.?

मैंने कहा इसमें मेरे जीवन भर
की कमाई है, पांच करोड़ रूपये हैं ।  इन्द्र ने SVG 6767934 नम्बर के Locker की ओर इशारा करते हुए कहा-
आपकी अमानत इसमें रख
दीजिये.!!

मैंने Bag रख दी.!!

मुझे एक Room भी दिया.!!
मैं Fresh होकर Market में
निकला.!! देवलोक के Shopping मॉल
मे अदभूत वस्तुएं देखकर मेरा मन ललचा गया.!!

मैंने कुछ चीजें पसन्द करके
Basket में डाली, और काउंटर
पर जाकर उन्हें हजार हजार के
करारे नोटें देने लगा.!!

Manager ने नोटों को देखकर
कहा यह करेंसी यहाँ नहीं चलती.!!

यह सुनकर मैं हैरान रह गया.!!
मैंने इंद्र के पास Complaint की इंद्र ने मुस्कुराते हुए कहा कि
आप व्यापारी होकर इतना भी
नहीं जानते? कि आपकी करेंसी
बाजु के मुल्क पाकिस्तान, श्रीलंका और बांगलादेश में भी नही चलती.?
और आप मृत्यूलोक की करेंसी
स्वर्गलोक में चलाने की मूर्खता
कर रहे हो.!! यह सब सुनकर मुझे मानो साँप सूंघ गया.!!

मैं जोर जोर से दहाड़े मारकर
रोने लगा.!! और परमात्मा से
दरखास्त करने लगा, हे भगवान् ये क्या हो गया.? मैंने कितनी मेहनत से ये पैसा कमाया.?
दिन नही देखा, रात नही देखा, पैसा कमाया.!! माँ बाप की सेवा नही की, पैसा कमाया
बच्चों की परवरीश नही की,
पैसा कमाया.!! पत्नी की सेहत की ओर ध्यान नही दिया, पैसा कमाया.!!

रिश्तेदार, भाईबन्द, परिवार और
यार दोस्तों से भी किसी तरह की
हमदर्दी न रखते हुए पैसा
कमाया.!!
जीवन भर हाय पैसा
हाय पैसा किया.!!
ना चैन से सोया, ना चैन से खाया.... बस, जिंदगी भर पैसा कमाया.!
और यह सब व्यर्थ गया....

हाय राम, अब क्या होगा....

इंद्र ने कहा,-
रोने से कुछ हासिल होने वाला
नहीं है.!! जिन जिन लोगो ने यहाँ जितना भी पैसा लाया, सब रद्दी हो गया।

जमशेद जी टाटा के 55 हजार करोड़ रूपये, बिरला जी के 47 हजार करोड़ रूपये, धीरू भाई
अम्बानी के 29 हजार करोड़
अमेरिकन डॉलर....  सबका पैसा यहां पड़ा है.!!

मैंने इंद्र से पूछा-
फिर यहां पर कौनसी करेंसी
चलती है.??
इंद्र ने कहा-
धरती पर अगर कुछ अच्छे कर्म
किये है. जैसे किसी दुखियारे को
मदद की, किसी रोते हुए को
हसाया, किसी गरीब बच्ची की
शादी कर दी, किसी अनाथ बच्चे को पढ़ा लिखा कर काबिल बनाया.!! किसी को व्यसनमुक्त किया.!! किसी अपंग स्कुल, वृद्धाश्रम या मंदिरों में दान धर्म किया....

ऐसे पूण्य कर्म करने वालों को
यहाँ पर एक Credit Card
मिलता है....
और उसे वापर कर आप यहाँ
स्वर्गीय सुख का उपभोग ले
सकते है.!!

मैंने कहा भगवन, मुझे यह पता
नहीं था. इसलिए मैंने अपना जीवन व्यर्थ गँवा दिया.!!

हे प्रभु, मुझे थोडा आयुष्य दीजिये... और मैं गिड़गिड़ाने लगा.!! इंद्र को मुझ पर दया आ गई.!!

इंद्र ने तथास्तु कहा और मेरी नींद खुल गयी...

मैं जाग गया....

अब मैं वो दौलत कमाऊँगा
जो वहाँ चलेगी.....

आपको यह कहानी अच्छी लगे तो अपने दोस्तों को भी शेयर करे ।

बुधवार, 13 मई 2015

kasmiri Pandit itihash) कश्मीरी पंडित... एक ऐसी कहानी जो देश के अधिकतर लोगो को पता नहीं है।

कश्मीरी पंडित... एक ऐसी कहानी जो देश के अधिकतर लोगो को पता नहीं है।
आप सभी ने सुना होगा कश्मीरी पंडितो के बारे में। हम सभी ने सुना है की हाँ कुछ तो हुआ था कश्मीरी पंडितो के साथ। लेकिन क्या हुआ था क्यों हुआ था ......यह ठीक से पता नहीं है।
यहाँ यह बताया जा रहा है कि क्या हुआ था कश्मीर में और क्या हुआ था कश्मीरी पंडितो के साथ।

पार्ट 1: कश्मीर का खुनी इतिहास
कश्मीर का नाम कश्यप ऋषि के नाम पर पड़ा था। कश्मीर के मूल निवासी सारे हिन्दू थे।
कश्मीरी पंडितो की संस्कृति 5000 साल पुरानी है और वो कश्मीर के मूल निवासी हैं। इसलिए अगर कोई कहता है की भारत ने कश्मीर पर कब्ज़ा कर लिया है यह बिलकुल गलत है।
14वीं शताब्दी में तुर्किस्तान से आये एक क्रूर आतंकी मुस्लिम दुलुचा ने 60,000 लोगो की सेना के साथ कश्मीर में आक्रमण किया और कश्मीर में मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना की। दुलुचा ने नगरों और गाँव को नष्ट कर दिया और हजारों हिन्दुओ का नरसंघार किया। बहुत सारे हिन्दुओ को जबरदस्ती मुस्लिम बनाया गया। बहुत सारे हिन्दुओ ने जो इस्लाम नहीं कबूल करना चाहते थे, उन्होंने जहर खाकर
आत्महत्या कर ली और बाकि भाग गए या क़त्ल कर दिए गए
या इस्लाम कबूल करवा लिए गए। आज जो भी कश्मीरी मुस्लिम है उन सभी के पूर्वजो को इन अत्याचारों के कारण
जबरदस्ती मुस्लिम बनाया गया था।
भारत पर मुस्लिम आक्रमण अतिक्रमण - विश्व इतिहास का सबसे ज्यादा खुनी कहानी:
http://www.youtube.com/watch?v=TMY2YV9WucY
भारत के खुनी विभाजन के बारे में जानने के लिए यह विडियो देखे:
http://www.youtube.com/watch?v=jGiTaQ60Je0
अधिक जानकारी के लिए इस लिंक को देखे:
http://kasmiripandits.blogspot.com/2012/04/tragic-history-of-kasmir.html
http://en.wikipedia.org/wiki/Kashmir#Muslim_rule

पार्ट 2: 1947 के समय कश्मीर
1947 में ब्रिटिश संसद के "इंडियन इंडीपेनडेंस इ एक्ट" के अनुसार ब्रिटेन ने तय किया की मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को पाकिस्तान बनाया जायेगा। 150 राजाओं ने पाकिस्तान चुना और बाकी 450 राजाओ ने भारत। केवल एक जम्मू और कश्मीर के राजा बच गए थे जो फैसला नहीं कर पा रहे थे। लेकिन जब पाकिस्तान ने फौज भेजकर कश्मीर पर आक्रमण किया तो कश्मीर के
राजा ने भी हिंदुस्तान में कश्मीर के विलय के लिए दस्तख़त कर दिए। ब्रिटिशो ने यह कहा था की राजा अगर एक बार दस्तखत कर दिया तो वो बदल नहीं सकता और जनता की आम राय पूछने की जरुरत नहीं है। तो जिन कानूनों के आधार पर भारत और पाकिस्तान बने थे
उन नियमो के अनुसार कश्मीर पूरी तरह से भारत का अंग बन गया था। इसलिए कोई भी कहता है की कश्मीर पर भारत ने जबरदस्ती कब्ज़ा कर रहे है वो बिलकुल झूठ है।
अधिक जानकारी के लिए यह विडियो आप देख सकते है:
http://www.youtube.com/watch?v=gxhVDKRFh28

पार्ट 3: सितम्बर 14, 1989
बीजेपी के राष्ट्रीय कार्यकारणी के सदस्य और जाने माने वकील कश्मीरी पंडित तिलक लाल तप्लू का JKLF ने क़त्ल कर दिया। उसके बाद जस्टिस नील कान्त गंजू को गोली मार दिया गया। सारे कश्मीरी नेताओ की हत्या एक एक करके कर दी गयी। उसके बाद 300 से ज्यादा हिन्दू महिलाओ और पुरुषो की निर्संश हत्या की गयी।
कश्मीरी पंडित नर्स जो श्रीनगर के सौर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में काम करती थी, का सामूहिक बलात्कार किया गया और मार मार कर उसकी हत्या कर दी गयी। यह खुनी खेल चलता रहा और अपने सेकुलर राज्य और केंद्र सरकार, मीडिया ने
कुछ भी नहीं किया।

पार्ट ४: जनवरी 4, 1990
आफताब, एक स्थानीय उर्दू अखबार ने हिज्ब -उल -मुजाहिदीन की तरफ से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की, सभी हिन्दू अपना सामन पैक करें और कश्मीर छोड़ कर चले जाएँ। एक अन्य स्थानीय समाचार पत्र, अल सफा ने इस निष्कासन आदेश को दोहराया। मस्जिदों में भारत और हिन्दू विरोधी भाषण दिए जाने लगे।
सभी कश्मीरी हिन्दू/मुस्लिमो को कहा गया की इस्लामिक ड्रेस कोड अपनाये। सिनेमा और विडियो पार्लर वगैरह बंद कर दिए गए। लोगो को मजबूर किया गया की वो अपनी घड़ी पाकिस्तान के समय के अनुसार करे लें।
अधिक जानकारी के लिए यह लिंक और ब्लॉग आप देख सकते है:
http://kasmiripandits.blogspot.com/2012/04/when-kashmiri-
pandits-fled-islamic.html

http://www.rediff.com/news/2005/jan/19kanch.htm -
[19/01/90: When Kashmiri Pandits fled Islamic terror]

पार्ट 5: जनवरी 19, 1990
सारे कश्मीरी पंडितो के घर के दरवाजो पर नोट लगा दिया जिसमे लिखा था "या तो मुस्लिम बन जाओ या कश्मीर छोड़ कर भाग जाओ या फिर मरने के लिए तैयार हो जाओ"। पाकिस्तान की तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने टीवी पर कश्मीरी मुस्लिमो को भारत से आजादी के लिए भड़काना शुरू कर दिया। सारे कश्मीर के मस्जिदों में एक टेप चलाया गया। जिसमे मुस्लिमो को कहा गया की वो हिन्दुओ को कश्मीर से निकाल बाहर करें। उसके बाद सारे कश्मीरी मुस्लिम सडको पर उतर आये। उन्होंने कश्मीरी पंडितो के घरो को जला दिया, कश्मीर पंडित महिलाओ का बलात्कार करके, फिर उनकी हत्या करके उनके नग्न शरीर को पेड़ पर
लटका दिया गया। कुछ महिलाओ को जिन्दा जला दिया गया और बाकियों को लोहे के गरम सलाखों से मार दिया गया। बच्चो को स्टील के तार से गला घोटकर मार
दिया गया। कश्मीरी महिलाये ऊंचे मकानों की छतो से कूद कूद कर जान देने लगी।
कश्मीरी मुस्लिम, कश्मीरी हिन्दुओ के हत्या करते चले गए और नारा लगते चले गए की उन पर अत्याचार हुआ है और उनको भारत से आजादी चाहिए।

पार्ट 6: कश्मीरी पंडितो का पलायन
3,50,000 कश्मीरी पंडित अपनी जान बचा कर कश्मीर से भाग गए। कश्मीरी पंडित जो कश्मीर के मूल निवासी है उन्हें कश्मीर छोड़ना पड़ा और तब कश्मीरी मुस्लिम कहते है की उन्हें आजादी चाहिए। यह सब कुछ चलता रहा लेकिन सेकुलर मीडिया चुप रही उन्होंने देश के लोगो तक यह बात कभी नहीं पहुचाई इसलिए देश के लोगो को आज तक नहीं पता चल पाया की क्या हुआ था कश्मीर में। देश- विदेश के लेखक चुप रहे, भारत का संसद चुप रहा, सारे हिन्दू, मुस्लिम, सेकुलर चुप रहे। किसी ने भी 3,50,000 कश्मीरी पंडितो के बारे में कुछ नहीं कहा। आज भी अपने देश के मीडिया 2002 के दंगो के रिपोर्टिंग में व्यस्त है। वो कहते है
की गुजरात में मुस्लिम विरोधी दंगे हुए थे लेकिन यह
कभी नहीं बताते की 750 मुस्लिमों के साथ साथ 310 हिन्दू भी मरे थे और यह भी कभी नहीं बताते की दंगो की शुरुआत मुस्लिमो ने की थी, जब उन्होंने 59 हिन्दुओं को ट्रेन में गोधरा में जिन्दा जला दिया था। हिन्दुओं पर अत्याचार के बात की रिपोर्टिंग से कहते है की अशांति फैलेगी, लेकिन मुस्लिमो पर हुए अत्याचार की रिपोर्टिंग से अशांति नहीं फैलती। इसे कहते है सेकुलर (धर्मनिरपेक्ष) पत्रकारिता।
http://kashmiris-in-exile.blogspot.com/2009/01/19-years-
to-19th-day-of-1990-exodus-of.html

पार्ट 7: कश्मीरी पंडितो के आज की स्थिति
आज 4.5 लाख कश्मीरी पंडित अपने देश में ही रेफूजी की तरह रह रहे है। पूरे देश या विदेश में कोई भी नहीं है उनको देखने वाला।
कोई भी मीडिया नहीं है जो उनके बारे में हुए अत्याचार को बताये। कोई भी सरकार या पार्टी या संस्था नहीं है जो की विस्थापित कश्मीरियों को उनके पूर्वजों के भूमि में वापस ले जाने को तैयार है। कोई भी नहीं इस इस दुनिया में जो कश्मीरी पंडितो के लिए "न्याय" की मांग करे। कश्मीरी पंडित काफी पढ़े लिखे लोगो के तरह जाने जाते थे, आज वो भिखारियों के तरह पिछले 24 सालो से टेंट में रह रहे है। उन्हें मुलभुत सुविधाए भी नहीं मिल पा रही है, पीने के लिए पानी तक की समस्या है।
भारतीय और विश्व की मीडिया, मानवाधिकार संस्थाए गुजरात दंगो में मरे 750 मुस्लिमो (310 मारे गए हिन्दुओ को भूलकर) की बात करते है। लेकिन यहाँ तो कश्मीरी पंडितो की बात करने
वाला कोई नहीं है क्योकि वो हिन्दू है। 20,000 कश्मीरी हिन्दू बस धुप की गर्मी के कारण मर गए क्योकि वो कश्मीर के ठन्डे मौसम में रहने के आदि थे।
अधिक जानकारी के लिए यह विडियो आप देख सकते है:
http://www.youtube.com/watch?v=kqSqn0id-IE [Shocking, Tragic and Horrible story of Kashmiri Pandits]

पार्ट 8: कश्मीरी पंडितो और भारतीय सेना के खिलाफ भारतीय मीडिया का षड्यंत्र
आज देश के लोगो को कश्मीरी पंडितो के मानवाधिकारों के बारे में भारतीय मीडिया नहीं बताती है लेकिन आंतकवादियों के मानवाधिकारों के बारे में जरुर बताती है। आज सभी को यह बताया जा रहा था है की ASFA नाम का किसी कानून का भारतीय सेना काफी ज्यादा दुरूपयोग किया है। कश्मीर में अलगावादी संगठन मासूम लोगो की हत्या करवाते है और भारतीय सेना के जवान जब उन आतंकियों के खिलाफ कोई करवाई करते है तो यह अलगावादी नेता अपने बिकी हुए मीडिया के सहायता से चीखना चिल्लाना शुरू कर देते है की देखो हमारे ऊपर कितना अत्याचार हो रहा है।
मित्रों, बात यहाँ तक नहीं रुकी है। अश्विन कुमार जैसे कुछ डाइरेक्टर इंशाल्लाह कश्मीर और दूसरी हैदर जैसी मूवी के जरिये पूरे विश्व की लोगो को यह दिखा रहे है की कश्मीर के भोले भाले मुस्लिम युवाओ पर
भारतीय सेना के जवानों ने अत्याचार किया है।
अश्विन कुमार अपने वृत्तचित्र पूरे विश्व के पटल पर रख रहे है। हर तरह से देश और विदेश में लोगो को दिखा रहे है की गलती भारतीय सेना की है..लेकिन जो सच्चाई है वो बिलकुल यह छिपा दे रहे है।
इस विडियो में देखे की किस प्रकार भारतीय सेना के
खिलाफ षड़यंत्र किया जा रहा है:
http://www.youtube.com/watch?v=LofOulSw07k - [Anti Hindu and Anti Indian Military - Indian Secular Media Exposed!]

पार्ट 9: निष्कर्ष
सारे मुस्लिम कहते है मोदी को फांसी दो जबकि मोदी ने गुजरात की दंगो को समय रहते रोक दिया। लेकिन आज तक एक भी मुस्लिम को यह कहते नहीं सुना गया की कांग्रेस के नेताओं, गाँधी परिवार और अब्दुल्लाह परिवार को फांसी दो।
जो लाखो कश्मीरी पंडितो के कत्लेआम देखते रहे।

मित्रों, इस कहानी को अगर आप पढ़ चुके है तो अपने बाकी मित्रो के साथ शेयर करे ताकि उन्हें भी सत्य का ज्ञान हो। जो कश्मीर में हुआ था, हम नहीं चाहते की हमारे बच्चे 10 सालों के बाद केरलाइ हिन्दू, बंगाली हिन्दुओ के बारे में कहानिया सुने जैसा हम आज कश्मीरी हिन्दुओ के बारे में सुनते हैं।
http://kasmiripandits.blogspot.com/2012/03/kasmiri-pandit-
untold-story.html
॥ वन्दे मातरम् ॥

मंगलवार, 12 मई 2015

जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा, और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा.।।

एक औरत अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोज़ाना भोजन पकाती थी और एक रोटी वह वहाँ से गुजरने वाले किसी भी भूखे के लिए पकाती थी..।

वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती थी, जिसे कोई भी ले सकता था..।

एक कुबड़ा व्यक्ति रोज़ उस रोटी को ले जाता और बजाय धन्यवाद देने के अपने रस्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह बड़बड़ाता- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा..।"

दिन गुजरते गए और ये सिलसिला चलता रहा..

वो कुबड़ा रोज रोटी लेके जाता रहा और इन्ही शब्दों को बड़बड़ाता- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा.।"

वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन खुद से कहने लगी की- "कितना अजीब व्यक्ति है, एक शब्द धन्यवाद का तो देता नहीं है, और न जाने क्या-क्या बड़बड़ाता रहता है, मतलब क्या है इसका.।"

एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और बोली- "मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी.।"

और उसने क्या किया कि उसने उस रोटी में ज़हर मिला दिया जो वो रोज़ उसके लिए बनाती थी, और जैसे ही उसने रोटी को को खिड़की पर रखने कि कोशिश की, कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और रुक गये और वह बोली- "हे भगवन, मैं ये क्या करने जा रही थी.?" और उसने तुरंत उस रोटी को चूल्हे कि आँच में जला दिया..। एक ताज़ा रोटी बनायीं और खिड़की के सहारे रख दी..।

हर रोज़ कि तरह वह कुबड़ा आया और रोटी ले के: "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा, और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा" बड़बड़ाता हुआ चला गया..।

इस बात से बिलकुल बेख़बर कि उस महिला के दिमाग में क्या चल रहा है..।

हर रोज़ जब वह महिला खिड़की पर रोटी रखती थी तो वह भगवान से अपने पुत्र कि सलामती और अच्छी सेहत और घर वापसी के लिए प्रार्थना करती थी, जो कि अपने सुन्दर भविष्य के निर्माण के लिए कहीं बाहर गया हुआ था..। महीनों से उसकी कोई ख़बर नहीं थी..।

ठीक उसी शाम को उसके दरवाज़े पर एक दस्तक होती है.. वह दरवाजा खोलती है और भोंचक्की रह जाती है.. अपने बेटे को अपने सामने खड़ा देखती है..।

वह पतला और दुबला हो गया था.. उसके कपडे फटे हुए थे और वह भूखा भी था, भूख से वह कमज़ोर हो गया था..।

जैसे ही उसने अपनी माँ को देखा, उसने कहा- "माँ, यह एक चमत्कार है कि मैं यहाँ हूँ.. आज जब मैं घर से एक मील दूर था, मैं इतना भूखा था कि मैं गिर गया.. मैं मर गया होता..।

लेकिन तभी एक कुबड़ा वहां से गुज़र रहा था.. उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और उसने मुझे अपनी गोद में उठा लिया.. भूख के मरे मेरे प्राण निकल रहे थे.. मैंने उससे खाने को कुछ माँगा.. उसने नि:संकोच अपनी रोटी मुझे यह कह कर दे दी कि- "मैं हर रोज़ यही खाता हूँ, लेकिन आज मुझसे ज़्यादा जरुरत इसकी तुम्हें है.. सो ये लो और अपनी भूख को तृप्त करो.।"

जैसे ही माँ ने उसकी बात सुनी, माँ का चेहरा पीला पड़ गया और अपने आप को सँभालने के लिए उसने दरवाज़े का सहारा लीया..।

उसके मस्तिष्क में वह बात घुमने लगी कि कैसे उसने सुबह रोटी में जहर मिलाया था, अगर उसने वह रोटी आग में जला के नष्ट नहीं की होती तो उसका बेटा उस रोटी को खा लेता और अंजाम होता उसकी मौत..?

और इसके बाद उसे उन शब्दों का मतलब बिलकुल स्पष्ट हो चूका था- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा, और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा.।।


             🍁" निष्कर्ष "🍁
              ==========
हमेशा अच्छा करो और अच्छा करने से अपने आप को कभी मत रोको, फिर चाहे उसके लिए उस समय आपकी सराहना या प्रशंसा हो या ना हो..।
               =========

Hindustan me dharm privrtan ka itihash

धर्म-परिवर्तनकी समस्या अर्थात् हिंदुस्थान
एवं हिंदु धर्मपर अनेक सदियोंसे परधर्मियोंद्वारा होनेवाला
धार्मिक आक्रमण ! इतिहासमें अरबीयोंसे लेकर
अंग्रेजोंतक अनेक विदेशियोंने हिंदुस्थानपर आक्रमण किए ।
साम्राज्य विस्तारके साथ ही स्वधर्मका प्रसार,
यही इन सभी आक्रमणोंका सारांश
था । आज भी इन विदेशियोंके वंशज
यही ध्येय सामने रखकर हिंदुस्तानमें
नियोजनबद्धरूपसे कार्यरत हैं । यह पढकर धर्म-
परिवर्तनकी समस्याके विषयमें हिंदु समाज
जाग्रत हो तथा धर्म-परिवर्तनके विदेशी
आक्रमणका विरोध कर सके, यही ईश्वरचरणोंमें
प्रार्थना !
१. इस्लामी आक्रमणसे पूर्वका काल
ईसाई धर्मकी स्थापनाके पश्चात् प्रथम
शताब्दीमें (वर्ष ५२ में) सेंट थॉमस नामक ईसाई
धर्मोपदेशक हिंदुस्थानके केरल प्रांतमेंij आया और उसने वहां
ईसाई धर्मका प्रचार आरंभ किया ।
२. इस्लामी सत्ताका काल
इस कालमें हिंदुओंका सर्वाधिक धर्म-परिवर्तन हुआ । उस
कालमें कश्मीर, पंजाब, उत्तरप्रदेश और
दिल्ली राज्यों सहित हिंदुस्थानमें सम्मिलित और
आगे स्वतंत्र देश बने पाकिस्तान, अफगानिस्तान, कंबोडिया
और ब्रह्मदेशके हिंदु धर्म-परिवर्तनसे सर्वाधिक प्रभावित
हुए । इस कालमें धर्म- परिवर्तनके कार्यको आगे
बढानेवालोंके नाम और उनके दुष्कृत्य आगे दिए हैं ।
२ अ. मुहम्मद कासिम
‘इतिहासकार यू.टी. ठाकुरने वर्ष ७१२ में
हिंदुस्थानपर आक्रमण करनेवाले इस प्रथम
इस्लामी आक्रमणकारीका कार्यकाल
‘सिंधके इतिहासका अंधकारपूर्ण कालखंड’, ऐसा वर्णन किया
है । इस कालखंडमें सिंधमें बलपूर्वक धर्म-परिवर्तन,
देवालयोंका विध्वंस, गोहत्या एवं हिंदुओंका वंशविच्छेद
अपनी चरम सीमापर था । सर्व
प्राचीन और आधुनिक इतिहासकारोंने स्पष्टरूपसे
कहा है, ‘सिंधके हिंदुओंका धर्म-परिवर्तन बलपूर्वक
ही किया गया था ।’
२ आ. औरंगजेब
इसने दिल्ली हस्तगत करते ही
हिंदुओंको मुसलमान बनाकर उन्हें इस्लामकी
दीक्षा देनेकी शासकीय
नीति बनाई और तदनुसार उसने लाखों हिंदुओंका
धर्मांतरण किया । उसने छत्रपति शिवाजी
महाराजके सेनापति नेताजी पालकर,
जानोजीराजे पालकर आदि सरदारोंको भी
धर्मांतरित किया । छत्रपति संभाजी महाराजका
इस्लामीकरण करनेका भी उसने
अंततक प्रयत्न किया; किंतु संभाजी महाराजके
प्रखर धर्माभिमानके कारण वह निष्फल हुआ ।
स्वातंत्र्यवीर सावरकर लिखते हैं, ‘औरंगजेबने
हिंदुओंको हर संभव उपाय अपनाकर धर्मांतरित करनेका
प्रयत्न किया ।’
२ इ. टीपू सुलतान
‘दक्षिणके इस सुलतानने सत्ता हाथमें लेते ही
भरी सभामें प्रतिज्ञा की, ‘सब
काफिरोंको (हिंदुओंको) मुसलमान बनाऊंगा’ । उसने प्रत्येक
गांवके मुसलमानोंको लिखितरूपसे सूचित किया, ‘सभी
हिंदु स्त्री-पुरुषोंको इस्लामकी
दीक्षा दो । स्वेच्छासे धर्मांतरण न करनेवाले
हिंदुओंको बलात्कारसे मुसलमान बनाओ अथवा हिंदु पुरुषोंका
वध करो और उनकी स्त्रियोंको मुसलमानोंमें बांट दो
।’ आगे टीपूने मलबार क्षेत्रमें एक लाख
हिंदुओंको धर्मांतरित किया । उसने हिंदुओंका धर्म-परिवर्तन
करनेके लिए कुछ कट्टर मुसलमानोंकी विशेष
टोली बनाई । इस्लामका आक्रामक प्रचार करनेके
कारण उसे ‘सुलतान’, ‘गाजी’, ‘इस्लामका
कर्मवीर’ इत्यादि उपाधियां देश-विदेशके मुसलमान
और तुर्किस्थानके खलीफाद्वारा दी
गई ।’ – जयेश मेस्त्री, मालाड, मुंबई.
२ ई. सूफी फकीर
‘इन हिंदु साधुओंके समान आचरण करनेवाले कुछ कथित
मुसलमान संतोंने हिंदुओंका बडी संख्यामें धर्म-
परिवर्तन कराया । ‘हिस्टरी ऑफ
सूफीज्म इन इंडिया’ (अर्थात् भारतमें
सूफीवादका इतिहास) नामक पुस्तकके दो खंडोंमें
इसकी जानकारी दी है
।’ – गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी
२ उ. हैदराबादका निजाम
‘इसके अत्याचारी शासनकालमें सैनिकी
अधिकारियोंने सहदााों हिंदुओंका लिंगाग्रचर्मपरिच्छेदन (सुन्नत)
किया । धर्मांतरण को नकारनेवाले असंख्य
हिंदुओंकी हत्या की गई ।
‘अत्याचार कर मुसलमान बनाना’, यह वाक्प्रचार यहांके
हिंदुओंने प्रत्यक्ष अनुभव किया ।’ – पत्रिका ‘हिंदूंनो, वाचा
आणि थंड बसा’ (अर्थात् ‘हिंदुओ, पढो और शांत बैठो’)
(९.८.२००४)
३. पुर्तगालियोंका शासनकाल
३ अ. हिंदुस्थानमें वास्को-डी-गामाके तुरंत
पश्चात् ईसाई
मिशनरियोंका आना और यातना, बल एवं कपटद्वारा
हिंदुओंको ईसाई बनाना
‘१४९८ में वास्को-डी-गामाके नेतृत्वमें
पुर्तगालियोंने हिंदुस्थानकी धरती पर
पैर रखा एवं ईसाइयोंके साम्राज्यवादी
धर्ममतकी राजकीय यात्रा आरंभ
हुई । वास्को-डी-गामाके तुरंत पश्चात् ईसाई
धर्मका प्रचार करनेवाले मिशनरी आए ।
तत्पश्चात् ‘व्यापारिक दृष्टिकोणसे राज्यविस्तार’ इस
सिद्धांतकी अपेक्षा ‘ईसाई धर्मका प्रचार’,
यही पुर्तगालियोंका प्रमुख ध्येय बन गया ।
इससे धर्म-परिवर्तनकी प्रक्रिया आरंभ हुई ।
ईसाई मिशनरी रात्रिके समय घरके पिछवाडे स्थित
कुंएमें पाव (डबलरोटी) डाल देते और प्रातःकाल
लोगोंके पानी पीते ही
कहते, ‘तुम ईसाई बन गए ।’ घबराए हुए हिंदु समझ
बैठते कि वे फंस गए और ईसाई धर्मके अनुसार आचरण
करने लगते । १५४२ में पुर्तगालके किंग जॉन
द्वितीयने हिंदुओंके ईसाईकरण हेतु सेंट जेवियर
नामक मिशनरीको भेजा । उसके आगमनके पश्चात्
गोवामें हिंदु धर्मांतरण करें, इसके लिए उनपर ईसाई मिशनरियोंने
अनन्वित अत्याचार किए
३ आ. सेंट जेवियरकी धर्म-
परिवर्तनकी पद्धति !
सेंट जेवियर स्वयं अपनी धर्म-
परिवर्तनकी पद्धतिके संदर्भमें कहता है,
‘एक माहमें मैंने त्रावणकोर राज्यमें १० सहदाासे अधिक
पुरुषों, स्त्रियों एवं बच्चोंको धर्मांतरित कर उनके
पुर्तगाली नाम रखे । बप्तिस्मा देनेके (ईसाई
होनेके समय प्रथम जल व दीक्षा-स्नान,
नामकरणसंस्कारके) पश्चात् मैंने इन नव-ईसाइयोंको अपने
पूजाघर नष्ट करनेका आदेश दिया । इस प्रकार मैंने एक
गांवसे दूसरे गांवमें जाते हुए लोगोंको ईसाई बनाया ।’ –
श्री. विराग श्रीकृष्ण पाचपोर
३ इ. पुर्तगालियोंद्वारा हिंदुओंके धर्मांतरण हेतु किए
अत्याचारोंके प्रतिनिधिक उदाहरण
‘१५६० में पोपके आदेशपर ईसाई साम्राज्य बढानेके उद्देश्यसे
पुर्तगालियोंकी सेना गोवा पहुंची ।
उसने धर्मांतरण न करनेवाले हिंदुओंपर भयंकर अत्याचार
करते हुए सहदााों हिंदुओंको मार डाला । धर्मांतरण न
करनेवाले इन हिंदुओंको एक पंक्तिमें खडा कर उनके दांत
हथौडीसे तोडना, हिंदुओंपर हुए अत्याचारोंका
एक प्रातिनिधिक उदाहरण है ।’ – साप्ताहिक ‘संस्कृति
जागृति’ (४ से ११ जुलाई २००४)
३ ई. छत्रपति शिवाजी महाराजद्वारा बार्देश
(गोवा) क्षेत्रमें ईसाईकरण का षड्यंत्र नष्ट करना
आदिलशाहसे गोवाका बार्देश प्रांत छीन लेनेके
पश्चात् पुर्तगालियोंने वहांके हिंदुओंका बलपूर्वक धर्मांतरण
किया । धर्मांतरणको अस्वीकार करनेवाले ३
सहदाा हिंदुओंको ‘आजसे दो माहके भीतर
धर्म-परिवर्तन करो, अन्यथा कहीं और चले
जाओ’, ऐसा आदेश पुर्तगालियोंके गोवा स्थित वाइसरायने दिया ।
यह समाचार प्राप्त होते ही छत्रपति
शिवाजी महाराजने वाइसरायके आदेशानुसार
कार्यवाही होनेमें दो दिन शेष रहनेपर २०
नवंबर १६६७ को बार्देश प्रांतपर आक्रमण किया और इस
आदेशका उत्तर अपनी तलवारसे दिया ।
३ उ. हिंदुओंको छल-कपटसे ईसाई बनानेवाले
पुर्तगाली पादरियोंको छत्रपति
संभाजी महाराजकी फटकार !
‘छत्रपति संभाजी महाराजने गोवामें पुर्तगालियोंसे
किया युद्ध राजनीतिकके साथ ही
धार्मिक भी था । हिंदुओंका धर्मांतरण करना तथा
धर्मांतरित न होनेवालोंको जीवित
जलानेकी शृंखला चलानेवाले पुर्तगाली
पादरियोंके ऊपरी वस्त्र उतारकर तथा दोनों हाथ
पीछे बांधकर संभाजी महाराजने
गांवमें उनका जुलूस निकाला ।’ – प्रा. श.श्री.
पुराणिक (ग्रंथ : ‘मराठ्यांचे स्वातंत्र्यसमर (अर्थात् मराठोंका
स्वतंत्रतासंग्राम’ डपूर्वार्ध़)
४. अंग्रेजोंका शासनकाल
४ अ. हिंदुस्थानमें हिंदुओंका ईसाईकरण
करनेकी अंग्रेजोंकी योजनाका
जनक चार्ल्स ग्रांट !
‘१७५७ में ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’का बंगालमें राज्य
स्थापित हुआ । तत्पश्चात् १८ वीं
शताब्दीके अंतमें चार्ल्स ग्रांट नामक अंग्रेजने
‘हिंदुस्थानमें ईसाई धर्मका प्रचार किस प्रकार किया जा सकता
है’, इस विषयमें आलेख ब्रिटिश संसदमें विलियम
विल्बरफोर्स, कुछ अन्य सांसद और
कैन्टरबरीके आर्चबिशपके पास भेजा । चार्ल्स
ग्रांटके इस प्रस्तावपर ब्रिटिश संसदमें निरंतर आठ दिन चर्चा
होनेके उपरांत ईसाई मिशनरियोंको धर्मप्रसारकी
अनुमति दी गई ।’ – श्री. विराग
श्रीकृष्ण पाचपोर
४ आ. ‘१८५७ के पूर्व हिंदुस्थानमें ‘ईस्ट इंडिया
कंपनी’के शासनकालमें मिशनरियोंद्वारा बलपूर्वक
हिंदुओंका धर्मांतरण किया गया ।’ – शंकर द. गोखले,
अध्यक्ष, स्वातंत्र्यवीर सावरकर साहित्य
अभ्यास मंडल, मुंबई.
४ इ. १८५७ के स्वतंत्रता संग्रामके पश्चात् ईसाई
मिशनरी
और ब्रिटिश साम्राज्यमें हिंदुओंके धर्मांतरणके विषयमें
हुआ एकमत !
‘१८५७ के स्वतंत्रता संग्रामके पश्चात् ईसाई
मिशनरी और ब्रिटिश साम्राज्यका संबंध अधिक
दृढ हुआ । वर्ष १८५९ में ‘भारतमें ईसाई धर्मका प्रचार
हम जितना शीघ कर पाएंगे, हमारे साम्राज्यके
लिए हितकर होगा’, ऐसा लॉर्ड पामरस्टनने
वैâन्टरबरीके आर्चबिशपसे कहा था ।’ –
श्री. विराग श्रीकृष्ण पाचपोर
४ ई. धूर्त अंग्रेजोंने अपने शासनकालमें सत्ता, शिक्षा और
सेवाके माध्यमोंसे धर्मप्रचार कर लोगोंको ईसाई बनानेका प्रयास
किया ।’ – प.पू. स्वामी गोविंददेवगिरी
महाराज (पूर्वके पू. किशोरजी व्यास)
४ उ. धर्म-परिवर्तन ही ब्रिटिश शिक्षाविद्
लॉर्ड मैकालेका हिंदुस्थानके विद्यालयोंके
अंग्रेजीकरणका उद्देश्य !
‘अंग्रेजोंने हिंदुस्थानमें पैर जमानेके पश्चात्
‘हिंदुस्थानी लोगोंको किस भाषामें शिक्षा
दी जाए’, इस संबंधमें विचार आरंभ किया । उस
समय ब्रिटिश शिक्षाविद् लॉर्ड मैकालेने अपने कट्टर ईसाई
धर्मवादी और धर्मप्रचारक पिताको पत्र लिखकर
बताया, ‘अंग्रेजी भाषामें शिक्षा पानेवाला हिंदु
कभी भी अपने धर्मसे एकनिष्ठ
नहीं रहता । ऐसे अहिंदु आगे चलकर ‘हिंदु
धर्म किस प्रकार निकृष्ट है तथा ईसाई धर्म किस प्रकार
श्रेष्ठ है’, इसका दृढतापूर्वक प्रचार करते हैं एवं उनमेंसे
कुछ लोग ईसाई धर्म अपनाते हैं ।’
४ ऊ. धर्म-परिवर्तन रोकनेके लिए छत्रपति
संभाजी महाराजद्वारा अंग्रेजोंसे
की गई संधि (समझौता) !
‘वर्ष १६८४ में मराठा और अंग्रेजोंके मध्य संधि हुई । इस
संधिमें छत्रपति संभाजी महाराजने अंग्रेजोंके
सामने प्रतिबंध (शर्त) रखा, ‘मेरे राज्यमें दास (गुलाम) बनानेके
लिए अथवा ईसाई धर्ममें धर्मांतरित करनेके लिए लोगोंको क्रय
करनेकी अनुमति नहीं ।’ – डॉ.
(श्रीमती) कमल गोखले (ग्रंथ :
‘शिवपुत्र संभाजी’)
५. स्वतंत्रता और स्वतंत्रताके पश्चात्का काल
५ अ. ‘मुस्लिम लीग’के ‘प्रत्यक्ष
कार्यवाही दिन योजना’के परिपत्रकमें हिंदुओंको
बलपूर्वक धर्मांतरित करनेकी आज्ञा होन
‘मुस्लिम लीग’ने १६.८.१९४६ को मुसलमानोंको,
‘प्रत्यक्ष कार्यवाही योजना’के विषयमें
जानकारी देनेवाला परिपत्रक प्रकाशित किया ।
उसमें मुसलमानोंको दी गई अनेक आज्ञाओंमेंसे
एक आज्ञा थी, ‘हिंदु स्त्रियों और लडकियोंपर
बलात्कार करो तथा भगाकर उनका धर्म-परिवर्तन करो ।’
५ आ. नेहरूके कार्यकालमें ईसाईकृत धर्म-परिवर्तनको
प्राप्त राज्याश्रय
५ आ १. स्वतंत्रता प्राप्तिके पश्चात् ईसाइयोंको
धर्मप्रचारकी स्वतंत्रता देनेवाले नेहरू !
‘देश स्वतंत्र होनेके पश्चात् प्रधानमंत्री
जवाहरलाल नेहरूने ईसाई मिशनरी संगठनोंको
भारतीय संविधानके अनुच्छेद ‘२५ अ’ के
अंतर्गत धर्मप्रचारकी स्वतंत्रता प्रदान
की । फलस्वरूप स्वतंत्रतापूर्व भारतमें
ईसाइयोंकी जो संख्या ०.७ प्रतिशत
थी, वह आज लगभग ६ प्रतिशत हो गई है
।’ – श्री. विराग श्रीकृष्ण पाचपोर
५ आ २. गेहूं बेचनेपर ईसाइयोेंके लिए धर्मप्रचार
करनेकी अनुमति मांगनेवाली ईसाई
अमरीका और उसे अनुमति देनेवाले नेहरू !
‘स्वतंत्रताके पश्चात् देशमें खाद्यान्नका भीषण
अभाव हो गया । देशकी आर्थिक स्थिति
ठीक न होनेके कारण रूसने, जहां वस्तुओंका
आदान-प्रदान करना (Barter System), इस
नीतिके अनुसार देशको गेहूंकी
आपूर्ति की । वहीं
अमरीकाने गेहूं बेचनेके लिए कुछ
बंधनकारी नियम बनाए । उनमें पहला प्रतिबंध
(शर्त) था, ‘ईसाई मिशनरियोंको हिंदुस्थानमें
धर्मप्रचारकी छूट दी जाए’ । इस
नियमका अनेक लोगोंने विरोध किया । इसपर नेहरूने न्या.
भवानीशंकर नियोगीकी
अध्यक्षतामें एक समिति नियुक्त की । ‘समस्या
केवल धर्मप्रचारकी नहीं, अपितु
उसके द्वारा होनेवाले धर्म-परिवर्तनका भी सूत्र
विचार करने योग्य है’, यह न्या. नियोगीके
कहनेके पश्चात् भी गेहूं प्राप्त करनेके लिए
अमरीकाका नियम स्वीकारकर
संविधानकी ‘धारा ४८०’ में तदनुसार व्यवस्था
की गई । तबसे ईसाई धर्मका प्रचार, अर्थात्
ईसााईकृत धर्म-परिवर्तन मुक्तरूपसे चल रहा है ।’ –
श्री. वसंत गद्रे
५ आ ३. ‘धर्मप्रचारके पीछे ईसाई चर्च और
मिशनरी संगठनोंका राजनीतिक
उद्देश्य है’, ऐसा सप्रमाण कहनेवाली
शासनद्वारा नियुक्त समितिके प्रतिवेदनकी
अनदेखी करनेवाले नेहरू !
‘ईसाई मिशनरी संगठनोंके कार्यकी
जांच करनेके लिए १९५५ में तत्कालीन
मध्यप्रदेश शासनने न्या. भवानीशंकर
नियोगीकी अध्यक्षतामें समिति बनाई
थी । उस समितिने अपने प्रतिवेदनमें अनेक
उदाहरण और प्रमाणके साथ स्पष्टरूपसे उल्लेख किया था,
‘धर्मप्रचारके पीछे ईसाई चर्च एवं
मिशनरी संगठनोंका राजनीतिक
उद्देश्य है’ और अनुशंसा की थी,
‘उन्हें मिलनेवाली विदेशी
धनकी सहायता बंद की जाए’ ।
नेहरू शासनने उस प्रतिवेदनको कूडेदानमें फेंक दिया ।’
५ इ. इंदिरा गांधीके शासनकालमें
अमरीकी ईसाज
संस्थाओंद्वारा धर्म- परिवर्तनके कार्यको गति प्रदान करना
स्वतंत्रताके पश्चात् इंदिरा गांधीने ४२ वें संविधान
संशोधनके द्वारा संविधानमें ‘धर्मनिरपेक्ष’ यह शब्द लाया ।
तथाकथित धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतको शासकीय
स्तरपर बढावा मिलनेके पश्चात् अनेक
अमरीकी संस्थाओंने हिंदुस्थानमें
ईसाई धर्मप्रचार एवं धर्म-परिवर्तन की गति
बढाई ।

५ ई. वर्तमानमें सोनिया गांधीका
राजनीतिके सर्वोेच्च
पदपर होनेके कारण धर्म-परिवर्तनको अत्यधिक गति
प्राप्त होना
‘ईसाई सोनिया गांधी राजनीतिमें सर्वोच्च
पदपर होनेके कारण ही हिंदुस्थानमें ईसाइयोंने
हिंदुओंके धर्म-परिवर्तनको व्यापक आंदोलनके रूपमें आरंभ
किया । इस कार्यमें देशके विविध राज्योंमें ४ सहदाासे अधिक
ईसाई मिशनरी सक्रिय हैं ।’ – फ्रान्सुआ
गोतीए, फ्रेंच पत्रकार

संदर्भ : हिंदू जनजागृति समिति’द्वारा समर्थित ग्रंथ ‘धर्म-
परिवर्तन एवं धर्मांतरितोंका शुद्धिकरण’

सोमवार, 11 मई 2015

naga sadhu history) आखिर कौन होते हैं नागा साधू???? जाने उनका रहस्य

आखिर कौन होते
हैं नागा साधू????
जाने उनका रहस्य........
अक्सर मुस्लिम और अंबेडकर वादी नागा साधूओं की
तस्वीर दिखा कर हिन्दु धर्म के साधूओं का अपमान करने
की और हिन्दुओं को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं
उन लोगों को नागा साधूओं का गौरवशाली इतिहास
पता नहीं होता जानें नागा साधूओं का गौरवशाली
इतिहास और उसकी महानता।
नागा साधूओं का इतिहास
नागा साधु हिन्दू धर्मावलम्बी साधु हैं जो कि नग्न रहने
तथा युद्ध कला में माहिर होने के लिये प्रसिद्ध हैं। ये
विभिन्न अखाड़ों में रहते हैं जिनकी परम्परा आदिगुरु
शंकराचार्य द्वारा की गयी थी।
नागा साधूओं का इतिहास
भारतीय सनातन धर्म के वर्तमान स्वरूप की नींव आदिगुरू
शंकराचार्य ने रखी थी। शंकर का जन्म ८वीं शताब्दी के
मध्य में हुआ था जब भारतीय जनमानस की दशा और दिशा
बहुत बेहतर नहीं थी। भारत की धन संपदा से खिंचे तमाम
आक्रमणकारी यहाँ आ रहे थे। कुछ उस खजाने को अपने साथ
वापस ले गए तो कुछ भारत की दिव्य आभा से ऐसे मोहित
हुए कि यहीं बस गए, लेकिन कुल मिलाकर सामान्य शांति-
व्यवस्था बाधित थी। ईश्वर, धर्म, धर्मशास्त्रों को तर्क,
शस्त्र और शास्त्र सभी तरह की चुनौतियों का सामना
करना पड़ रहा था। ऐसे में शंकराचार्य ने सनातन धर्म की
स्थापना के लिए कई कदम उठाए जिनमें से एक था देश के चार
कोनों पर चार पीठों का निर्माण करना। यह थीं
गोवर्धन पीठ, शारदा पीठ, द्वारिका पीठ और
ज्योतिर्मठ पीठ। इसके अलावा आदिगुरू ने मठों-मन्दिरों
की सम्पत्ति को लूटने वालों और श्रद्धालुओं को सताने
वालों का मुकाबला करने के लिए सनातन धर्म के विभिन्न
संप्रदायों की सशस्त्र शाखाओं के रूप में अखाड़ों की
स्थापना की शुरूआत की।
नागा साधूओं का इतिहास
आदिगुरू शंकराचार्य को लगने लगा था सामाजिक उथल-
पुथल के उस युग में केवल आध्यात्मिक शक्ति से ही इन
चुनौतियों का मुकाबला करना काफी नहीं है। उन्होंने
जोर दिया कि युवा साधु व्यायाम करके अपने शरीर को
सुदृढ़ बनायें और हथियार चलाने में भी कुशलता हासिल
करें। इसलिए ऐसे मठ बने जहाँ इस तरह के व्यायाम या शस्त्र
संचालन का अभ्यास कराया जाता था, ऐसे मठों को
अखाड़ा कहा जाने लगा। आम बोलचाल की भाषा में भी
अखाड़े उन जगहों को कहा जाता है जहां पहलवान कसरत के
दांवपेंच सीखते हैं। कालांतर में कई और अखाड़े अस्तित्व में
आए। शंकराचार्य ने अखाड़ों को सुझाव दिया कि मठ,
मंदिरों और श्रद्धालुओं की रक्षा के लिए जरूरत पडऩे पर
शक्ति का प्रयोग करें। इस तरह बाह्य आक्रमणों के उस दौर
में इन अखाड़ों ने एक सुरक्षा कवच का काम किया। कई
बार स्थानीय राजा-महाराज विदेशी आक्रमण की
स्थिति में नागा योद्धा साधुओं का सहयोग लिया
करते थे। इतिहास में ऐसे कई गौरवपूर्ण युद्धों का वर्णन
मिलता है जिनमें ४० हजार से ज्यादा नागा योद्धाओं ने
हिस्सा लिया। अहमद शाह अब्दाली द्वारा मथुरा-
वृन्दावन के बाद गोकुल पर आक्रमण के समय नागा साधुओं ने
उसकी सेना का मुकाबला करके गोकुल की रक्षा की।
नागा साधू
नागा साधुओं की लोकप्रियता है। गृहस्थ जीवन जितना
कठिन होता है उससे सौ गुना ज्यादा कठिन नागाओं का
जीवन है। यहां प्रस्तुत है नागा से जुड़ी महत्वपूर्ण
जानकारी।
1.
नागा अभिवादन मंत्र : ॐ नमो नारायण
2.
नागा का ईश्वर : शिव के भक्त नागा साधु शिव के
अलावा किसी को भी नहीं मानते।
*नागा वस्तुएं : त्रिशूल, डमरू, रुद्राक्ष, तलवार, शंख, कुंडल,
कमंडल, कड़ा, चिमटा, कमरबंध या कोपीन, चिलम, धुनी के
अलावा भभूत आदि।
3.
नागा का कार्य : गुरु की सेवा, आश्रम का कार्य,
प्रार्थना, तपस्या और योग क्रियाएं करना।
4.
नागा दिनचर्या : नागा साधु सुबह चार बजे बिस्तर
छोडऩे के बाद नित्य क्रिया व स्नान के बाद श्रृंगार पहला
काम करते हैं। इसके बाद हवन, ध्यान, बज्रोली, प्राणायाम,
कपाल क्रिया व नौली क्रिया करते हैं। पूरे दिन में एक
बार शाम को भोजन करने के बाद ये फिर से बिस्तर पर चले
जाते हैं।
5.
सात अखाड़े ही बनाते हैं नागा : संतों के तेरह अखाड़ों में
सात संन्यासी अखाड़े ही नागा साधु बनाते हैं:- ये हैं
जूना, महानिर्वणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और
आवाहन अखाड़ा।
6.
नागा इतिहास : सबसे पहले वेद व्यास ने संगठित रूप से
वनवासी संन्यासी परंपरा शुरू की। उनके बाद शुकदेव ने,
फिर अनेक ऋषि और संतों ने इस परंपरा को अपने-अपने तरीके
से नया आकार दिया। बाद में शंकराचार्य ने चार मठ
स्थापित कर दसनामी संप्रदाय का गठन किया। बाद में
अखाड़ों की परंपरा शुरू हुई। पहला अखाड़ा अखंड आह्वान
अखाड़ा’ सन् 547 ई. में बना।
7.
नाथ परंपरा : माना जाता है कि नाग, नाथ और नागा
परंपरा गुरु दत्तात्रेय की परंपरा की शाखाएं है। नवनाथ
की परंपरा को सिद्धों की बहुत ही महत्वपूर्ण परंपरा
माना जाता है। गुरु मत्स्येंद्र नाथ, गुरु गोरखनाथ साईनाथ
बाबा, गजानन महाराज, कनीफनाथ, बाबा रामदेव,
तेजाजी महाराज, चौरंगीनाथ, गोपीनाथ, चुणकरनाथ,
भर्तृहरि, जालन्ध्रीपाव आदि। घुमक्कड़ी नाथों में
ज्यादा रही।
8.
नागा उपाधियां : चार जगहों पर होने वाले कुंभ में नागा
साधु बनने पर उन्हें अलग अलग नाम दिए जाते हैं। इलाहाबाद
के कुंभ में उपाधि पाने वाले को 1.नागा, उज्जैन में 2.खूनी
नागा, हरिद्वार में 3.बर्फानी नागा तथा नासिक में
उपाधि पाने वाले को 4.खिचडिया नागा कहा जाता
है। इससे यह पता चल पाता है कि उसे किस कुंभ में नागा
बनाया गया है।
उनकी वरीयता के आधार पर पद भी दिए जाते हैं।
कोतवाल, पुजारी, बड़ा कोतवाल, भंडारी, कोठारी,
बड़ा कोठारी, महंत और सचिव उनके पद होते हैं। सबसे बड़ा
और महत्वपूर्ण पद सचिव का होता है।
10.
कठिन परीक्षा : नागा साधु बनने के लिए लग जाते हैं 12
वर्ष। नागा पंथ में शामिल होने के लिए जरूरी जानकारी
हासिल करने में छह साल लगते हैं। इस दौरान नए सदस्य एक
लंगोट के अलावा कुछ नहीं पहनते। कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के
बाद वे लंगोट भी त्याग देते हैं और जीवन भर यूं ही रहते हैं।
11.
नागाओं की शिक्षा और ‍दीक्षा : नागा साधुओं को
सबसे पहले ब्रह्मचारी बनने की शिक्षा दी जाती है। इस
परीक्षा को पास करने के बाद महापुरुष दीक्षा होती है।
बाद की परीक्षा खुद के यज्ञोपवीत और पिंडदान की
होती है जिसे बिजवान कहा जाता है।
अंतिम परीक्षा दिगम्बर और फिर श्रीदिगम्बर की होती
है। दिगम्बर नागा एक लंगोटी धारण कर सकता है, लेकिन
श्रीदिगम्बर को बिना कपड़े के रहना होता है।
श्रीदिगम्बर नागा की इन्द्री तोड़ दी जाती है।
12.
कहां रहते हैं नागा साधु : नाना साधु अखाड़े के आश्रम और
मंदिरों में रहते हैं। कुछ तप के लिए हिमालय या ऊंचे पहाड़ों
की गुफाओं में जीवन बिताते हैं। अखाड़े के आदेशानुसार यह
पैदल भ्रमण भी करते हैं। इसी दौरान किसी गांव की मेर पर
झोपड़ी बनाकर धुनी रमाते हैं।
नागा साधू बनने की प्रक्रिया.
नागा साधु बनने की प्रक्रिया कठिन तथा लम्बी होती
है। नागा साधुओं के पंथ में शामिल होने की प्रक्रिया में
लगभग छह साल लगते हैं। इस दौरान नए सदस्य एक लंगोट के
अलावा कुछ नहीं पहनते। कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद वे
लंगोट भी त्याग देते हैं और जीवन भर यूँ ही रहते हैं। कोई भी
अखाड़ा अच्छी तरह जाँच-पड़ताल कर योग्य व्यक्ति को
ही प्रवेश देता है। पहले उसे लम्बे समय तक ब्रह्मचारी के रूप में
रहना होता है, फिर उसे महापुरुष तथा फिर अवधूत बनाया
जाता है। अन्तिम प्रक्रिया महाकुम्भ के दौरान होती है
जिसमें उसका स्वयं का पिण्डदान तथा दण्डी संस्कार
आदि शामिल होता है।[2]
ऐसे होते हैं 17 श्रृंगार(नागा साधू)
बातचीत के दौरान नागा संत ने कहा कि शाही स्नान से
पहले नागा साधु पूरी तरह सज-धज कर तैयार होते हैं और
फिर अपने ईष्ट की प्रार्थना करते हैं। नागाओं के सत्रह
श्रृंगार के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि लंगोट,
भभूत, चंदन, पैरों में लोहे या फिर चांदी का कड़ा, अंगूठी,
पंचकेश, कमर में फूलों की माला, माथे पर रोली का लेप,
कुंडल, हाथों में चिमटा, डमरू या कमंडल, गुथी हुई जटाएं और
तिलक, काजल, हाथों में कड़ा, बदन में विभूति का लेप और
बाहों पर रूद्राक्ष की माला 17 श्रृंगार में शामिल होते
हैं।
नागा साधू
सन्यासियों की इस परंपरा मे शामील होना बड़ा कठिन
होता है और अखाड़े किसी को आसानी से नागा रूप मे
स्वीकार नहीं करते। वर्षो बकायदे परीक्षा ली जाती है
जिसमे तप , ब्रहमचर्य , वैराग्य , ध्यान ,सन्यास और धर्म का
अनुसासन तथा निस्ठा आदि प्रमुखता से परखे-देखे जाते हैं।
फिर ये अपना श्रध्या , मुंडन और पिंडदान करते हैं तथा गुरु
मंत्र लेकर सन्यास धर्म मे दीक्षित होते है इसके बाद इनका
जीवन अखाड़ों , संत परम्पराओं और समाज के लिए समर्पित
हो जाता है,
अपना श्रध्या कर देने का मतलब होता है सांसरिक जीवन से
पूरी तरह विरक्त हो जाना , इंद्रियों मे नियंत्रण करना
और हर प्रकार की कामना का अंत कर देना होता है कहते हैं
की नागा जीवन एक इतर जीवन का साक्षात ब्यौरा है
और निस्सारता , नश्वरता को समझ लेने की एक प्रकट
झांकी है । नागा साधुओं के बारे मे ये भी कहा जाता है
की वे पूरी तरह निर्वस्त्र रह कर गुफाओं , कन्दराओं मे कठोर
ताप करते हैं । प्राच्य विद्या सोसाइटी के अनुसार
“नागा साधुओं के अनेक विशिष्ट संस्कारों मे ये भी
शामिल है की इनकी कामेन्द्रियन भंग कर दी जाती हैं”।
इस प्रकार से शारीरिक रूप से तो सभी नागा साधू
विरक्त हो जाते हैं लेकिन उनकी मानसिक अवस्था उनके
अपने तप बल निर्भर करती है ।
विदेशी नागा साधू
सनातन धर्म योग, ध्यान और समाधि के कारण हमेशा
विदेशियों को आकर्षित करता रहा है लेकिन अब बडी
तेजी से विदेशी खासकर यूरोप की महिलाओं के बीच
नागा साधु बनने का आकर्षण बढ़ता जा रहा है।
उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद में गंगा, यमुना और अदृश्य
सरस्वती के संगम पर चल रहे महाकुंभ मेले में विदेशी महिला
नागा साधू आकर्षण के केन्द्र में हैं। यह जानते हुए भी कि
नागा बनने के लिए कई कठिन प्रक्रिया और तपस्या से
गुजरना होता है विदेशी महिलाओं ने इसे अपनाया है।
आमतौर पर अब तक नेपाल से साधू बनने वाली महिलाए ही
नागा बनती थी। इसका कारण यह कि नेपाल में
विधवाओं के फिर से विवाह को अच्छा नहीं माना
जाता। ऐसा करने वाली महिलाओं को वहां का समाज
भी अच्छी नजरों से भी नहीं देखता लिहाजा विधवा
होने वाली नेपाली महिलाएं पहले तो साधू बनती थीं
और बाद में नागा साधु बनने की कठिन प्रक्रिया से जुड़
जाती थी।
नागा साधू
कालांतर मे सन्यासियों के सबसे बड़े जूना आखाठे मे
सन्यासियों के एक वर्ग को विशेष रूप से शस्त्र और शास्त्र
दोनों मे पारंगत करके संस्थागत रूप प्रदान किया । उद्देश्य
यह था की जो शास्त्र से न माने उन्हे शस्त्र से मनाया
जाय । ये नग्ना अवस्था मे रहते थे , इन्हे त्रिशूल , भाला
,तलवार,मल्ल और छापा मार युद्ध मे प्रशिक्षिण दिया
जाता था । इस तरह के भी उल्लेख मिलते हैं की औरंगजेब के
खिलाफ युद्ध मे नागा लोगो ने शिवाजी का साथ
दिया था
नागा साधू
जूना के अखाड़े के संतों द्वारा तीनों योगों- ध्यान योग
, क्रिया योग , और मंत्र योग का पालन किया जाता है
यही कारण है की नागा साधू हिमालय के ऊंचे शिखरों पर
शून्य से काफी नीचे के तापमान पर भी जीवित रह लेते हैं,
इनके जीवन का मूल मंत्र है आत्मनियंत्रण, चाहे वह भोजन मे
हो या फिर विचारों मे
नागा साधू
बात 1857 की है। पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल बज
चुका था। यहां पर तो क्रांति की ज्वाला की पहली
लपट 57 के 13 साल पहले 6 जून को मऊ कस्बे में छह अंग्रेज
अफसरों के खून से आहुति ले चुकी थी।
एक अप्रैल 1858 को मप्र के रीवा जिले की मनकेहरी
रियासत के जागीरदार ठाकुर रणमत सिंह बाघेल ने लगभग
तीन सौ साथियों को लेकर नागौद में अंग्रेजों की
छावनी में आक्रमण कर दिया। मेजर केलिस को मारने के
साथ वहां पर कब्जा जमा लिया। इसके बाद 23 मई को
सीधे अंग्रेजों की तत्कालीन बड़ी छावनी नौगांव का
रुख किया। पर मेजर कर्क की तगड़ी व्यूह रचना के कारण
यहां पर वे सफल न हो सके। रानी लक्ष्मीबाई की
सहायता को झांसी जाना चाहते थे पर उन्हें चित्रकूट का
रुख करना पड़ा। यहां पर पिंडरा के जागीरदार ठाकुर
दलगंजन सिंह ने भी अपनी 1500 सिपाहियों की सेना को
लेकर 11 जून को 1958 को दो अंग्रेज अधिकारियों की
हत्या कर उनका सामान लूटकर चित्रकूट का रुख किया।
यहां के हनुमान धारा के पहाड़ पर उन्होंने डेरा डाल रखा
था, जहां उनकी सहायता नागा साधु-संत कर रहे थे। लगभग
तीन सौ से ज्यादा नागा साधु क्रांतिकारियों के
साथ अगली रणनीति पर काम कर रहे थे। तभी नौगांव से
वापसी करती ठाकुर रणमत सिंह बाघेल भी अपनी सेना
लेकर आ गये। इसी समय पन्ना और अजयगढ़ के नरेशों ने अंग्रेजों
की फौज के साथ हनुमान धारा पर आक्रमण कर दिया।
तत्कालीन रियासतदारों ने भी अंग्रेजों की मदद की।
सैकड़ों साधुओं ने क्रांतिकारियों के साथ अंग्रेजों से
लोहा लिया। तीन दिनों तक चले इस युद्ध में
क्रांतिकारियों को मुंह की खानी पड़ी। ठाकुर दलगंजन
सिंह यहां पर वीरगति को प्राप्त हुये जबकि ठाकुर रणमत
सिंह गंभीर रूप से घायल हो गये।
करीब तीन सौ साधुओं के साथ क्रांतिकारियों के खून से
हनुमानधारा का पहाड़ लाल हो गया।
महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय में
इतिहास विभाग के अधिष्ठाता डा. कमलेश थापक कहते हैं
कि वास्तव में चित्रकूट में हुई क्रांति असफल क्रांति थी।
यहां पर तीन सौ से ज्यादा साधु शहीद हो गये थे।
साक्ष्यों में जहां ठाकुर रणमतिसह बाघेल के साथ ही
ठाकुर दलगंजन सिंह के अलावा वीर सिंह, राम प्रताप
सिंह, श्याम शाह, भवानी सिंह बाघेल (भगवान् सिंह
बाघेल ), सहामत खां, लाला लोचन सिंह, भोला बारी,
कामता लोहार, तालिब बेग आदि के नामों को उल्लेख
मिलता है वहीं साधुओं की मूल पहचान उनके निवास स्थान
के नाम से अलग हो जाने के कारण मिलती नहीं है। उन्होंने
कहा कि वैसे इस घटना का पूरा जिक्र आनंद पुस्तक भवन
कोठी से विक्रमी संवत 1914 में राम प्यारे अग्निहोत्री
द्वारा लिखी गई पुस्तक 'ठाकुर रणमत सिंह' में मिलता है।
इस प्रकार मैं दावे के साथ कह सकता हु की नागा साधू
सनातन के साथ साथ देश रक्षा के लिए भी अपने प्राणों
की आहुति देते आये है और समय आने पर फिर से देश और धर्म के
लिए अपने प्राणों की आहुति दे सकते है ...पर कुछ
पुराव्ग्राही बन्धुओ को नागाओ का यह त्याग और
बलिदान क्यों नहीं दिखाई देता है?