सोमवार, 31 अगस्त 2015

बहुत दिनों तक यह मामला यमराज की फाईल में अटका रहा

एक राजा ब्राह्मणों को
लंगर में भोजन करा रहा
था।
तब पंक्ति के अंत मैं बैठे एक
ब्राम्हण को भोजन
परोसते समय एक चील
अपने पंजे में एक मुर्दा
साँप लेकर राजा के उपर से
गुजरी। और उस मुर्दा साँप
के मुख से कुछ बुंदे जहर की
खाने में गिर गई। किसी
को कुछ पत्ता नहीं चला।
फल स्वरूप वह ब्राह्मण
जहरीला खाना खाते हीं
मर गया। अब जब राजा
को सच का पता चला तो
ब्रम्ह हत्या होने से उसे
बहुत दुख हुआ।
मित्रों ऐसे में अब ऊपर बैठे
यमराज के लिए भी यह
फैसला लेना मुश्किल हो
गया कि इस पाप-कर्म का
फल किसके खाते में
जायेगा ???
राजा... जिसको पता ही
नहीं था कि खाना
जहरीला हो गया है..
या
वह चील... जो जहरीला
साँप लिए राजा के उपर से
गुजरी...
या
वह मुर्दा साँप... जो पहले
से मर चुका था...
दोस्तों बहुत दिनों तक
यह मामला यमराज की
फाईल में अटका रहा।
फिर कुछ समय बाद कुछ
ब्राह्मण राजा से मिलने
उस राज्य मे आए। और
उन्होंने किसी महिला से
महल का रास्ता पूछा...
तो उस महिला ने महल का
रास्ता तो बता दिया,
पर रास्ता बताने के साथ-
साथ ब्राम्हणों से ये भी
कह दिया कि देखो भाई...
"जरा ध्यान रखना, वह
राजा आप जैसे ब्राह्मणों
को खाने में जहर देकर मार
देता है।"
बस मित्रों जैसे ही उस
महिला ने ये शब्द कहे
उसी समय यमराज ने
फैसला ले लिया कि उस
ब्राह्मण की मृत्यु के पाप
का फल इस महिला के खाते
में जाएगा और इसे उस पाप
का फल भुगतना होगा।
यमराज के दूतों ने पूछा
प्रभु ऐसा क्यों ? जबकि
उस ब्राम्हण की हत्या में
उस महिला की कोई
भूमिका भी नही थी।
तब यमराज ने कहा कि
भाई देखो जब कोई
व्यक्ति पाप करता हैं तब
उसे आनंद मिलता हैं। पर
उस ब्राम्हण की हत्या से
न तो राजा को आनंद
मिला न मरे हुए साँप को
आनंद मिला और न ही उस
चील को आनंद मिला... पर
उस पाप-कर्म की घटना
का बुराई करने के भाव से
बखान कर उस महिला को
जरूर आनंद मिला। इसलिये
राजा के उस अनजाने पाप-
कर्म का फल अब इस
महिला के खाते में जायेगा।
बस मित्रों इसी घटना के
तहत आज तक जब भी कोई
व्यक्ति जब किसी दुसरे के
पाप-कर्म का बखान बुरे
भाव से (बुराई) करता हैं,
तब उस व्यक्ति के पापों
का हिस्सा उस बुराई
करने वाले के खाते में भी
डाल दिया जाता हैं।
दोस्तों अक्सर हम जीवन
में सोचते हैं कि जीवन में
ऐसा कोई पाप नही
किया फिर भी जीवन में
इतना कष्ट क्यों आया ?
दोस्तों ये कष्ट और कहीं से
नही बल्कि लोगों की
बुराई करने के कारण उनके
पाप-कर्मो से आया होता
हैं जिनको यमराज बुराई
करते ही हमारे खाते में
ट्रांसफर कर देते हैं।
इसलिये दोस्तों आज से ही
संकल्प कर लो कि किसी के
भी पाप-कर्मों का बखान
बुरे भाव से नही करना,
यानी किसी की भी
बुराई नही करनी हैं।

शुक्रवार, 7 अगस्त 2015

भाग्य से ज्यादा और समय पहले किसी को कुछ नही मिला

एक सेठ जी थे  -
जिनके पास काफी दौलत थी.
सेठ जी ने अपनी बेटी की शादी एक बड़े घर में की थी.
परन्तु बेटी के भाग्य में सुख न होने के कारण उसका पति जुआरी, शराबी निकल गया.
जिससे सब धन समाप्त हो गया.

बेटी की यह हालत देखकर सेठानी जी रोज सेठ जी से कहती कि आप दुनिया की मदद करते हो,
मगर अपनी बेटी परेशानी में होते हुए उसकी मदद क्यों नहीं करते हो?

सेठ जी कहते कि
"जब उनका भाग्य उदय होगा तो अपने आप सब मदद करने को तैयार हो जायेंगे..."

एक दिन सेठ जी घर से बाहर गये थे कि, तभी उनका दामाद घर आ गया.
सास ने दामाद का आदर-सत्कार किया और बेटी की मदद करने का विचार उसके मन में आया कि क्यों न मोतीचूर के लड्डूओं में अर्शफिया रख दी जाये...

यह सोचकर सास ने लड्डूओ के बीच में अर्शफिया दबा कर रख दी और दामाद को टीका लगा कर विदा करते समय पांच किलों शुद्ध देशी घी के लड्डू, जिनमे अर्शफिया थी, दिये...

दामाद लड्डू लेकर घर से चला,
दामाद ने सोचा कि इतना वजन कौन लेकर जाये क्यों न यहीं मिठाई की दुकान पर बेच दिये जायें और दामाद ने वह लड्डुयों का पैकेट मिठाई वाले को बेच दिया और पैसे जेब में डालकर चला गया.

उधर सेठ जी बाहर से आये तो उन्होंने सोचा घर के लिये मिठाई की दुकान से मोतीचूर के लड्डू लेता चलू और सेठ जी ने दुकानदार से लड्डू मांगे...मिठाई वाले ने वही लड्डू का पैकेट सेठ जी को वापिस बेच दिया.

सेठ जी लड्डू लेकर घर आये.. सेठानी ने जब लड्डूओ का वही पैकेट देखा तो सेठानी ने लड्डू फोडकर देखे, अर्शफिया देख कर अपना माथा पीट लिया.
सेठानी ने सेठ जी को दामाद के आने से लेकर जाने तक और लड्डुओं में अर्शफिया छिपाने की बात कह डाली...

सेठ जी बोले कि भाग्यवान मैंनें पहले ही समझाया था कि अभी उनका भाग्य नहीं जागा...
देखा मोहरें ना तो दामाद के भाग्य में थी और न ही मिठाई वाले के भाग्य में...

इसलिये कहते हैं कि भाग्य से
ज्यादा
और...
समय
से पहले न किसी को कुछ मिला है और न मीलेगा!!!